‘एलजीबीटीक्यूआईए प्लस’ समुदाय के बच्चों को करना पड़ता है अधिक दुर्व्यवहार का सामना: सर्वेक्षण

‘एलजीबीटीक्यूआईए प्लस’ समुदाय के बच्चों को करना पड़ता है अधिक दुर्व्यवहार का सामना: सर्वेक्षण

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  • Publish Date - December 14, 2025 / 02:01 PM IST,
    Updated On - December 14, 2025 / 02:01 PM IST

गुवाहाटी, 14 दिसंबर (भाषा) हाल में हुए एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि ‘एलजीबीटीक्यूआईए प्लस’ समुदाय के बच्चों और किशोरों को अपने घरों, स्कूलों और आस-पड़ोस में सबसे अधिक भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।

‘एलजीबीटीक्यूआईए प्लस’ शब्द का इस्तेमाल विभिन्न यौन रुझानों और लैंगिक पहचान वाले लोगों के लिए किया जाता है जिसमें लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर या क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स, एसेक्सुअल आते हैं तथा इसमें अन्य पहचान वाले लोगों को शामिल करने के लिए प्लस का चिह्न जोड़ा गया है।

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड, ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ‘एलजीबीटीक्यू प्लस’ समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाले कोलकाता के संगठन ‘ब्रिज’ ने अपने एक हालिया सर्वेक्षण में ‘एलजीबीटीक्यू प्लस’ समुदाय के 900 से अधिक व्यक्तियों को शामिल किया था, जिसमें यह पाया गया कि 12 से 15 वर्ष की आयु वाले बच्चों को परेशान करने की सबसे अधिक घटनाएं होती है।

‘ब्रिज’ के संस्थापक निदेशक पृथ्वीराज नाथ ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि इससे कई बच्चे स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं और वे शिक्षा, रोजगार और आय संबंधी सुरक्षा से वंचित हो जाते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने, 2014 में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के फैसले और 2019 के ट्रांसजेंडर संरक्षण अधिनियम के बावजूद ‘एलजीबीटीक्यू प्लस’ समुदाय के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कार्यस्थलों और सार्वजनिक जीवन में निरंतर बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है।’’

नाथ ने कहा कि बुनियादी मानवाधिकार अब भी कई लोगों की पहुंच से बाहर हैं और यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम ‘एलजीबीटीक्यूआईए प्लस’ समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविकताओं और चुनौतियों को सामने लाएं तथा समुदाय के समान अधिकारों और समावेश की दिशा में समाज सभी तबकों के साथ संवाद करें।

‘एलजीबीटीक्यूआईए प्लस’ अधिकारों के संगठन और सहायता समूह ‘जोमोनॉय’ की संस्थापक रुद्राणी राजकुमारी ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार और सभी हितधारकों को भेदभाव को कम करने और समान अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए एक खाका बनाने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।

भाषा सुरभि शोभना

शोभना