रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में लगातार हंगामा हो रहा है। बीजेपी विधायक कम संख्या में होने के बावजूद सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं चूक रहे.. लेकिन तब सत्ता पक्ष के लिए दोहरी मुश्किल खड़ी हो गई, जब पक्ष के विधायकों ने ही सरकार पर सवालों के तीर चलाने शुरू कर दिए। अपनी ही सरकार पर सवाल उठाने के क्या मायने हैं.. चुनावी साल में इसकी क्या जरूरत पड़ गई और क्या इसका कोई हिडन मकसद है..
सत्ता की जिम्मेदारी, विपक्ष की भूमिका !
अपनों की घेराबंदी, सियासत या बगावत ?
छत्तीसगढ़ विधानसभा में कांग्रेस सरकार के मंत्री अपने विधायकों के सवालों से ही घिरे नजर आ रहे हैं। सोमवार को पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने DMF की राशि में बंदरबांट का आरोप लगाया तो मंत्री रविंद्र चौबे को जांच कराने की घोषणा करनी पड़ी। इसके बाद मंगलवार को राजिम विधायक अमितेश शुक्ल ने गरियाबंद में अपात्र कर्मचारियों को नियमित करने का मामला उठाया, जिस पर मंत्री प्रेमसाय टेकाम ने आयुक्त बीके सुखदेव को निलंबित कर दिया। सदन में सरकार राहत की सांस ले पाती इसस पहले ही कांग्रेस विधायकों शोभाराम बघेल, रामकुमार यादव और चंदन कश्यप ने जर्जर स्कूल भवनों को लेकर ताबड़तोड़ सवाल दाग दिए। सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस विधायकों की ऐसी भूमिका से बीजेपी का काम आसान हो गया है। हालांकि इस पर जमकर राजनीति भी हो रही है।
विधानसभा में जनता के मुद्दों को उठाना हर विधायक की नैतिक जिम्मेदारी है लेकिन चुनावी साल में सत्ता पक्ष के लिए अपने विधायकों से घिरना गले की हड्डी बन सकता है। इस पर सवाल उठने भी लाजमी हैं कि आखिर कांग्रेस विधायक अपने ही मंत्रियों को क्यों घेर रहे हैं ? सत्ता में रहकर उन्हें विपक्ष की भूमिका क्यों निभानी पड़ रही है और क्या विपक्ष अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पा रहा?
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