नयी दिल्ली, 31 अगस्त (भाषा) भारत के उभरते अंतरिक्ष उद्योग ने उपग्रह-आधारित स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन की जोरदार वकालत करते हुए कहा है कि इसके नीलामी का मार्ग इस क्षेत्र के विकास को अवरुद्ध कर सकता है।
इंडियन स्पेस एसोसिएशन (आईएसपीए) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल ए के भट्ट (सेवानिवृत्त) ने कहा कि उपग्रह-आधारित स्पेक्ट्रम की नीलामी से विकास में अड़चन पैदा होगी और अंतरिक्ष क्षेत्र के स्टार्ट-अप के नवाचार अभियान पर असर पड़ सकता है।
आईएसपीए निजी अंतरिक्ष क्षेत्र की कंपनियों की इकाई है जो सरकार के साथ सेतु का काम करती है।
भट्ट ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा कि अंतरिक्ष-आधारित स्पेक्ट्रम की नीलामी का विकल्प चुनना ‘सोने की मुर्गी’ को मारने के समान होगा क्योंकि अंतरिक्ष क्षेत्र देश में तेजी से विकास देखने के लिए तैयार है, जिसने चंद्रयान-3 जैसे जटिल मिशनों को पूरा कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी किया है।
रिलायंस जियो जैसी मोबाइल दूरसंचार कंपनियां इस बात पर जोर दे रही हैं कि सरकार अंतरिक्ष आधारित स्पेक्ट्रम की नीलामी का रास्ता चुने।
भट्ट ने कहा, ‘‘कई लोग कह रहे हैं कि अगर आप इसे नीलामी से नहीं देंगे तो आपको कम पैसा मिलेगा। मैं इस बात से सहमत हूं। लेकिन अगर आप अंतरिक्ष की ओर देख रहे हैं तो आप भविष्य के लिए प्रौद्योगिकी एवं अवसर की ओर देख रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि दुनियाभर के देशों ने अंतरिक्ष आधारित स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन का मार्ग चुना है।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप इसकी नीलामी करते हैं तो आप कृत्रिम तरीके से इसके दाम बढ़ा रहे हैं और एक उभरते उद्योग को बढ़ने से रोक रहे हैं।’’
भट्ट ने कहा कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में इस समय भारत की हिस्सेदारी महज दो प्रतिशत है।
उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष संचार में भारत के सबसे सुदूर कोने तक पहुंच की क्षमता है जहां तक अभी ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी नहीं पहुंची है।
आईएसपीए अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों के साथ बातचीत में और अपने मासिक ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम में अंतरिक्ष क्षेत्र की तरक्की की जरूरत पर जोर दिया है।
दूरसंचार स्पेक्ट्रम का आवंटन केवल नीलामी की प्रक्रिया से करने के उच्चतम न्यायालय के 2012 के आदेश का जिक्र करते हुए भट्ट ने कहा कि उस फैसले में केवल 2जी स्पेक्ट्रम की बिक्री का उल्लेख था।
भाषा वैभव रंजन
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