नयी दिल्ली, 30 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को तमिलनाडु सरकार से कहा कि वह जाने-माने यूट्यूबर सावुक्कू शंकर को कई आपराधिक मामलों के सिलसिले में रिहा किए जाने के तुरंत बाद हिरासत में लिए जाने के पीछे के कारणों से दो सितंबर को अवगत कराए।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर घटनाएं अलग-अलग हैं तो वह प्राथमिकी को एक साथ नहीं जोड़ सकती।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जेल में बंद यूट्यूबर की याचिका पर सुनवाई 2 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी, जो सुनवाई की अगली तारीख है।
तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम अलग-अलग (प्राथमिकी) को एक साथ नहीं जोड़ेंगे। हिरासत आदेश पर एक नजर डालें और हमें बताएं कि एक दिन उन्हें रिहा करके फिर से हिरासत में क्यों लिया गया।’’
रोहतगी ने जवाब दिया, ‘‘मुझे सोमवार तक का समय दें।’’
यह देखते हुए कि 15 प्राथमिकियों को पहले ही एक साथ जोड़ दिया गया है, पीठ ने कहा कि वह प्रथम दृष्टया राज्य सरकार द्वारा गुंडा अधिनियम के तहत आरोपी को नए सिरे से हिरासत में लेने के पहलू पर विचार करेगी।
पीठ ने कहा, ‘‘आप (रोहतगी) इस बात का पता लगाएं कि क्या 15 प्राथमिकियां एक साक्षात्कार से संबंधित हैं। हम सोमवार को देखेंगे।’’
राज्य सरकार ने शुरू में आरोप लगाया कि शंकर ने कहा है कि मद्रास उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीश भ्रष्ट हैं और यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए। रोहतगी ने कहा कि शंकर ने महिला पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी बयान दिए हैं।
शंकर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालासुब्रमण्यम ने रोहतगी की दलीलों का विरोध किया और कहा कि देश में कुल हिरासत में लिए जाने वाले लोगों में से 51 प्रतिशत हर साल तमिलनाडु से होते हैं और यह गुंडा अधिनियम के ‘बड़े पैमाने पर दुरुपयोग’ को दर्शाता है।
शंकर ने राज्य पुलिस द्वारा अपनी ताजा हिरासत को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।
भाषा वैभव माधव
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