चुनौतियों का उचित समाधान निकालने में विश्वविद्यालयों की अहम भूमिका : उपराष्ट्रपति

चुनौतियों का उचित समाधान निकालने में विश्वविद्यालयों की अहम भूमिका : उपराष्ट्रपति

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  • Publish Date - July 21, 2021 / 11:56 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:51 PM IST

नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने बुधवार को विश्वविद्यालयों से जलवायु परिवर्तन, गरीबी और प्रदूषण जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान तलाशने का सुझाव देते हुए बुधवार को कहा कि विश्व के सामने पेश आ रही चुनौतियों का स्थायी और उचित समाधान निकालने में विश्वविद्यालय प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।

नायडू ने यह भी कहा कि ऑनलाइन शिक्षा, कक्षा में प्रदान की जाने वाली पारंपरिक शिक्षा पद्धति का विकल्प नहीं हो सकती, ऐसे में हमें ऑनलाइन एवं ऑफलाइन शिक्षा के श्रेष्ठ तत्वों को समाहित करते हुए भविष्य के लिये शिक्षा का मिश्रित मॉडल विकसित करने की जरूरत है ।

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ओ पी जिंदल विश्वविद्यालय द्वारा डिजिटल माध्यम से आयोजित विश्व विश्वविद्यालय शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को विश्व के सामने आ रहे विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों के बारे में विचार-विमर्श करना चाहिए तथा ऐसे विचारों के साथ सामने आना चाहिए, जिन्हें सरकारों द्वारा अपनी जरूरतों और अनुरूपता के अनुसार लागू किया जा सके।

उपराष्ट्रपति सचिवालय के बयान के अनुसार, नायडू ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने शिक्षा के क्षेत्र में नवाचारों में तेजी लाने के लिए मजबूर किया है, जिससे हमें शिक्षा प्रदान करने और सीखने की अधिक न्यायसंगत प्रणाली का निर्माण करने में सहायता मिल सकती है।

उन्होंने ऑनलाइन शैक्षणिक व्यवस्था में लगातार सुधार करने और उसे नवीनतम करने की जरूरत पर जोर दिया।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ ऑफलाइन और ऑनलाइन शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ तत्वों को शामिल करते हुए भविष्य के लिए एक मिला-जुला शिक्षण मॉडल विकसित किए जाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि ऐसा मॉडल शिक्षा ग्रहण करने वालों के साथ-साथ शिक्षक के लिए भी परस्पर प्रभाव डालने वाला और दिलचस्प होना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक शिक्षण परिणाम सुनिश्चित हो सकें।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ शिक्षा का अर्थ सिर्फ व्याख्यान देना ही नहीं है बल्कि छात्रों की स्वतंत्र सोच और रचनात्मकता को विकसित करना है। ’’

उन्होंने कहा कि सक्रिय आलोचनात्मक सोच के माध्यम से शिक्षार्थियों को उनके चुने हुए क्षेत्रों में ही ढाला जाना चाहिए, ताकि वे सामाजिक परिवर्तन के वाहक के रूप में विकसित हो सकें।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि मौजूदा महामारी ने हमें यह अहसास कराया है कि दुनिया की कोई भी राजनीति भविष्य के अज्ञात खतरों के खिलाफ पूरी तरह से तैयार नहीं है।

‘कोई भी तब तक सुरक्षित नहीं है जब तक कि हर कोई सुरक्षित न हो’ उक्ति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर संकट प्रबंधन के लिए बहु-आयामी, बहु-सांस्कृतिक, सामूहिक दृष्टिकोण के लिए सभी के सहयोग की आवश्यकता होती है।

भाषा दीपक

दीपक नरेश

नरेश