नयी दिल्ली, 23 मई (भाषा)दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक ‘जासूसी गिरोह’ का हिस्सा होने के एक आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया। आरोपी पर सशस्त्र बलों की संवेदनशील और गोपनीय जानकारी कथित तौर पर पाकिस्तानी अधिकारियों को देने का आरोप है।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि जासूसी का अपराध केवल एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह ‘‘भारत की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा’’ के खिलाफ है और यह राष्ट्र के साथ विश्वासघात है।
अदालत ने 22 मई को जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘यह याद रखना चाहिए कि राष्ट्र शांति से रहता है, क्योंकि इसके सशस्त्र बल सतर्क रहते हैं। यह उनका बिना शर्त कर्तव्य और प्रतिबद्धता है, जिससे नागरिकों को संवैधानिक व्यवस्था की सुरक्षा और निरंतरता का आश्वासन मिलता है। ऐसे अपराधों के परिणाम दूरगामी हैं – वे अनगिनत व्यक्तियों के जीवन को खतरे में डालते हैं, सैन्य तैयारियों से समझौता करते हैं, और राज्य की संप्रभुता को खतरा पहुंचाते हैं।’
फैसले में इस तरह के कृत्यों पर गौर किया गया, जिनमें भारतीय सशस्त्र बलों से संबंधित संवेदनशील और गोपनीय जानकारी कथित तौर पर विदेशी आकाओं को दी गई हैं, जो ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के मूल में चोट पहुंचाने’ जैसा है।
अदालत ने कहा, ‘‘ये सामान्य अपराध नहीं हैं – ये ऐसे अपराध हैं जो उन व्यक्तियों पर किए गए विश्वास को कमजोर करते हैं जो या तो हमारे सैन्य प्रतिष्ठानों का हिस्सा हैं या उन तक उनकी पहुंच है।’’
दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया कि कबाड़ कारोबारी मोहसिन खान ने जासूसी गिरोह में महत्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभाई और पोखरण में भारतीय सेना में तैनात एक सह-आरोपी से प्राप्त गोपनीय सैन्य सूचनाओं को अवैध रूप से भेजने में मदद की।
पुलिस ने आरोप लगाया है कि वह पाकिस्तान उच्चायोग के कुछ अधिकारियों के साथ सीधे संपर्क में था और पैसों के लिए जासूसी का काम करता था।
आरोपी ने कई आधारों पर जमानत देने का अनुरोध किया था, जिनमें यह भी शामिल था कि वह काफी समय से न्यायिक हिरासत में है और मुकदमे को पूरा होने में और समय लग सकता है।
भाषा धीरज दिलीप
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