Cast Census | Photo Credit: IBC24
रायपुर: Cast Census देश की आधिकारिक जनगणना से पहले, बस्तर में आदिवासियों की जातिगत जनगणना सबको पता है कि देश में जनगणना का पूरा टाइम-टेबल आ चुका है। देश में 2027 में जातीय जनगणना की होगी यानि इससे जुड़े आंकड़े 2 साल बाद ही सामने आएंगे, लेकिन इससे पहले ही छत्तीसगढ़ के बस्तर में सर्व आदिवासी समाज ने आदिवासियों की जनगणना शुरू कर दी है। बीजेपी इस पर मौन है औक कांग्रेस खुलकर इस कदम की समर्थन कर रही है। सवाल है देश की जनगणना से पहले आदिवासियों की जनगणना की भला क्या जरूरत है, और आदिवासी बहुल स्टेट में, सर्व समाज ने सिर्फ बस्तर में इसे क्यों शुरू किया। सारे सवालों का जवाब लेने का प्रयास होगा।
Cast Census छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी कितनी है, इसके सटीक आंकड़े जुटाने के लिए अब सर्व आदिवासी समाज ने, बस्तर में आदिवासियों के जनगणना का काम शुरू कर दिया है, सर्व समाज का दावा है कि, 2001 और 2011 की जनगणना में कई आदिवासी सम्मिलित नहीं हो पाए, वजह थी नक्सली खौफ और पलायन कमाने के लिए बाहर गए आदिवासियों के कई गांवों को सर्वे टीम ने वीरान घोषित किया जिससे वहां के आदिवासियों को बाद में काफी दिक्कतें हुईं, लंबा संघर्ष करना पड़ा। 2001 की जनगणना में छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की संख्या 32% बताई गई थी जबकि 2011 की जनगणना में इनकी संख्या 31.76 % से घटकर 24% हो गई। इन्हीं कारणों को आगे रखकर, बस्तर सर्व आदिवासी समाज ने बस्तर में आदिवासी समाज की जनगणना का काम शुरू कर दिया है। बस्तर संभाग अध्यक्ष का दावा है कि, जब 2027 में सरकारी जनगणना के आंकड़ें आएंगे तो हम उससे अपने आंकड़ों का मिलान करेंगे। हालांकि, केवल बस्तर में शुरू हुई सर्व आदिवासी समाज की जनगणना से प्रदेश सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष ने खुद को अलग बताया, जनगणना की पूरी प्रक्रिया से खुद को अंजान बताया।
इधर, मामले पर कांग्रेस ने बस्तर में आदिवासियों की जनगणना को पूरी तरह से जायज बताते हुए तंज कसा कि आदिवासी समाज को सरकार पर भरोसा नहीं है। वहीं, बीजेपी आदिवासी नेता इसपर गोलमोल सी प्रतिक्रिया देकर खुलकर बोलने से बचते दिखे।
जाहिर है मामला बड़ा और गंभीर है। ये पहली बार होगा जब आदिवासी समाज सरकार की जनगणना से पहले , खुद अपने लोगों की गणना और उसमें सामाजिक, सांस्कृति विविधता के आंकड़े जमा कर रहा है और उसे बाद में सरकार के आंकड़ों से मिलाने का दावा है। सवाल है क्या वाकई समाज को सरकारी तंत्र की जनगणना पर भरोसा नहीं है, क्या सही आंकड़ों के लिए यही रास्ता है, क्या सर्व समाज के इस फैसले के पीछे कोई सियासी गणित भी छिपा है?