हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम संबंधित याचिका की सुनवाई में सावधानी से आगे बढ़ेंगे: उच्चतम न्यायालय

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम संबंधित याचिका की सुनवाई में सावधानी से आगे बढ़ेंगे: उच्चतम न्यायालय

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  • Publish Date - September 25, 2025 / 01:22 PM IST,
    Updated On - September 25, 2025 / 01:22 PM IST

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों को दी गई चुनौतियों पर विचार करते समय सावधानी बरतेगा।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ 1956 अधिनियम के तहत उत्तराधिकार के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

पीठ ने कहा, ‘‘हिंदू समाज की जो संरचना पहले से मौजूद है, उसे कमतर मत कीजिए। एक अदालत के रूप में, हम आपको सावधान कर रहे हैं। एक हिंदू सामाजिक संरचना है और आप इसे गिरा नहीं सकते… हम नहीं चाहते कि हमारा फैसला किसी ऐसी चीज को नष्ट दे जो हजारों सालों से चली आ रही है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि यद्यपि महिलाओं के अधिकार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ‘‘सामाजिक संरचना और महिलाओं को अधिकार देने के बीच संतुलन’’ होना चाहिए।

पीठ ने व्यापक मुद्दों पर विचार किए जाने तक समाधान की संभावना तलाशने के लिए संबंधित पक्षों को उच्चतम न्यायालय के मध्यस्थता केंद्र में भेज दिया।

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि चुनौती दिए गए प्रावधान महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण हैं।

सिब्बल ने कहा कि महिलाओं को केवल परंपराओं के कारण समान उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि यह ‘‘समुचित ढंग से तैयार किया गया’’ अधिनियम है और आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ‘‘सामाजिक ढांचे को नष्ट’’ करना चाहते हैं।

शीर्ष अदालत के समक्ष विचारणीय मुद्दा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 और 16 है, जो बिना वसीयत के या बिना वसीयत के मरने वाली हिंदू महिलाओं की संपत्ति के हस्तांतरण को नियंत्रित करती है।

अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, जब किसी हिंदू महिला की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति उसके माता-पिता से पहले उसके पति के उत्तराधिकारियों को मिलती है।

भाषा

देवेंद्र माधव

माधव