कोलकाता, 16 दिसंबर (भाषा) निर्वाचन आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची का मसौदा प्रकाशित किया जिसमें अधिकारियों ने बताया कि मृत्यु, पलायन और गणना प्रपत्र जमा न करने सहित विभिन्न कारणों से 58 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
अगले साल की शुरुआत में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इन हटाए गए नामों से कई महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों पर असर पड़ा है तथा इससे राजनीतिक मतभेद और भी बढ़ गए हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चार नवंबर से 11 दिसंबर तक आयोजित विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभ्यास के बाद मसौदा मतदाता सूची से 58,20,898 नाम हटा दिए गए हैं, जिससे राज्य के मतदाताओं की संख्या 7.66 करोड़ से घटकर 7.08 करोड़ हो गई है।
आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रभावित मतदाताओं के लिए सुनवाई प्रक्रिया लगभग एक सप्ताह में शुरू हो जाएगी।
अधिकारी ने बताया कि मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन और सुनवाई शुरू होने के बीच में अंतराल सुनवाई नोटिसों की छपाई, संबंधित मतदाताओं को नोटिस भेजने और चुनाव आयोग के डेटाबेस पर उनका ‘डिजिटल बैकअप’ बनाने के कारण होगा।
अधिकारियों ने बताया कि इसके अलावा, जिन मतदाताओं के नाम प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए हैं और जिन्होंने इस संबंध में दावे व आपत्तियां दाखिल की हैं, साथ ही जिन मतदाताओं के गणना प्रपत्रों में तार्किक विसंगतियां पाई गई हैं लेकिन जिनके नाम मसौदा सूची में शामिल हैं, उन्हें सुनवाई के लिए बुलाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही आयोग को लगभग 85 लाख मतदाताओं के गणना प्रपत्र प्राप्त हुए हैं, जिनमें 2002 की सूची के साथ नामों में असंगतियां पाई गई हैं। इन्हें भी सुनवाई के लिए तलब किया जा सकता है।
बहरहाल, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि सुनवाई सत्रों के लिए कुल कितने मतदाताओं को बुलाया जाएगा, लेकिन आयोग के सूत्रों ने कहा कि यह संख्या दो करोड़ तक पहुंच सकती है।
पिछले सप्ताह निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कुल संख्याओं के अलावा निर्वाचन क्षेत्र-वार जारी किए गए आंकड़ों पर राज्य में तीखी राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। इनमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक के रूप में उभरा है।
भवानीपुर में जनवरी 2025 में सूचीबद्ध 2,06,295 मतदाताओं में से 44,787 नाम हटाए गए, जो विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के नंदीग्राम क्षेत्र में हुए हटाए गए नामों (2,78,212 मतदाताओं में से 10,599 नाम) की तुलना में लगभग चार गुना अधिक है।
राज्य के 294 विधानसभा क्षेत्रों में सबसे अधिक नाम हटाए जाने का मामला उत्तर कोलकाता के चौरंगी में सामने आया, जिसका प्रतिनिधित्व तृणमूल कांग्रेस की विधायक नयना बंद्योपाध्याय करती हैं। यहां 74,553 नाम मतदाता सूची से काटे गए।
वरिष्ठ मंत्री और कोलकाता के महापौर फिरहाद हकीम के निर्वाचन क्षेत्र कोलकाता पोर्ट से 63,730 नाम हटाए गए। वहीं, मंत्री आरूप बिस्वास के टॉलीगंज क्षेत्र में 35,309 नाम हटाए गए।
जिन अन्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाए गए, उनमें शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु का दमदम (33,862 नाम), वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य का उत्तर दमदम (33,912 नाम) और मंत्री इंद्रनील सेन का चंदननगर (25,478 नाम) शामिल हैं।
जिला स्तर पर आंकड़ों के अनुसार दक्षिण 24 परगना में सबसे अधिक 8,16,047 नाम हटाए गए।
मतदाता सूची में इस व्यापक संशोधन की तुलना बिहार से की जा रही है, जहां इस वर्ष की शुरुआत में इसी तरह की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया में लगभग 65 लाख नाम मसौदा सूची से बाहर कर दिए गए थे, जिससे व्यापक राजनीतिक विरोध देखने को मिला था।
राज्य में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने की संभावना को देखते हुए मतदाता सूची का मसौदा, बूथवार विस्तृत सूची जिसमें हटाए गए मतदाताओं के नाम और हटाने के कारण शामिल हैं, पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) की वेबसाइट, निर्वाचन आयोग के मतदाता पोर्टल और ईसीआईएनईटी ऐप पर उपलब्ध करा दिए गए हैं।
