(प्रदीप्त तापदार)
कोलकाता, 27 मार्च (भाषा) इस चुनावी विमर्श कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का पूरी तरह ध्रुवीकरण हुआ है और यह तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सिमट गया है, कांग्रेस-वाम-आईएसएफ गठबंधन अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता साबित करने की लड़ाई लड़ रहा है। साथ ही गठबंधन को उम्मीद है कि राज्य में खंडित जनादेश आने पर वह ‘किंगमेकर’ की भूमिका में होगा।
आजादी के बाद से करीब छह दशक तक शासन कर चुकी कांग्रेस और माकपा नीत वाम मोर्चा अपने वैचारिक एवं राजनीतिक अंतरों को छोड़कर वर्ष 2016 की विधानसभा चुनाव के बाद दूसरी बार साथ आए हैं।
धर्म गुरु पीरजादा अब्बास सिद्दीकी नीत इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) गठबंधन में तीसरा धड़ा है जो पूर्व प्रतिद्वंद्वियो का ‘असंभव’ सा दिखने वाला गठबंधन है।
कांग्रेस-वाम दल और आईएसएफ ने अपने गठबंधन को ‘संयुक्त मोर्चा ’ नाम दिया है और उसे उम्मीद है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के मतों में सेंध लगाकर वह बढ़त बनाने में कामयाब होगा।
उल्लेखनीय है कि विश्वसनीय विपक्ष के नहीं होने की वजह से गत सालों में भगवा पार्टी ने विरोधी मतों में सेंध लगाई है।
‘संयुक्त मोर्चा’ को उम्मीद है कि पीरजादा की मौजूदगी से पश्चिम बंगाल के अल्पसंख्यक मतों को अपने ओर आकर्षित करने में मदद मिलेगी, सिवाय उत्तर बंगाल के जहां कांग्रेस का अल्पसख्ंयक मतों पर प्रभाव है। बता दें कि तृणमूल कांग्रेस समुदाय के बड़े हिस्से को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही है।
हालांकि, आईएसएफ के साथ गठबंधन की अपनी समस्या है क्योंकि कांग्रेस एवं वाम दलों पर धर्मनिरपेक्ष होने की विश्ववसनीयता खोने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
सिद्दिकी के संगठन की तुलना आजादी से पहले वाली ऑल इंडिया मुस्लिम लीग और असम की एआईयूडीएफ से की जा रही है और माना जा रहा है कि इससे हिंदू मतों का झुकाव भाजपा की ओर बढ़ेगा।
हालांकि, तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ने गठबंधन के साझेदारों को एक दूसरे की ‘कठपुतली’ होने का आरोप लगाया है। माना जा रहा है कि भगवा पक्ष आईएसएफ के चुनावी मैदान में उतरने से खुश है क्योंकि उसका मानना है कि इससे तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की अल्पसंख्यक मतों पर पकड़ ढीली होगी।
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य मोहम्मद सलीम ने कहा, ‘‘ हमें उम्मीद है कि यह गठबंधन बंगाल चुनाव की दिशा बदलने वाला होगा। भाजपा और तृणमूल कांग्रेस इस चुनाव को दो ध्रुवीय लड़ाई में तब्दील करना चाहते हैं लेकिन हमने इसे त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है। लोग राज्य में तृणमूल के और केंद्र में भाजपा के कुशासन से तंग आ चुके हैं।’’
कांग्रेस नेता प्रदीप भट्टाचार्य भी सलीम की बातों का समर्थन किया और भरोसा जताया कि गठबंधन के ‘उल्लेखनीय नतीजे’ आएंगे जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकेगा।
सिद्दिकी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘लोगों से मिल रही प्रतिक्रिया से हमें चुनाव जीतने का भरोसा है। हम चुनाव के बाद किंग मेकर की भूमिका में होंगे। कोई भी सरकार हमारे समर्थन के बिना नहीं बनेगी।’’
शुरुआत में सीटों को बंटवारे को लेकर खींचतान के बाद इस ‘सतरंगी गठबंधन’ में समझौत हो गया जिसके मुताबिक वाम दल 177, कांग्रेस 91 और आईएसएफ 26 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।
कांग्रेस एवं वाम दलों के सूत्रों के मुताबिक गठबंधन समय की मांग थी, क्योंकि दोनों पार्टियों ने 2016 विधानसभा चुनाव साथ लड़ा था और उन्हें कुल 36 प्रतिशत मत मिले थे जिसमें अगले तीन साल में भारी कमी आई।
उन्होंने बताया कि अलग-अलग लड़ने की वजह से वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस एवं वाम को क्रमश: सात एवं पांच प्रतिशत मत मिले।
