नयी दिल्ली, नौ अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कौशल विकास निगम घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किये गए आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू से सोमवार को कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में जांच शुरू करने से पहले उनकी सहमति अनिवार्य होने की दलील को इस रूप में देखा जाए कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का उद्देश्य नाकाम नहीं हो।
इस अधिनियम में एक संशोधन के जरिये धारा 17ए शामिल कर इसे (धारा को) 26 जुलाई, 2018 से प्रभावी किया गया था। यह एक लोकसेवक द्वारा किये गये कथित अपराध की जांच करने के लिए पुलिस अधिकारी को सक्षम प्राधिकार से अनुमति लेने की अनिवार्य जरूरत का प्रावधान करता है।
न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा, ‘‘धारा 17ए की व्याख्या करते समय, हमें यह ध्यान रखना होगा कि भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए अधिनियम का मूल उद्देश्य नाकाम न हो।’’
तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता के लिए अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के साथ पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि संसद ने धारा 17ए को अपने आधिकारिक कर्तव्य निर्वहन के दौरान निर्णय लेने वाले लोकसेवक को परेशान किये जाने को रोकने के लिए शामिल किया था। इसके बाद, शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी की।
उच्चतम न्यायालय नायडू की उस याचिका की सुनवाई कर रहा है, जिसमें कौशल विकास निगम घोटाला मामले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से उच्च न्यायालय के इनकार करने संबंधी आदेश को चुनौती दी गई है।
सुनवाई करीब दो घंटे तक चली। इस दौरान, साल्वे ने कहा कि धारा 17ए ने कानून को मजबूत किया है क्योंकि यह लोकसेवक को परेशान किये जाने के भय से मुक्त होकर काम करने की छूट देता है।
साल्वे ने निचली अदालत के हिरासत संबंधी आदेश का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें कहा गया है कि मामला 2021 की एक प्राथमिक जांच पर आधारित है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘इसलिए, 2018 के संशोधन के बाद, एक लोकसेवक के खिलाफ शुरू की गई कोई भी जांच के लिए धारा 17ए के तहत मंजूरी की जरूरत होगी, भले ही अपराध की तारीख कुछ भी हो।’’
नायडू को मामले में नौ सितंबर को गिरफ्तार किया गया था। वह अभी न्यायिक हिरासत में हैं।
भाषा सुभाष माधव
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