न्याय को याची की दहलीज तक पहुंचाने के लिए न्यायपालिका का विकेंद्रीकरण जरूरी : सीजेआई गवई

न्याय को याची की दहलीज तक पहुंचाने के लिए न्यायपालिका का विकेंद्रीकरण जरूरी : सीजेआई गवई

  •  
  • Publish Date - July 25, 2025 / 10:28 PM IST,
    Updated On - July 25, 2025 / 10:28 PM IST

अमरावती, 25 जुलाई (भाषा)प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) भूषण रामकृष्ण गवई ने शुक्रवार को याचियों को दहलीज पर न्याय प्रदान करने के लिए न्यायपालिका के विकेंद्रीकरण का सुझाव दिया।

सीजेई गवई ने पूर्वी महाराष्ट्र में अपने गृह जिले अमरावती के दरियापुर कस्बे में एक अदालत भवन का उद्घाटन करने के बाद वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायिक अवसंरचना समिति के प्रमुख के रूप में उन्होंने नए तालुका और जिला स्तरीय अदालतों की स्थापना का एक मॉडल तैयार किया था। उन्होंने कहा, ‘‘यह (उनके प्रस्ताव पर काम) हो रहा है, लेकिन अदालतों और सरकार में लालफीताशाही एक जैसी है।’’

सीजेआई ने कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उनके पूर्ववर्ती एकनाथ शिंदे (जून 2022-नवंबर 2024) और उद्धव ठाकरे (नवंबर 2019-जून 2022) न्यायिक बुनियादी ढांचे के कार्यों के बारे में सकारात्मक रहे हैं और पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराई जा रही है।

न्यायमूर्ति गवई ने उपस्थित जनसमूह से कहा कि वह दरियापुर में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नहीं, बल्कि जिले के निवासी के रूप में आये हैं।

प्रधान न्यायाधीश यहां अपने पिता आर एस गवई की 10वीं पुण्यतिथि पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। आर एस गवई केरल और बाद में बिहार के राज्यपाल रहे।

उन्होंने उम्मीद जताई कि दरियापुर की अदालत सुनिश्चित करेगी कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुंचे।

इस साल मई में प्रधान न्यायाधीश का पद ग्रहण करने वाले न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि उन्होंने हमेशा न्यायपालिका के विकेंद्रीकरण की वकालत की है ताकि वादियों को दहलीज पर न्याय मिल सके।

उन्होंने कनिष्ठ वकीलों को सलाह दी कि वे अपना करियर बनाने से पहले प्रशिक्षण हासिल करें।

न्यायमूर्ति गवई ने आगाह करते हुए कहा, ‘‘यदि कोई बिना किसी अनुभव के अदालतों में बहस करना चाहते हैं और छह महीने में मर्सिडीज या बीएमडब्ल्यू का मालिक बनना चाहते हैं, तो उसे उसके उद्देश्य को समझने की जरूरत है।’’

प्रधान न्यायाधीश गवई ने नए विधि स्नातकों को सलाह दी कि वे वकीलों से जुड़ी पद-प्रतिष्ठा को खुद पर हावी न होने दें।

उन्होंने सलाह देते हुए कहा, ‘‘मैंने कनिष्ठ वकीलों को अपने वरिष्ठों को सीट देते नहीं देखा है। इसी तरह, एक ऐसा मामला भी आया जब एक कनिष्ठ वकील न्यायाधीश द्वारा फटकार लगाए जाने पर अदालत में बेहोश हो गया। न्यायाधीश और वकील, दोनों बराबर के भागीदार हैं। यह कुर्सी (जो विधिक प्राधिकरण का प्रतीक है) जनता की सेवा के लिए है, और इससे जुड़ी ताकत को कभी भी अपने सिर पर हावी नहीं होने देना चाहिए।

भाषा धीरज पवनेश

पवनेश