इस क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने की प्रबल संभावना, वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमान को बताया बेहद कठिन, जानें क्यों

Uttarakhand Seismologist: बैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने की प्रबल संभावना, लेकिन इसका पूर्वानुमान बेहद कठिन होगा... There is a strong possibility of a big earthquake in the Himalayan region, but its forecast is very difficult: Scientist

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  • Publish Date - November 9, 2022 / 07:26 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:28 PM IST

Earthquake in Nepal

देहरादून। Uttarakhand Seismologist: हिमालय क्षेत्र में एक बड़ा भूकंप आने की प्रबल संभावना के बावजूद इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता और इसके मद्देनजर वैज्ञानिकों ने इससे डरने की बजाय उसका सामना करने के लिए पुख्ता तैयारियों पर जोर दिया है।

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Uttarakhand Seismologist: यहां वाडिया हिमालय भू—विज्ञान संस्थान में वरिष्ठ भू—भौतिक विज्ञानी डा अजय पॉल ने ‘पीटीआई—भाषा’ को बताया कि इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट की टक्कर से हिमालय अस्तित्व में आया है और यूरेशियन प्लेट के लगातार इंडियन प्लेट पर दवाब डालने के कारण इसके नीचे इकटठा हो रही विकृति उर्जा समय—समय पर भूकंप के रूप में बाहर आती रहती है । उन्होंने कहा, ‘हिमालय के नीचे विकृति उर्जा के इकटठा होते रहने के कारण भूकंप का आना एक सामान्य और निंरतर प्रक्रिया है। पूरा हिमालय क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से बहुत संवेदनशील है और यहां एक बड़ा बहुत बड़ा भूकंप आने की प्रबल संभावना हमेशा बनी हुई है ।’

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Uttarakhand Seismologist: उन्होंने कहा कि यह बड़ा भूकंप रिक्टर पैमाने पर सात या उससे अधिक तीव्रता के होने की संभावना है । हालांकि, डा पॉल ने कहा कि विकृति उर्जा के बाहर निकलने या भूकंप आने का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता । उन्होंने कहा, ‘ यह कोई नहीं जानता कि कब ऐसा होगा । यह अगले क्षण भी हो सकता है, एक महीने बाद भी हो सकता है या सौ साल बाद भी हो सकता है ।’ हिमालय क्षेत्र में पिछले 150 सालों में चार बड़े भूकंप दर्ज किए गए जिनमें 1897 में शिलांग, 1905 में कांगडा, 1934 में बिहार—नेपाल और 1950 में असम का भूकंप शामिल है ।

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Uttarakhand Seismologist: हांलांकि, उन्होंने साफ कहा कि इन जानकारियों से भी भूकंप की आवृत्ति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता । उन्होंने कहा कि 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली के बाद 2015 में नेपाल में भूकंप आया । उन्होंने कहा कि भूकंप से घबराने की बजाय इससे निपटने के लिए केवल अपनी तैयारियां पुख्ता रखनी होंगी जिससे भूकंप से होने वाले जान—माल के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके । उन्होंने कहा कि इसके लिए निर्माण कार्य को भूकंप—रोधी बनाया जाए, भूकंप आने से पहले, भूकंप के समय और भूकंप के बाद की तैयारियों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाए तथा साल में कम से कम एक बार मॉक ड्रिल आयोजित की जाए । उन्होंने कहा, ‘अगर इन बातों का पालन किया जाए तो नुकसान को 99.99 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है ।’

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Uttarakhand Seismologist: इस संबंध में उन्होंने जापान का उदाहरण देते हुए कहा कि अपनी अच्छी तैयारियों के कारण लगातार मध्यम तीव्रता के भूकंप आने के बावजूद वहां जान—माल का नुकसान ज्यादा नहीं होता । उन्होंने बताया कि वाडिया संस्थान भी ‘भूकंप: जानकारी ही बचाव है’ अभियान के तहत स्कूलों और गांवों में जाकर लोगों को भूकंप से बचाव के प्रति जागरूक करता है।वाडिया संस्थान के एक अन्य वरिष्ठ भू—भौतिक विज्ञानी डा नरेश कुमार ने कहा कि भूकंप के प्रति संवेदनशीलता की दृष्टि से उत्तराखंड को जोन चार और जोन पांच में रखा गया है। उन्होंने बताया कि 24 घंटे भूकंप संबंधी गतिविधियों को दर्ज करने के लिए उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में करीब 60 भूकंपीय वेधशालाएं स्थापित की गयी हैं ।

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