हटाए गए नामों की सूची एक अलग पोर्टल के माध्यम से उपलब्ध है, जिससे मतदाता यह जांच सकते हैं कि उनके या परिवार के सदस्यों के नाम हटाए गए हैं या नहीं और किस श्रेणी के अंतर्गत।
आयोग के सूत्रों ने बताया कि मुख्य रूप से हटाए गए नाम इकट्ठा नहीं किए जा सके एसआईआर गणना प्रपत्र से संबंधित हैं, जिनकी संख्या 58 लाख से अधिक थी।
इन मामलों में ऐसे मतदाता शामिल हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है, या जो अपने पंजीकृत पते से स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए, या जिनका पता नहीं लगाया जा सका, या जो एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में दोहरे मतदाता के रूप में दर्ज थे।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय द्वारा गत सप्ताह जारी आंकड़ों के अनुसार, जहां 24 लाख से अधिक मतदाताओं को ‘मृत’ चिह्नित किया गया है, वहीं 12 लाख से अधिक मतदाताओं का उनके पंजीकृत पते पर पता नहीं चल सका, लगभग 20 लाख मतदाता अपने पिछले निर्वाचन क्षेत्रों से स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए हैं और 1.38 लाख मतदाताओं के नाम दो बार दर्ज किए गए हैं।
उन्होंने बताया कि गणना के दौरान सामने आई अन्य जटिलताओं के आधार पर 57,000 से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इन हटाए गए नामों के बाद मसौदा मतदाता सूची में पूरे राज्य में 7,08,16,631 मतदाताओं के नाम हो सकते हैं।
निर्वाचन आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि मसौदा मतदाता सूची से नाम हटाए जाने का मतलब प्रभावित मतदाताओं के लिए चुनाव प्रक्रिया का अंत नहीं है।
आयोग के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘पीड़ित व्यक्ति मसौदा सूची के प्रकाशन के बाद 16 दिसंबर, 2025 से 15 जनवरी 2026 तक दावों और आपत्तियों को प्राप्त करने के लिए निर्धारित अवधि के दौरान घोषणा पत्र और सहायक दस्तावेजों के साथ प्रपत्र-6 में अपने दावे प्रस्तुत कर सकते हैं।’’
पश्चिम बंगाल के लिए विशेष मतदाता सूची पर्यवेक्षक और पूर्व नौकरशाह सुब्रत गुप्ता ने जनता की आशंकाओं को दूर करते हुए कहा कि जिन मतदाताओं के नाम मसौदा सूची में नहीं हैं, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने बताया कि लगभग 30 लाख मतदाता, जिनका विवरण 2002 की मतदाता सूची से मेल नहीं खा सका, उन्हें सुनवाई के लिए बुलाया जाएगा, जहां उन्हें अंतिम निर्णय लेने से पहले दस्तावेज प्रस्तुत करने और पात्रता साबित करने का अवसर मिलेगा।
औपचारिक प्रकाशन से एक दिन पहले ही बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) के पास मसौदा मतदाता सूची दिखनी शुरू हो गयी थी, जिससे पहले ही तीखी राजनीतिक बहस छिड़ गई।
मंगलवार को मतदाता सूची जारी होने के बाद आयोग ने सभी मतदाताओं को ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से या अपने स्थानीय बीएलओ कार्यालय में जाकर ऑफलाइन अपने नामों का सत्यापन करने की सलाह दी।
मसौदा मतदाता सूची की ‘हार्ड कॉपी’ बूथ स्तर पर बीएलओ के पास उपलब्ध रहेगी और उनसे कहा गया है कि प्रकाशन के दिन वे यथासंभव बूथों पर उपस्थित रहें।
मतदाता सूची की ‘सॉफ्ट कॉपी’ राज्य की आठ मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों को भी उपलब्ध कराई जाएगी।
मसौदा मतदाता सूचियों के प्रकाशन से राज्य में राजनीतिक खींचतान और तेज हो गयी है।
मतदाता सूची जारी होने के तुरंत बाद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और निर्वाचन आयोग पर ‘‘संयुक्त साजिश’’ का आरोप लगाते हुए दावा किया कि ‘‘लगभग दो करोड़ मतदाताओं की सुनवाई’’ की संभावना नागरिकों को डराने और उनकी नागरिकता पर सवाल उठाने का एक प्रयास है।
भाजपा ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने इन आरोपों का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘यह तो बस शुरुआत है। नाश्ता तो अभी शुरू हुआ है। दोपहर का भोजन, चाय और फिर रात का खाना भी होगा।’’
हालांकि उन्होंने हटाए गए नामों की नयी संख्या बताने से परहेज किया लेकिन कहा कि वह आयोग के कार्यक्रम के अनुसार 14 फरवरी को अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद इस बारे में बात करेंगे।
भाषा
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