Brihaspati Kavach Path: गुरूवार के दिन पूजा के समय करें ये उपाए, कभी नहीं होगी पैसों की तंगी

Brihaspati Kavach Path: गुरूवार के दिन पूजा के समय करें ये उपाए, कभी नहीं होगी पैसों की तंगी

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  • Publish Date - February 29, 2024 / 12:17 PM IST,
    Updated On - February 29, 2024 / 12:18 PM IST

Brihaspati Kavach Path: सनातन धर्म में सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। इस दिन को भगवान विष्णु का खास दिन माना जाता है। इस दिन उनकी पूजा करने से आध्यात्मिक उन्नति के साथ साथ धन की भी प्राप्ति होती है। आज के दिन विवाहित और अविवाहित महिलाएं गुरुवार के दिन व्रत रख श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु मजबूत स्थिति में होता है, तो उसे जीवन में सुख-सौभाग्य और धन-दौलत की प्राप्ति होती है। ऐसे में गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। साथ ही, गुरु स्त्रोत और बृहस्पति कवच पाठ करना चाहिए।

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बृहस्पति कवच 

अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञम् सुर पूजितम् ।

अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥

बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः ।

कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मे अभीष्ठदायकः ॥

जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः ।

मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवतागुरुः ॥

भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः ।

स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः ॥

नाभिं केवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः ।

कटिं पातु जगवंद्य ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥

जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा ।

अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः ॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।

सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥

गुरु स्तोत्र 

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

अनेकजन्मसंप्राप्तकर्मबन्धविदाहिने ।

आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः।

ममात्मासर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

बर्ह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,

द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,

भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥

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