हेल्थ इंश्योरेंस लेने से पहले कॉन्ट्रैक्ट के इन 5 शब्दों का जाने मतलब.. नहीं तो होंगे परेशान

हेल्थ इंश्योरेंस लेने से पहले कॉन्ट्रैक्ट के इन 5 शब्दों का जाने मतलब.. नहीं तो होंगे परेशान

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  • Publish Date - January 24, 2021 / 11:38 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:13 PM IST

नई दिल्ली। हेल्थ इंश्योरेंस कराने से पहले उसकी शर्तों को जानना जरूरी होता है हालांकि बीमा कॉन्ट्रैक्ट की बारीकियों को समझना आम लोगों के लिए जरा मुश्किल होता है। बीमा कॉन्ट्रैक्ट के नियमों, शर्तों और बीमा से जुड़े शब्द किसी के आम लोगों के लिए समझना मुश्किल है। आज हम आपको कुछ ऐसे ही तकनीकी शब्दों के बारे में बताने जा रहे हैं।

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को-पेमेंट में पॉलिसीधारक बीमा क्लेम के एक हिस्से का भुगतान करता है। को-पेमेंट, बीमा लेने वाले और बीमा कंपनी के बीच दावा राशि के पूर्व-निर्धारित प्रतिशत को साझा करने के विकल्प को बताता है। इसमें बीमा लेने वाला व्यक्ति अपनी जेब से कुल दावा राशि का कुछ प्रतिशत हिस्सा खुद वहन करने के लिए सहमत होता है। इस ऑप्शन को चुनने से प्रीमियम कम करने में मदद मिलती है।

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डिडक्टीबल या कटौती एक विशेष राशि होती है जिसके तहत बीमाधारक को हेल्थ इंश्योरेंस अमल में आने से पहले के खर्च को उठाना होता है। इस व्यवस्था से भी प्रीमियम कम करन में मदद मिलती है क्योंकि यह व्यवस्था बीमाकर्ता को उनके दायित्व के एक हिस्से से राहत देती है। डिडक्टेबल जितना ज्यादा होगा प्रीमियम उतना ही कम होगा।

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इसका सबंध अस्पताल या डे केयर सेंटर में जनरल या लोकल अनेस्थेसिया के तहत 24 घंटे से कम समय के लिए भर्ती होने की स्थिति में किए गए इलाज या ऑपरेशन से होता है। डे केयर ट्रीटमेंट में ओपीडी शामिल नहीं हैं। कुछ सामान्य डे केयर ट्रीटमेंट में मोतियाबिंद सर्जरी, कोरोनरी एंजियोग्राफी, कीमो थेरेपी, डायलिसिस, आदि शामिल किए जाते हैं।

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पॉलिसी डॉक्युमेंट की प्राप्ति की तारीख से 15 दिन की अवधि फ्री लुक पीरियड कहलाती है। यह हर नए स्वास्थ्य बीमा या व्यक्तिगत दुर्घटना पॉलिसी धारक को दी जाती है। फ्री लुक पीरियड के दौरान आप फिर से विश्लेषण कर सकते हैं कि क्या कोई विशेष प्लान आपके लिए सही है या नहीं। अगर प्री लुक पीरियड में आपको पॉलिसी ठीक नहीं लगती है, तो इसे रद्द किया जा सकता है और प्रीमियम वापस कर दिया जाएगा. हालांकि, कवर किए जाने की स्थिति में बीमाकर्ता आपसे प्रशासनिक खर्चों के लिए चार्ज लेगा।

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यह ध्यान रखें कि अस्पताल में भर्ती होने से पहले 30 से 60 दिन की अवधि प्री-हॉस्पिटलाईजेशन जबकि अस्पताल में भर्ती के 90 से 180 दिन की अवधि पोस्ट-हॉस्पिटलाईजेशन की मानी जाती है। अस्पताल में भर्ती होने से पहले वाले खर्चों में डायग्नोस्टिक टेस्ट, कंसल्टेशन आदि को शामिल किया जाता है। अस्पताल में भर्ती होने के बाद किए गए खर्च में फॉलो-अप दवाएं, जांच, फिजियोथेरेपी, डायलिसिस, कीमो उपचार आदि शामिल होते हैं।