हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में विश्वास करते हैं, लेकिन निकट संबंधियों के साथ एकजुट नहीं रह पाते: न्यायालय

हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में विश्वास करते हैं, लेकिन निकट संबंधियों के साथ एकजुट नहीं रह पाते: न्यायालय

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  • Publish Date - March 27, 2025 / 10:33 PM IST,
    Updated On - March 27, 2025 / 10:33 PM IST

नयी दिल्ली, 27 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने परिवार संस्था के ‘‘क्षरण’’ को लेकर चिंता जताते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि भारत में लोग ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ के सिद्धांत में विश्वास करते तो हैं, लेकिन करीबी रिश्तेदारों के साथ भी एकजुट रहने में असफल रहते हैं।

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने कहा कि परिवार की अवधारणा समाप्त हो रही है और एक व्यक्ति-एक परिवार की व्यवस्था बन रही है।

पीठ ने कहा, ‘‘भारत में हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में विश्वास करते हैं, अर्थात पूरी पृथ्वी एक परिवार है। हालांकि, आज हम अपने परिवार में भी एकता बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं, विश्व के लिए एक परिवार बनाने की बात तो दूर की बात है। ‘परिवार’ की मूल अवधारणा ही समाप्त होती जा रही है और हम एक व्यक्ति एक परिवार के कगार पर खड़े हैं।’’

उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा दायर याचिका पर की, जिसमें उसने अपने बड़े बेटे को घर से बेदखल करने का अनुरोध किया था।

रिकॉर्ड में यह बात लाई गई कि कल्लू मल और उनकी पत्नी समतोला देवी के तीन बेटे और दे बेटियों सहित पांच बच्चे थे। कल्लू मल का बाद में निधन हो गया था।

माता-पिता के अपने बेटों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं थे और अगस्त 2014 में कल्लू मल ने स्थानीय एसडीएम को शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे पर मानसिक और शारीरिक यातना देने का आरोप लगाया।

वर्ष 2017 में, दंपती ने अपने बेटों के खिलाफ भरण-पोषण के लिए कार्यवाही शुरू की, जो सुल्तानपुर की एक कुटुंब अदालत में एक आपराधिक मामले के रूप में पंजीकृत हुई।

कुटुंब अदालत ने माता-पिता को 4,000 रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया, जो दोनों बेटों को प्रत्येक कैलेंडर माह की सातवीं तारीख तक समान रूप से देना होगा।

कल्लू मल ने आरोप लगाया कि उनका मकान स्वयं अर्जित संपत्ति है, जिसमें निचले हिस्से में दुकानें भी शामिल हैं।

इनमें से एक दुकान में वह 1971 से 2010 तक अपना कारोबार चलाते रहे।

पिता ने आरोप लगाया कि उनका सबसे बड़ा बेटा उनकी दैनिक एवं चिकित्सीय आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखता था।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि पिता संपत्ति का एकमात्र मालिक है, क्योंकि बेटे का उसमें अधिकार या हिस्सा है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बेटे को घर के एक हिस्से से बेदखल करने का आदेश देने जैसे कठोर कदम की कोई आवश्यकता नहीं थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत भरण-पोषण का आदेश देकर उद्देश्य पूरा किया जा सकता था।

भाषा देवेंद्र सुरेश

सुरेश