माकपा विधायक और भाजपा पार्षद के बीच कार्यालय के स्थान को लेकर तीखी बहस, बाद में विवाद सुलझा

माकपा विधायक और भाजपा पार्षद के बीच कार्यालय के स्थान को लेकर तीखी बहस, बाद में विवाद सुलझा

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  • Publish Date - December 28, 2025 / 03:03 PM IST,
    Updated On - December 28, 2025 / 03:03 PM IST

तिरुवनंतपुरम, 28 दिसंबर (भाषा) केरल में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के एक विधायक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की एक नवनिर्वाचित पार्षद के बीच तिरुवनंतपुरम नगर निगम भवन में स्थित एक कार्यालय के स्थान को लेकर रविवार को तीखी बहस हुई, लेकिन बाद में दोनों जनप्रतिनिधियों ने हाथ मिलाकर मतभेद भुला दिए।

वट्टियूरकावु के विधायक वी. के. प्रशांत ने पत्रकारों को बताया कि पार्षद आर. श्रीलेखा ने उन्हें फोन कर सस्थामंगलम स्थित तिरुवनंतपुरम नगर निगम भवन में मौजूद उनका कार्यालय खाली करने के लिए कहा।

श्रीलेखा एक सेवानिवृत्त डीजीपी हैं और हाल में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा के टिकट पर विजयी हुई हैं। उन्होंने विधायक को जवाब में कहा कि उन्होंने इस मुद्दे के संबंध में उनसे विनम्र निवेदन किया था।

वर्तमान में तिरुवनंतपुरम नगर निगम में भाजपा सत्ता में है जिसने शहर के 101 वार्ड में से 50 में जीत हासिल की है। इससे तिरुवनंतपुरम के नगर निगम पर वामपंथियों का चार दशकों का वर्चस्व समाप्त हो गया।

प्रशांत ने कहा, ‘‘उन्होंने मुझसे संपर्क कर मेरा कार्यालय खाली करने को कहा। उनका कहना था कि उसी भवन में पार्षद का कार्यालय पर्याप्त सुविधाओं वाला नहीं है और वे उस स्थान का उपयोग करना चाहती हैं, जिसे फिलहाल विधायक कार्यालय के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।’’

उन्होंने बताया कि उनका विधायक कार्यालय पिछले सात वर्षों से उसी भवन से संचालित हो रहा है और इससे पहले भी एक भाजपा पार्षद उसी भवन के एक हिस्से का कार्यालय के रूप में उपयोग कर चुका है।

उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं तिरुवनंतपुरम का महापौर था, तब वार्ड पार्षदों को कार्यालय के लिए स्थान उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया था। विधायक बनने के बाद मैंने निगम में आवेदन दिया और किराये पर यह स्थान मुझे आवंटित किया गया।

प्रशांत ने कहा कि नियमानुसार किसी भी तरह की बेदखली के लिए नगर निगम के सचिव को नोटिस जारी करना होता है।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यहां एक पार्षद सीधे एक विधायक को फोन कर कार्यालय खाली करने की मांग कर रही हैं। यह वैसा ही है जैसे पुलिस थाने में कामकाज किया जाता है।’’

प्रशांत ने इस कदम की तुलना ‘‘बुलडोजर राज’’ से करते हुए कहा कि उत्तर भारत के कुछ राज्यों में भाजपा द्वारा अपनाई गई नीतियों को तिरुवनंतपुरम में दोहराया जा रहा है।

यह पूछे जाने पर कि क्या उनके कार्यालय ने वार्ड पार्षद के लिए निर्धारित स्थान पर कब्जा कर रखा है, तो प्रशांत ने स्वीकार किया कि उनके कार्यालय में आने वाले लोगों की संख्या अधिक होने के कारण कुछ अतिरिक्त स्थान का उपयोग किया जा रहा है।

उन्होंने दावा किया, ‘‘पार्षद का कार्यालय वहीं संचालित हो रहा है और कमरे के सामने एक नाम पट्टिका लगा दिया गया है। पार्षद शायद ही कभी उस जगह का इस्तेमाल करती हैं और ज्यादातर नगर निगम कार्यालय से ही काम करती हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर पार्षद को कोई शिकायत है तो उसकी जांच की जा सकती है। समझौते की अवधि समाप्त होने तक हमें आवंटित स्थान पर काम करने का अधिकार है।’’

प्रशांत ने बताया कि यह कार्यालय उन्हें 31 मार्च 2026 तक आवंटित हुआ है और उन्होंने अगले वर्ष मई में मौजूदा विधानसभा कार्यकाल समाप्त होने तक विस्तार के लिए आवेदन किया है।

उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि पार्षद ने यह फैसला अपने स्तर पर लिया है।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझसे संपर्क करने से पहले शायद उन्होंने दूसरों से सलाह ली होगी। मैंने उन्हें बताया कि यह जगह अगले साल मार्च तक के लिए आवंटित है और उससे पहले खाली नहीं की जा सकती। अगर वह तुरंत इसे खाली कराना चाहती हैं, तो वह कानूनी कदम उठा सकती हैं और हम कानूनी तौर पर इसका सामना करेंगे।’’

श्रीलेखा ने बाद में स्पष्ट किया कि उन्होंने नगर निगम भवन में पर्याप्त जगह न होने का हवाला देते हुए प्रशांत से केवल एक विनम्र अनुरोध किया था।

उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘‘मैं उन्हें अपने भाई की तरह मानती हूं। मेरे पास अपना कार्यालय चलाने और आम लोगों से मिलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, इसलिए मैंने उनसे शालीनता से अनुरोध किया था। मैंने उनसे स्थान खाली करने को कहा, लेकिन उन्होंने आपत्ति जताई।’’

श्रीलेखा ने कहा कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि उक्त स्थान वामपंथी विधायक को किसी आधिकारिक आदेश के तहत आवंटित किया गया है या नहीं और इस मामले की जांच की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘विधायक का सरकारी आवास पास में ही है और वह कहीं और भी कार्यालय रख सकते हैं। मेरे मामले में, मैं सस्थामंगलम संभाग की पार्षद हूं, लेकिन मेरा निवास दूसरे संभाग में है। इसलिए मुझे यहां जनता से मिलने के लिए एक कार्यालय की आवश्यकता है।’’

श्रीलेखा ने कहा कि उनके मन में प्रशांत के प्रति कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है और वह उन्हें अब भी अपने भाई की तरह मानती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा लोगों से मिलना जरूरी है, इसलिए मैं इस भवन में अपना कार्यालय स्थापित करूंगी।’’

इसके बाद श्रीलेखा ने प्रशांत से उनके कार्यालय में मुलाकात की। दोनों ने इस मुद्दे पर चर्चा की और हाथ मिलाया।

बैठक के बाद श्रीलेखा ने कहा कि उन्हें प्रशांत के उस कार्यालय से काम जारी रखने पर कोई आपत्ति नहीं है।

वहीं, प्रशांत ने कहा कि उन्हें भी उसी भवन के किसी अन्य कमरे में श्रीलेखा के कार्यालय संचालन पर कोई आपत्ति नहीं है।

भाषा सुरभि रंजन

रंजन