नयी दिल्ली, 23 दिसंबर (भाषा) दुनिया भर में बीमारियों पर केंद्रित 80 फीसदी से ज्यादा जीनोमिक अध्ययन उच्च आय वाले देशों में किए गए हैं, जबकि मध्यम और निम्न आय वाले देशों में ऐसे अध्ययनों की संख्या पांच प्रतिशत से भी कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का हालिया विश्लेषण तो कुछ यही बयां करता है।
विश्लेषण के मुताबिक, डब्ल्यूएचओ के ‘इंटरनेशनल क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री’ मंच पर 1990 से 2024 के बीच वैश्विक स्तर पर 6,500 से अधिक जीनोमिक अध्ययन पंजीकृत कराए गए, जिसमें 2010 के बाद अनुक्रमण प्रौद्योगिकियों में प्रगति, लागत में कमी और व्यापक अनुप्रयोगों के कारण तेजी से वृद्धि हुई।
जीनोमिक अध्ययन के तहत किसी जीनोम की संरचना, कार्य प्रणाली, विकास और अनुक्रमण का अध्ययन किया जाता है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 1990 से 2024 के बीच ‘इंटरनेशनल क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री’ में सबसे ज्यादा जीनोमिक अध्ययन पंजीकृत कराने वाले देशों में चीन पहले, अमेरिका दूसरे और इटली तीसरे पायदान पर है, जबकि भारत शीर्ष 20 देशों में शामिल है।
‘नैदानिक अध्ययनों में मानव जीनोमिक प्रौद्योगिकियां-अनुसंधान परिदृश्य’ शीर्षक वाले विश्लेषण में कहा गया है, “सभी जीनोमिक अध्ययनों में से पांच फीसदी से भी कम अध्ययन निम्न-मध्यम और निम्न आय वाले देशों में किए गए, जबकि उच्च-आय वाले देशों में ऐसे अध्ययनों की संख्या 80 प्रतिशत से अधिक थी।”
विश्लेषण के मुताबिक, निम्न और मध्यम आय वाले देशों को मुख्यत: बहुदेशीय अध्ययनों में ही अध्ययन स्थलों के रूप में शामिल किया गया। इसमें कहा गया है कि भारत ऐसे 235, मिस्र 38, दक्षिण अफ्रीका 17 और नाइजीरिया 14 जीनोमिक अध्ययनों का हिस्सा था।
विश्लेषण के अनुसार, दुनिया भर में किए गए 75 फीसदी से अधिक जीनोमिक अध्ययन कैंसर, दुर्लभ बीमारियों और चयापचय क्रिया संबंधी विकारों पर केंद्रित थे। हालांकि, इसमें कहा गया है कि संक्रामक रोगों के मामले में मानव जीनोम पर ज्यादा अध्ययन नहीं किया गया, जिन्हें लेकर वैश्विक स्तर पर चिंताएं बढ़ रही हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा, “वैश्विक स्तर पर संक्रामक रोगों के लगातार बढ़ते मामलों के बावजूद, केवल तीन फीसदी जीनोमिक अध्ययन इन बीमारियों पर केंद्रित थे।”
उन्होंने कहा, “तपेदिक, एचआईवी संक्रमण और मलेरिया जैसे रोग कई कम संसाधन वाले क्षेत्रों में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकताएं बनी हुई हैं, फिर भी मानव संवेदनशीलता, उपचार प्रतिक्रिया या मेजबान-रोगजनक अंतःक्रियाओं की जांच करने वाले जीनोमिक अध्ययन बहुत कम हैं।”
भाषा पारुल नेत्रपाल पवनेश
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