मानसिेक सामाजिक दिव्यांगता से पीड़ित बेघर लोगों का पुनर्वास एक संवेदनशील मुद्दा : न्यायालय

मानसिेक सामाजिक दिव्यांगता से पीड़ित बेघर लोगों का पुनर्वास एक संवेदनशील मुद्दा : न्यायालय

  •  
  • Publish Date - July 25, 2025 / 03:42 PM IST,
    Updated On - July 25, 2025 / 03:42 PM IST

नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मानसिक सामाजिक दिव्यांगता से पीड़ित बेघर व्यक्तियों का पुनर्वास एक संवेदनशील मुद्दा है और उन्होंने केंद्र को इसे ‘‘बेहद गंभीरता’’ से लेने का निर्देश दिया।

केंद्र ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को सूचित किया कि प्राधिकारी इस मामले पर पहले से ही विचार-विमर्श कर रहे हैं और बैठकें चल रही हैं।

सरकारी वकील ने अदालत को अब तक हुई प्रगति से अवगत कराने के लिए आठ सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया।

पीठ ने कहा, ‘‘आपको इसे बहुत गंभीरता से लेना होगा और जितना संभव हो सके कम समय में लेना होगा।’’

शीर्ष अदालत अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मानसिक सामाजिक दिव्यांगता से पीड़ित बेघर लोगों के लिए एक नीति बनाने और उसे लागू करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

शीर्ष अदालत ने अप्रैल में इस याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था।

मानसिक सामाजिक दिव्यांगता से तात्पर्य उन चुनौतियों से है, जिनका सामना मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त लोग भेदभाव, समर्थन की कमी आदि के कारण करते हैं।

बंसल ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र ने इस मामले में एक जवाबी हलफनामा दायर किया है।

पीठ ने कहा कि एक संक्षिप्त जवाब रिकॉर्ड में है।

केंद्र के वकील ने कहा, ‘‘हम पहले से ही विचार-विमर्श कर रहे हैं। बैठकें चल रही हैं। मैं अब तक की प्रगति को रिकॉर्ड में दर्ज करने के लिए आठ हफ़्ते का समय मांग रहा हूं।’’

बंसल ने कहा कि बेघर लोग ‘‘सचमुच फुटबॉल बनते जा रहे हैं’’ और पुलिस को कानून के तहत उनके पुनर्वास के लिए कुछ करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कई बेघर लोगों में महिलाएं भी शामिल हैं और ऐसे मामलों में पुलिस की ओर से नकारात्मक रवैया अपनाया जाता है, खासकर उचित पुनर्वास कार्यक्रम के अभाव के कारण।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इन सभी मुद्दों पर सरकार की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हें वापस आने दीजिए, फिर हम इसकी निगरानी करेंगे। हम इसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।’’

जब केंद्र के वकील ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 का हवाला दिया, तो पीठ ने कहा, ‘‘अधिनियम तो हैं। उनका क्रियान्वयन कहां है, उनका अनुपालन कहां है।’’

शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर के लिए स्थगित कर दी है।

भाषा

गोला दिलीप

दिलीप