कई रहस्यों से भरा है जगन्नाथ मंदिर का खजाना..! आखिर कहां गुम हुई इसके दरवाजे की चाबी? जानें पूरी कहानी | Jagannath Mandir Ke Khajane Ka Rahasya

बताया जाता है कि इस रत्नभंडार में ओडिशा के राजाओं द्वारा दान किया गया खजाना और आभूषण रखे हैं!Jagannath Mandir Ke Khajane Ka Rahasya

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  • Publish Date - May 29, 2024 / 06:21 PM IST,
    Updated On - July 3, 2024 / 10:14 PM IST

Jagannath Mandir Ke Khajane Ka Rahasya : पुरी। भारत के चारों धामों में एक पुरी जगन्नाथ मंदिर भी है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में साक्षात भगवान श्रीकृष्ण विराजमान हैं। उनके साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी वहीं स्थापित हैं। हर साल विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा निकलती है, जिसमें लाखों लोग पहुंचते हैं। अगर देखा जाए तो मंदिर में कई रहस्य ​निहित हैं लेकिन इस वक्त मंदिर के चर्चा में बने रहने का कुछ और ही मतलब है।

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Jagannath Mandir Ke Khajane Ka Rahasya : इस समय जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार का रहस्य अब राजनीतिक माहौल बन गया है। अगर जगन्नाथ के रत्न भंडार की करें तो यहां पर तीनों देवों के जेवरात रखे हुए हैं। भक्त जो भी गहने अपने आराध्य को चढ़ाते हैं, उनको रत्न भंडार में रखा जाता है। पुराने समय में भी राजाओं और भक्तों की तरफ से आराध्य को अर्पण किए गए गहने इसी रत्नभंडार में रखे गए हैं। इनकी कीमत आज अरबों-खरबों में बताई जाती है।

जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार का रहस्य!

बता दें कि स्वामी जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में करवाया गया था। इस मंदिर में रत्नभंडार है जिसमें स्वामी जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के आभूषण रखे जाते हैं। ये आभूषण बेहद कीमती और पुराने हैं। कई लोगों का यह भी कहना है कि रत्नभंडार में अरबों का खजाना है।

रत्नभंडार दो भागों में बंटा है। बाहरी रत्नभंडार को 39 साल पहले खोला गया था। इसमें भगवान के पहनने वाले आभूषण थे। बताया जाता है कि ज्यादातर आभूषण भीतरी रत्नभंडार में हैं। लेकिन इसकी चाबी लंबे समय से गायब है। आखिरी बार इसे 1985 में खोला गया था और फिर इसे कभी नहीं खोला गया। 2018 में ओडिशा हाई कोर्ट ने रत्नभंडार को खोलने का आदेश दिया गया था। हालांकि चाबी ना मिलने की वजह से यह नहीं खुला।

बताया जाता है कि इस रत्नभंडा में ओडिशा के राजाओं द्वारा दान किया गया खजाना और आभूषण रखे हैं। पहले विजय पाने के बाद भी राजा स्वामी जगन्नाथ के दर्शन करने पहुंचते थे और रत्न दान करते थे। विधानसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक 1978 में इस रत्न भंडार मेमं 12 हजार से ज्यादा सोने के आभूषण थे। इनपर रत्न भी लगे हुए थे। बाहरी कमरे को हर साल रथयात्रा के मौके पर खोला जाता है लेकिन भीतरी कक्ष खुले हुए 46 साल चुके हैं।

रत्न भंडार की चाबी बनी राजनीतिक मुद्दा!

जगन्नाथ रत्न भंडार की चाबी इन दिनों राजनीतिक मुद्दा बन हुई है। बीजेपी ने पिछले साल ओडिशा हाई कोर्ट में इसे लेकर एक पीआईएल दाखिल की थी। PIL में कोर्ट से रत्न भंडार को खुलवाए जाने के लिए हस्तक्षेप की मांग की गई थी। मामले में CBI जांच की मांग भी बीजेपी की तरफ से की गई थी। ओडिशा के कानून मंत्री ने ये कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की थी कि रत्न भंडार की चाबी गुम हुई है या नहीं, उनको इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।

हालांकि रत्न भंडार खोले जाने को लेकर ये कोई पहली पीआईएल नहीं थी। इससे पहले भी भंडार खोलने की मांग को लेकर जनहित याचिकाएं दाखिल होती रहीं। साल 2018 में ओडिशा हाई कोर्ट ने रत्न भंडार खोलने का आदेश दिया था, जिससे खजाने की जांच की जा सके। लेकिन चाबी गायब होने की वजह से ये संभव नहीं हो सका। इस साल फरवरी में राज्य के कानून मंत्री ने कहा था कि रत्न भंडार के खजाने को जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान यानी कि 7 जुलाई को खोला जाएगा।

क्या है रत्नभंडार की कहानी?

बता दें कि स्वामी जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में करवाया गया था। इस मंदिर में रत्नभंडार है जिसमें स्वामी जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के आभूषण रखे जाते हैं। ये आभूषण बेहद कीमती और पुराने हैं। कई लोगों का यह भी कहना है कि रत्नभंडार में अरबों का खजाना है।

रत्नभंडार दो भागों में बंटा है। बाहरी रत्नभंडार को 39 साल पहले खोला गया था। इसमें भगवान के पहनने वाले आभूषण थे। बताया जाता है कि ज्यादातर आभूषण भीतरी रत्नभंडार में हैं। लेकिन इसकी चाबी लंबे समय से गायब है। आखिरी बार इसे 1985 में खोला गया था और फिर इसे कभी नहीं खोला गया। 2018 में ओडिशा हाई कोर्ट ने रत्नभंडार को खोलने का आदेश दिया गया था। हालांकि चाबी ना मिलने की वजह से यह नहीं खुला।

बताया जाता है कि इस रत्नभंडा में ओडिशा के राजाओं द्वारा दान किया गया खजाना और आभूषण रखे हैं। पहले विजय पाने के बाद भी राजा स्वामी जगन्नाथ के दर्शन करने पहुंचते थे और रत्न दान करते थे। विधानसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक 1978 में इस रत्न भंडार मेमं 12 हजार से ज्यादा सोने के आभूषण थे। इनपर रत्न भी लगे हुए थे। बाहरी कमरे को हर साल रथयात्रा के मौके पर खोला जाता है लेकिन भीतरी कक्ष खुले हुए 46 साल चुके हैं।

 

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