AADHAAR Verification For OTT: Netflix और YouTube पर ऐसा कंटेट देखने के लिए इस कार्ड से होगा उम्र का वेरिफिकेशन! अश्लीलता पर सख्त हुए CJI सूर्यकांत ने दिया सुझाव

Aadhaar Verification for OTT: अदालत ने कहा कि एडल्ट कंटेंट देखने के लिए आधार कार्ड से उम्र सत्यापन (Age Verification) को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर आजमाया जा सकता है, ताकि बच्चों को ऐसे कंटेंट से बचाया जा सके

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  • Publish Date - November 27, 2025 / 06:13 PM IST,
    Updated On - November 27, 2025 / 06:40 PM IST

AADHAAR Verification For OTT, image source: ANI

HIGHLIGHTS
  • कंटेंट रेगुलेशन के लिए स्वतंत्र संस्था की मांग
  • सिर्फ चेतावनी काफी नहीं, जजों की कड़ी टिप्पणी
  • एडल्ट कंटेंट देखने के लिए आधार कार्ड से उम्र सत्यापन

नई दिल्ली: AADHAAR Verification For OTT, सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध ‘अश्लील’ और आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर गुरुवार को कड़ी चिंता जताई। नेटफ्लिक्स और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ती पहुंच को देखते हुए अदालत ने कहा कि एडल्ट कंटेंट देखने के लिए आधार कार्ड से उम्र सत्यापन (Age Verification) को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर आजमाया जा सकता है, ताकि बच्चों को ऐसे कंटेंट से बचाया जा सके। यह सुझाव चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने एक सुनवाई के दौरान दिया।

यह मामला कॉमेडियन समय रैना और पॉडकास्टर रणवीर अल्लाहबादिया के खिलाफ दायर याचिकाओं से जुड़ा है, जिन पर दिव्यांगों का मजाक उड़ाने और अश्लील टिप्पणी करने के आरोप लगे हैं।

सिर्फ चेतावनी काफी नहीं, जजों की कड़ी टिप्पणी

AADHAAR Verification For OTT, सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा कि फोन पर कंटेंट तुरंत उपलब्ध हो जाता है, कई बार लोग न चाहते हुए भी अनुचित सामग्री देख लेते हैं। CJI सूर्यकांत ने कहा चेतावनी कुछ सेकंड आती है, लेकिन तब तक शो शुरू हो जाता है। उम्र की पुष्टि के लिए आधार कार्ड एक विकल्प हो सकता है। पीठ ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक सुझाव है, न कि तत्काल लागू करने का आदेश।

कंटेंट रेगुलेशन के लिए स्वतंत्र संस्था की मांग

कोर्ट ने कहा कि सेल्फ–रेगुलेशन पर्याप्त नहीं है और एक स्वायत्त रेगुलेटरी बॉडी की जरूरत है, जो किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त रहकर निर्णय ले सके। जजों ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि कोई भी व्यक्ति बेमतलब समाज को नुकसान पहुँचाने वाला कंटेंट बनाए।

दिव्यांगों का मजाक उड़ाने पर कोर्ट नाराज

समय रैना पर स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) से जुड़े इलाज पर असंवेदनशील टिप्पणी का आरोप है।
कोर्ट ने इस पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा दिव्यांगों के सम्मान की रक्षा के लिए कड़े कानून होने चाहिए, जैसे एससी-एसटी एक्ट। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि किसी की गरिमा को चोट पहुँचाने वाला मजाक स्वीकार्य नहीं है।

देश विरोधी कंटेंट पर भी सवाल

जस्टिस बागची ने पूछा कि क्या मौजूदा सेल्फ–रेगुलेशन मॉडल सोशल मीडिया या वीडियो प्लेटफॉर्म पर देशविरोधी सामग्री रोक सकता है। वकील प्रशांत भूषण ने ‘एंटी–नेशनल’ शब्द की अस्पष्टता पर सवाल उठाया।
इस पर जस्टिस बागची ने स्पष्ट किया कि कोर्ट सरकारी सेंसरशिप नहीं, बल्कि जिम्मेदार और संतुलित कंटेंट नियंत्रण चाहता है।

यूजर–जेनरेटेड कंटेंट पर सरकार की चिंता

Aadhaar Verification for OTT, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इंटरनेट पर लोग अपना चैनल बनाकर किसी भी तरह का कंटेंट पोस्ट कर देते हैं, जिसकी कोई जवाबदेही नहीं होती। CJI ने कहा कि फ्री स्पीच महत्वपूर्ण है, पर इसकी सीमाएँ भी हैं।सरकार ने बताया कि मंत्रालय इस विषय पर चर्चा करेगा और जरूरत पड़ने पर कानूनों में संशोधन भी किया जा सकता है।

कोर्ट ने सलाह दी कि कोई भी कदम जल्दबाजी में न उठाया जाए। प्रस्ताव को जनता के सामने भी रखा जा सकता है। सरकार ने आश्वासन दिया कि वह सभी पक्षों से बातचीत करेगी और एक सप्ताह बाद स्थिति स्पष्ट करेगी।

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सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड की बात क्यों की?

कोर्ट ने सुझाव दिया कि एडल्ट या अश्लील कंटेंट देखने के लिए आधार आधारित उम्र सत्यापन (Age Verification) लागू किया जा सकता है, ताकि नाबालिगों को अनुचित सामग्री से रोका जा सके। यह केवल एक सुझाव है, आदेश नहीं।

यह मामला किससे जुड़ा है?

सुनवाई कॉमेडियन समय रैना और पॉडकास्टर रणवीर अल्लाहबादिया के खिलाफ याचिकाओं से जुड़ी थी, जिन पर अश्लील टिप्पणी और दिव्यांगों का मजाक उड़ाने के आरोप लगे हैं।

क्या सरकार आधार वेरिफिकेशन या नया कानून लागू करने जा रही है?

सरकार ने कहा है कि इस पर चर्चा चल रही है। सभी स्टेकहोल्डर्स से बात की जाएगी और जरूरत होने पर मौजूदा कानूनों में बदलाव किया जाएगा।

कोर्ट ने रेगुलेशन के लिए क्या सुझाव दिया?

कोर्ट का मानना है कि सेल्फ–रेगुलेशन पर्याप्त नहीं है। इसलिए ओटीटी और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स के लिए एक स्वतंत्र (स्वायत्त) रेगुलेटरी संस्था की जरूरत है।

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