पालघर, 29 नवंबर (भाषा) महाराष्ट्र के पालघर जिले में कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप के बाद 10 आदिवासी परिवारों को ‘बयाना’ व्यवस्था के जरिए ईंट भट्टे पर काम करने से छुड़ा लिया गया।
‘बयाना’ शब्द गरीब मजदूरों द्वारा किसी काम से पहले उधारदाताओं से लिए अग्रिम भुगतान के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अक्सर यही बंधुआ मजदूरी की जड़ होती है क्योंकि कर्ज बढ़ता ही जाता है, जिससे उनके पास इसे पूरी तरह से चुकाने का कोई रास्ता नहीं बचता।
‘श्रमजीवी संगठन’ के पदाधिकारियों बलराम भोईर और विजय जाधव ने शनिवार को पत्रकारों को बताया कि संगठन के हस्तक्षेप के बाद तकवाहल के रिंजदपाड़ा निवासी 10 कातकरी परिवारों ने ईंट भट्टे के मालिक के साथ जाने से इनकार कर दिया।
उन्होंने बताया कि ईंट भट्ठा मालिक ने एक हलफनामे पर भी हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें लिखा है कि बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के तहत ‘बयाना’ अवैध है।
पदाधिकारियों ने बताया, “हलफनामे में अग्रिम राशि माफ करने, कानूनी दरों पर केवल नकद भुगतान, कोई दबाव नहीं, कोई कटौती नहीं और संगठन की निगरानी में पूर्ण पारदर्शिता की गारंटी दी गई है। इसमें शामिल सभी मजदूरों के नाम और पते भी सूचीबद्ध हैं।”
भाषा जितेंद्र रंजन
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