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AIIMS Health Advisory: आज के दौर में बच्चों की ज़िंदगी सिर्फ मोबाइल और टैबलेट और लैपटॉप तक सिमट गई है। खेल के मैदान में दौड़ने-भागने और फर्श पर पालथी मारकर बैठने जैसी पुरानी आदतें धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। नतीजा ये है कि कम उम्र में ही बच्चों और किशोरों को पोश्चर की समस्या, कमर-गर्दन में दर्द और हड्डियों की जकड़न जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
एम्स (AIIMS) और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने मिलकर दो साल का एक अध्ययन किया है, जिसमें ये पाया गया कि 15 से 18 साल की उम्र के बच्चों में शारीरिक गतिविधियों की कमी से मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर यानी मांसपेशियों और हड्डियों की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।
स्कूल में 6 से 7 घंटे लगातार कुर्सी पर बैठना, घर आकर घंटों फोन या लैपटॉप पर झुके रहना और एक्सरसाइज़ की कमी यही बच्चों की परेशानी की असली वजह है। दिल्ली के दो प्राइवेट स्कूलों में 380 छात्रों पर हुई रिसर्च में ये साफ हो गया कि अधिकतर किशोरों में गर्दन-पीठ का दर्द, हैमस्ट्रिंग की टाइटनेस, सपाट पैर, इलियोटिबियल बैंड की जकड़न और पोश्चर डिस्टर्बेंस आम हो गए हैं।
पहले के समय में फर्श पर पालथी मारकर खाना, उकड़ू बैठना, या नंगे पैर चलना रोज़मर्रा का हिस्सा था। ये छोटी-छोटी आदतें शरीर को लचीला और संतुलित बनाए रखती थीं। लेकिन अब इनकी जगह ले ली है स्क्रीन टाइम और “काउच पोटैटो” लाइफस्टाइल ने।
स्टडी के दौरान जिन छात्रों को 12 हफ्ते तक नियमित फिजियोथेरेपी कराई गई और फिर 24 हफ्तों तक मॉनिटर किया गया, उनमें न सिर्फ दर्द और जकड़न कम हुई बल्कि पोश्चर में भी बड़ा सुधार देखा गया। एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि फिजियोथेरेपी केवल इलाज ही नहीं बल्कि लाइफस्टाइल करेक्शन का भी बेहतरीन तरीका है।
एक्सपर्ट्स का साफ मानना है कि बच्चों की सेहत बचाने के लिए स्कूलों में फिजियोथेरेपी को अनिवार्य करना जरूरी है। खासकर स्पोर्ट्स एक्टिविटी और चोट से बचाव के लिए यह बेहद फायदेमंद साबित होगी। इससे न सिर्फ वर्तमान की समस्याएं कम होंगी बल्कि भविष्य में भी बच्चों को कमर-दर्द, आर्थराइटिस और स्पाइनल इश्यूज जैसी गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकेगा।