काबुल में फंसे अंग्रेज सैनिक की सहायता कर रहे थे स्वयं महादेव, मनोकामना पूरी होने पर ब्रिटिश दंपति ने करवाया था मंदिर का निर्माण

काबुल में फंसे अंग्रेज सैनिक की सहायता कर रहे थे स्वयं महादेव, मनोकामना पूरी होने पर ब्रिटिश दंपति ने करवाया था मंदिर का निर्माण

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  • Publish Date - August 12, 2020 / 09:06 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:58 PM IST

आगर मालवा। विश्व प्रसिद्ध महाकाल ज्योर्तिलिंग की नगरी उज्जैन से 67 कि.मी. दूर एक ऐसा स्थान है, जहां विराजे हैं…बैजनाथ महादेव। इस स्थान को लोग आगर मालवा के नाम से जानते हैं। इंदौर कोटा अंतरराज्यीय मार्ग पर स्थित बैजनाथ महादेव की महिमा अनोखी है।इस स्थान पर आने के बाद लोग खुद को प्रकृति के बेहद करीब पाते हैं। बाणगंगा नदी के किनारे बाबा बैजनाथ का धाम पुरातात्विक महत्ता के साथ चमत्कारों का पुलिंदा लिए हुए है। यहां आकर अशांत मन को सारे सवालों का जवाब मिल जाता है। भटके हुए राहगीरों को उचित मार्ग मिलता है। जीवन से जुड़े सारे भ्रम इस दिव्य स्थान पर आकर समाप्त हो जाते हैं।

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इस दिव्य स्थान के यदि इतिहास की बात करें तो मंदिर की स्थापना 1528 में वैश्यों ने की थी, मंदिर मे स्थापित शिवलिंग 13 वीं शताब्दी का माना जाता है । कालांतर में इस मंदिर का जीर्णोद्धार अंग्रेजों के शासनकाल में कर्नल मार्टिन ने करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि कर्नल मार्टिन आगर की छावनी के अंग्रेजी फौज की तरफ से 1880 में युद्ध करने के लिए काबुल गए थे। महीनों बीत जाने के बाद भी कर्नल की कोई खबर नहीं आई, कर्नल की पत्नी ने आखिर में इस मंदिर में आई और शिव से मन्नत मांगी कि यदि उनके पति सकुशल लौट आएं तो वो इस मंदिर का शिखरबद्ध निर्माण करवाएंगी। मन्नत मांगने के ग्यारह दिन बाद मार्टिन का उनकी पत्नी के नाम पत्र आया,पत्र में लिखा था कि कोई अज्ञात व्यक्ति मेरी सहायता कर रहा है, उसके बड़े-बड़े बाल हैं, हाथों में त्रिशुल है और वो हमेशा बैल पर सवार रहता है । कहा जाता है की वो साक्षात बाबा बैजनाथ महादेव ही थे । कर्नल जब युद्ध से लौटे तब उनकी पत्नी ने कर्नल से कहकर इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

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मंदिर मे विराजित शिवलिंग कहां से आया और इसकी स्थापना कब की गई, इस बारे में भी कई लोगों के अपने अपने विचार हैं, क्योंकि इसका कोई सटीक प्रमाण आज भी उपलब्ध नहीं है, लेकिन मंदिर के पास स्थित सती के ओटले पर मौजूद शिलालेख की लिखावट को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये 1116 ईस्वी का है। जिससे इस बात का तो प्रमाण है कि मंदिर 1000 से ज्यादा वर्ष पुराना है। मंदिर में स्थित महादेव की सुबह पंचामृत और अन्य द्रव्यों से अभिषेक कराया जाता है…इसके बाद महादेव के दर्शन के लिए मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं।