आईआईटी गुवाहाटी ने पूर्वोत्तर में उगने वाली बांस से पर्यावरण-अनुकूल सामग्री विकसित की

आईआईटी गुवाहाटी ने पूर्वोत्तर में उगने वाली बांस से पर्यावरण-अनुकूल सामग्री विकसित की

  •  
  • Publish Date - July 24, 2025 / 04:06 PM IST,
    Updated On - July 24, 2025 / 04:06 PM IST

नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने पूर्वोत्तर भारत में तेजी से बढ़ने वाली बांस की प्रजाति ‘बांबूसा टुल्डा’ से बना एक पर्यावरण-अनुकूल मिश्रित पदार्थ विकसित किया है, जिसे जैविक रूप से नष्ट होने वाले पॉलीमर के साथ मिला कर तैयार किया गया है। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

अत्यधिक मजबूत,ताप सहन करने, कम नमी का अवशोषण करने और किफायती जैसे अपने गुणों के कारण यह ‘ऑटोमोटिव इंटीरियर’ में उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक प्लास्टिक का एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है।

‘ऑटोमोटिव इंटीरियर’ में वाहन के अंदर वे सभी घटक शामिल हैं, जो यात्रियों के सफर के दौरान आराम और सुरक्षा प्रदान करते हैं। साथ ही, वे वाहन के आंतरिक हिस्से को भी सुंदर बनाने में योगदान देते हैं।

इस शोध के नतीजे प्रतिष्ठित पत्रिका, ‘एनवायरनमेंट, डेवलपमेंट एंड सस्टेनबिलिटी’ (स्प्रिंगर नेचर) में प्रकाशित हुए हैं।

मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर पूनम कुमारी के नेतृत्व में किया गया यह शोध न केवल प्लास्टिक कचरे की समस्या का समाधान करता है बल्कि विशेष रूप से ‘ऑटोमोटिव’ विनिर्माण उद्योग में हरित सामग्रियों की बढ़ती वैश्विक मांग का समाधान भी प्रदान करता है।

कुमारी ने कहा, ‘‘मिश्रण का मूल्यांकन 17 विभिन्न मापदंडों पर किया गया ताकि उनकी मजबूती, तापीय प्रतिरोध, टिकाऊपन, नमी का अवशोषण और प्रति किलोग्राम लागत आदि का परीक्षण किया जा सके।’’

उन्होंने कहा, ‘‘तैयार सामग्री का उपयोग उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और टिकाऊ निर्माण सामग्री आदि में घटकों/पुर्ज़ों के डिजाइन के लिए किया जा सकता है। यह उत्पाद लकड़ी/लोहे/प्लास्टिक के घटकों का स्थान लेगा और इस पर लागत पूर्व के समान होगी तथा इससे सतत विकस लक्ष्यों की पूर्ति होगी। यह विकास हरित प्रौद्योगिकी क्रांति के तहत ‘मेक इन इंडिया’ नीति के अनुरूप है।’’

शोध टीम वर्तमान में विकसित सामग्री के उपयोग का परीक्षण कर रही है ताकि उत्पादन से लेकर निपटान तक, इसके पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया जा सके।

भाषा सुरभि सुभाष

सुभाष