नागपुर, 13 दिसंबर (भाषा) महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने शनिवार को कहा कि दस्तावेजों के पंजीकरण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को कानूनी रूप से अस्वीकृत समझौतों को दर्ज करने से इंकार कर देना चाहिए था और संबंधित पक्षों को ऐसी सीमाओं के बारे में स्पष्ट रूप से जानकारी देनी चाहिए थी।
उप-पंजीयक ने पुणे में विवादित भूमि सौदे के संबंध में पवार के बेटे पार्थ पवार की कंपनी से 21 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी और जुर्माने को लेकर एक नोटिस जारी किया है, जिसके बाद पवार ने यह टिप्पणी की है।
हाल में बंबई उच्च न्यायालय ने भूमि सौदे की पुलिस जांच के संबंध में तीखे सवाल पूछे थे और कहा था कि अधिकारी प्राथमिकी में पार्थ पवार का नाम शामिल न करके शायद उन्हें बचा रहे हैं।
अजित पवार ने शुक्रवार को विधानसभा से पारित एक विधेयक से उपजी धारणाओं को दूर करने की कोशिश की, जिसके तहत आईजीआर (महानिरीक्षक पंजीयन) से जुड़े विवादास्पद मामलों में सुनवाई करने का अधिकार राजस्व मंत्री को दिया गया है।
पवार ने कहा कि ऐसे दस्तावेजों का पंजीकरण करने वाले लोग ही दोषी हैं और अधिकारियों को पंजीकरण के समय पूरी सतर्कता व आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए थी।
उपमुख्यमंत्री ने कहा, “सौदे के पंजीकरण के लिए दस्तावेज स्वीकार करने वाले अधिकारियों को उसका पंजीकरण करने से इनकार कर देना चाहिए था। उन्हें संबंधित पक्षों को साफ तौर पर बताना चाहिए था कि यह समझौता नहीं किया जा सकता।”
जब उनसे इन आरोपों के बारे में पूछा गया कि यह विधेयक अमाडिया एंटरप्राइजेज एलएलपी में 99 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले पार्थ को बचाने के लिए लाया गया है, तो पवार ने दोहराया कि इसकी जिम्मेदारी पंजीकरण करने वाले अधिकारियों की ही बनती है।
संशोधन के पीछे की मंशा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “हम सदन में निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं और जनता ने हमें चुना है। हमें जो उपयुक्त लगेगा, हम उस पर निर्णय लेने या संशोधन करने के लिए स्वतंत्र हैं।”
राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि पहले के प्रावधान के तहत, आईजीआर स्तर पर लिए गए फैसलों से असंतुष्ट शिकायतकर्ताओं को उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ता था। संशोधन के बाद अब ऐसे शिकायतकर्ता राजस्व मंत्री के पास जा सकेंगे, जिन्हें इन मामलों में सुनवाई करने का अधिकार होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लेन-देन के कारण राज्य के राजस्व को नुकसान हुआ है, जिसकी वजह से एक अधिक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की आवश्यकता महसूस हुई है।
पुणे के पॉश मुंधवा इलाके में 40 एकड़ जमीन 300 करोड़ रुपये में अमाडिया एंटरप्राइजेज एलएलपी को बेचने के मामले की जांच जारी है। कंपनी में ज्यादातर हिस्सेदारी पार्थ पवार की है। यह पता चलने के बाद जांच शुरू हुई कि उक्त भूखंड सरकारी है और इसे बेचा नहीं जा सकता। साथ ही आरोप है कि कंपनी को 21 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी से भी छूट दी गई थी।
संयुक्त पंजीयन महानिरीक्षक (आईजीआर) की अध्यक्षता वाली एक समिति ने दिग्विजय पाटिल (पार्थ पवार के कारोबारी साझेदार और ममेरे भाई), शीतल तेजवानी (भूमि विक्रेताओं की ओर से पावर ऑफ अटॉर्नी धारक) और उप-पंजीयक रविंद्र तारू को दोषी पाया था। इन सभी के खिलाफ पुणे के एक थाने में नामजद प्राथमिकी दर्ज की गई।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया था कि पार्थ पवार का नाम किसी भी दस्तावेज़ में नहीं होने के कारण उन्हें इसमें नामजद नहीं किया गया।
भाषा जोहेब सिम्मी
सिम्मी