लोकसभा चुनाव में वाम दल खाता भी नहीं खोल सके जबकि कांग्रेस 42 में से महज दो सीटों पर जीत दर्ज कर सकी। वहीं तृणमूल ने 22 और भाजपा ने 18 सीटों पर जीत दर्ज की।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस विधायक अब्दुल मनन ने कहा, ‘‘यह गठबंधन समय की मांग थी क्योंकि हम अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस ने मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में कर लिया है और भाजपा ने हिंदू मतों को, हम पटल पर कहीं नहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस द्वारा वाम एवं कांग्रेस नेताओं का शिकार करने से राज्य में भाजपा के लिए रास्ता साफ हुआ।’’
सलीम ने कहा, ‘‘पिछली बार हमने 77 सीटों पर जीत दर्ज की थी जिनमें से अधिकतर अल्पसंख्यक बहुल मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तरी एवं दक्षिणी दिनाजपुर की सीटें थी। पहचान की राजनीति में हमें उन सीटों को बरकरार रखने के लिए आईएसएफ की जरूरत थी।’’
वाम एवं कांग्रेस नेताओं का मानना है कि वे उन हिंदू एवं मुस्लिमों के लिए तीसरा विकल्प पेश करना चाहते हैं जो तृणमूल या भाजपा की ओर नहीं जाना चाहते हैं।
माकपा नेता ने कहा, ‘‘हम खुद को ताकत के रूप में पेश कर विपक्ष का स्थान वापस हासिल करना चाहते हैं। न केवल इस चुनाव में बल्कि अगर भाजपा भी सत्ता में आ जाती है तब भी।’’
कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि गठबंधन को खंडित जनादेश में किंगमेकर की भूमिका में आने की उम्मीद है और महाराष्ट्र मॉडल से इनकार नहीं किया जा सकता है।
महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए शिवसेना व राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस ने गठबंधन किया है।
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने पहचान गोपनीय रखते हुए कहा, ‘‘अगर त्रिशंकु विधानसभा बनती है तो हम सांप्रदायिक शक्तियों को दूर रखने के लिए किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं। यह दो बुरी ताकतों के बीच चुनाव करने का मामला है और संभव है कि हम कम बुरी ताकत का चुनाव करे जो तृणमूल कांग्रेस है। हम अपनी नीतियों को लागू करेंगे और शासन पर नियंत्रण रखेंगे।’’
आईएसएफ अध्यक्ष नौशाद सिद्दिकी ने कहा, ‘‘हम सांप्रदायिक पार्टी नहीं है। हम धर्मनिरपेक्ष पार्टी है जो राज्य के पिछड़े समुदायों की लड़ाई लड रही है। हम दर्शक दीर्घा में लंबे समय तक बैठ नहीं सकते बल्कि मैदान में उतरना चाहते हैं।’’
हालांकि, अब्बास के पूर्व में दिए बयान आईएसएफ को असहज कर रहे हैं।
भाजपा ने आईएसएफ को दोबारा बंगाल को बांटने के लिए आए मुस्लिम लीग का उत्तराधिकारी करार दिया है।
तृणमूल कांग्रेस और भाजपा का मानना है कि वाम दलों ने सांप्रदायिक शक्तियों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है।
तृणमूल नेता ने कहा, ‘‘वाम दल ने धर्मनिरपेक्ष होने की अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है। इससे भाजपा के इस कथन को बल मिलेगा कि अन्य पार्टियां मुस्लिमों का तुष्टिकरण कर रही हैं और इससे हिंदू मत और एकजुट होंगे। राज्य ने पहले कभी मुस्लिम पार्टी नहीं देखी।’’
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, ‘‘यह सतरंगी गठबंधन राजनीतिक प्रासंगिकता और अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। तृणमूल कांग्रेस मुस्लिमों का तुष्टिकरण कर रही है जबकि आईएसएफ एवं उसके सहयोगी अल्पसंख्यकों को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में हिंदुओं की रक्षा कौन करेगा?एकमात्र भाजपा तुष्टिकरण के खिलाफ है।’’
राजनीतिक विश्लेषक बिश्वंत चक्रवर्ती का मानना है कि इस गठबंधन से कम से कम 30 सीटों पर भाजपा एवं तृणमूल कांग्रेस के चुनाव पर असर पड़ेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘अल्पसंख्यक बहुल जिलों में गठबंधन के प्रत्याशी खासतौर पर आईएसएफ के प्रत्याशी तृणमूल के मतों में सेंध लगाएंगे जबकि उत्तरी एवं दक्षिणी बंगाल में भाजपा की सीटें इससे प्रभावित होंगी।’’
भाषा
धीरज पवनेश
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