संसदीय समितियों का कार्यकाल दो साल करने पर विचार कर रही है सरकार

संसदीय समितियों का कार्यकाल दो साल करने पर विचार कर रही है सरकार

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  • Publish Date - September 27, 2025 / 04:39 PM IST,
    Updated On - September 27, 2025 / 04:39 PM IST

नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) सरकार संसद की स्थायी समितियों का कार्यकाल बढ़ाकर दो साल करने पर विचार कर रही है, क्योंकि कुछ सांसदों ने शिकायत की है कि मौजूदा एक साल का कार्यकाल कोई सार्थक योगदान देने के लिए बहुत कम है।

सरकार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति सी. पी. राधाकृष्णन के साथ विचार-विमर्श के बाद इस संबंध में कोई निर्णय ले सकती है।

संसदीय समितियों का नया कार्यकाल आमतौर पर सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में प्रारंभ होता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि समितियां किस तारीख को गठित की गई हैं।

संसद से जुड़े सूत्रों ने बताया कि कुछ सदस्यों ने सरकार से समितियों का कार्यकाल वर्तमान एक साल से बढ़ाकर कम से कम दो साल करने का अनुरोध किया था ताकि समितियां विचार-विमर्श के लिए चुने गए विषयों पर प्रभावी ढंग से विचार कर सकें।

नई लोकसभा के गठन के तुरंत बाद विभिन्न राजनीतिक दलों के परामर्श से समितियों का गठन किया जाता है, जिन्हें सदन में उनकी संख्या के अनुपात में इन समितियों की अध्यक्षता का दायित्व सौंपा जाता है।

आमतौर पर नई लोकसभा के कार्यकाल की शुरुआत में नामित अध्यक्ष, हर साल समितियों के गठन के दौरान अपने पद पर बने रहते हैं, जब तक कि किसी राजनीतिक दल द्वारा बदलाव का अनुरोध न किया जाए।

कई बार सदस्य किसी अन्य समिति का हिस्सा बनना चाहते हैं और ऐसे अनुरोधों पर संबंधित सदनों के पीठासीन अधिकारियों द्वारा भी सकारात्मक रूप से विचार किया जाता है।

संसद की 24 विभाग-संबंधित स्थायी समितियां हैं। इनमें आठ की अध्यक्षता राज्यसभा के सदस्य करते हैं, जबकि 16 का नेतृत्व लोकसभा के सदस्य करते हैं।

संसदीय प्रणाली में वित्तीय समितियां, तदर्थ समितियां और अन्य समितियां भी शामिल हैं जिनका गठन समय-समय पर विधेयकों और अन्य मुद्दों पर विचार के लिए किया जाता है।

भाषा हक पवनेश

पवनेश