ईडी के अधिकार संबंधी फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर 31 जुलाई को सुनवाई करेगा न्यायालय

ईडी के अधिकार संबंधी फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर 31 जुलाई को सुनवाई करेगा न्यायालय

ईडी के अधिकार संबंधी फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर 31 जुलाई को सुनवाई करेगा न्यायालय
Modified Date: July 15, 2025 / 12:16 pm IST
Published Date: July 15, 2025 12:16 pm IST

नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को 2022 के उस फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 31 जुलाई की तारीख तय की, जिसमें पीएमएलए के तहत धन शोधन में शामिल लोगों की गिरफ्तारी और संपत्ति कुर्क करने के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारों को बरकरार रखा गया था।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध मामले को 31 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया, जब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह उपलब्ध नहीं हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर मामला 31 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाता है, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

 ⁠

सात मई को, शीर्ष अदालत ने केंद्र और याचिकाकर्ताओं से उस फैसले को चुनौती देने को लेकर मुद्दे तय करने को कहा, जिसमें आरोपियों की गिरफ्तारी और संपत्ति कुर्क करने की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा गया था।

केंद्र ने तर्क दिया था कि पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई, अगस्त 2022 में याचिकाओं पर नोटिस जारी करने वाली पीठ द्वारा उठाए गए दो विशिष्ट मुद्दों से आगे नहीं बढ़ सकती।

सिब्बल ने पहले दलील दी थी कि मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपना जरूरी है।

जुलाई 2022 में शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के तहत धन शोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और आरोपियों की गिरफ्तारी की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था।

उसी वर्ष अगस्त में, शीर्ष अदालत अपने फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमत हुई और कहा कि दो पहलुओं पर ‘प्रथम दृष्टया’ पुनर्विचार की आवश्यकता है।

दुनिया भर में वित्तीय व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए धन शोधन को एक ‘खतरा’ मानते हुए, उच्चतम न्यायालय ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा और रेखांकित किया कि यह कोई ‘सामान्य अपराध’ नहीं है।

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि 2002 के कानून के तहत अधिकारी ‘वास्तव में पुलिस अधिकारी नहीं थे’ और ईसीआईआर को दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दर्ज प्राथमिकी के समान नहीं माना जा सकता।

उसने कहा कि प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर की प्रति प्रदान करना अनिवार्य नहीं है और यदि ईडी गिरफ्तारी के समय इसके कारणों का खुलासा कर दे, तो यह पर्याप्त है।

2022 का फैसला पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाने वाली 200 से अधिक याचिकाओं पर आया था। विपक्ष अक्सर दावा करता है कि सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए इस कानून का इस्तेमाल करती है।

भाषा वैभव मनीषा

मनीषा


लेखक के बारे में