फिल्म के निर्माण में तकनीशियनों का योगदान भुला दिया जाता है : केशव नायडू

फिल्म के निर्माण में तकनीशियनों का योगदान भुला दिया जाता है : केशव नायडू

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  • Publish Date - October 17, 2025 / 07:04 PM IST,
    Updated On - October 17, 2025 / 07:04 PM IST

(कोमल पंचमटिया)

मुंबई, 17 अक्टूबर (भाषा) ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ का जिक्र होते ही आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बनी इस लोकप्रिय फिल्म में शाहरुख खान और काजोल के रोमांस की याद आ जाती है।

‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ का संपादन करने वाले केशव नायडू का कहना है कि इस फिल्म के निर्माण में प्रतिभाशाली लोगों की एक टीम का अहम योगदान रहा लेकिन अक्सर उन्हें भुला दिया जाता है।

नायडू का कहना है कि फिल्म निर्माण में शामिल उनके जैसे तकनीशियनों के योगदान को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया जाता है। नायडू ने यशराज फिल्म्स के लिए ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के अलावा कई अन्य फिल्मों का संपादन किया है।

केशव नायडू ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘‘चाहे वह कैमरामैन हो, लेखक हो, कला निर्देशक हो या कोई अन्य तकनीशियन, फिल्म के हिट होने से उनके जीवन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। वे बस साधारण यात्री हैं जो आते हैं और जाते हैं, फिल्म पर काम करते हैं और चले जाते हैं। सिर्फ़ अभिनेता और निर्देशक ही याद रहते हैं, बाकी सभी को भुला दिया जाता है। यह बात दशकों से चली आ रही है।’’

‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ 20 अक्टूबर 1995 को रिलीज हुई थी, जिसने एक पीढ़ी के लिए रोमांस को नयी परिभाषा दी और भारतीय सिनेमा में एक सांस्कृतिक कसौटी बन गई।

पारंपरिक भारतीय मूल्यों को आधुनिक संवेदनाओं के साथ मिश्रित करने वाली इस फिल्म में राज (शाहरुख) और सिमरन (काजोल) की कहानी है।

फिल्म के अविस्मरणीय संगीत, उल्लेखनीय संवाद और मुख्य जोड़ी के बीच की ‘कैमिस्ट्री’ ने इसे हिंदी सिनेमा में बनी अब तक की सबसे महान फिल्मों में से एक बना दिया है।

नायडू ने दिवंगत फिल्मकार यश चोपड़ा के साथ उनकी ‘सिलसिला’, ‘मशाल’, ‘चांदनी’, ‘लम्हे’, ‘परंपरा’ और ‘डर’ जैसी फिल्मों में काम किया है।

नायडू (81) ने यश चोपड़ा के सहायक निर्देशक के रूप में आदित्य से हुई मुलाकात को याद करते हुए कहा कि उन्हें उस समय के नवोदित निर्देशक के साथ काम करने में बहुत आनंद आया था।

नायडू ने कहा, ‘‘यश चोपड़ा को मुझ पर भरोसा था कि मैं संपादन का काम सही ढंग से कर सकता हूं… किसी और को भी यही मौका मिल सकता था, लेकिन मैं भाग्यशाली था कि मुझे उनकी कई फिल्मों का संपादक बनने का मौका मिला।’’

नायडू ने कहा कि एक संपादक के रूप में उनका उद्देश्य हमेशा निर्देशक के दृष्टिकोण को पूरा करना रहा है, तथा यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक कट कहानी के मुताबिक हो।

भाषा रवि कांत रवि कांत अविनाश

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