Helloween Day 2025
Halloween Day 2025: हेलोवीन (Halloween) हर साल 31 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से पश्चिमी देशों (जैसे अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, आयरलैंड) में लोकप्रिय त्योहार है, लेकिन अब भारत और दुनिया के कई हिस्सों में भी सेलिब्रेट किया जा रहा है। इसका नाम “All Hallows’ Eve” से आया है, जो 1 नवंबर को मनाए जाने वाले ऑल सेंट्स डे (All Saints’ Day) की पूर्व संध्या है। सेल्ट्स का मानना था कि 31 अक्टूबर की रात को जीवित और मृत लोगों के बीच की सीमा धुंधली हो जाती है, जिससे आत्माएँ जीवित लोगों की दुनिया में प्रवेश कर सकती हैं, इसलिए 31 अक्टूबर हेलोवीन का अंत है।
सेल्टिक कैलेंडर में 31 अक्टूबर गर्मियों का अंत और सर्दियों की शुरुआत का प्रतीक था। उनका विश्वास था कि इस रात जीवित और मृतकों की दुनिया के बीच का पर्दा पतला हो जाता है, जिससे मृतकों की आत्माएँ धरती पर लौट आती हैं। लोग बड़े-बड़े अलाव जलाते थे, भोजन की थाली बाहर रखते थे ताकि आत्माएँ खुश रहें, और खुद को बचाने के लिए डरावने जानवरों की खाल या मास्क पहनते थे। ईसाई धर्म के आने पर यह ‘ऑल सेंट्स डे’ की पूर्व संध्या बन गई, यानी All Hallows’ Eve, जो छोटा होकर Halloween बन गया। लोग बड़े-बड़े अलाव जलाते थे, भोजन की थाली बाहर रखते थे ताकि आत्माएँ खुश रहें, और खुद को बचाने के लिए डरावने जानवरों की खाल या मास्क पहनते थे।
इस दिन बच्चे भूतिया ड्रेस में सड़कों पर उतरते हैं। “ट्रिक-ऑर-ट्रीट!” चिल्लाते हुए कैंडी मांगते हैं, इसका मतलब है “उन्हें जो चाहिए वो दे वरना वो भूत बनकर डराएंगे”। ये परंपरा मध्ययुग से चली आ रही है, जब गरीब लोग भोजन के बदले प्रार्थना करते थे। लेकिन असली सितारा है जैक-ओ-लैंटर्न, वह चमकता कद्दू जिसके अंदर छुपी है एक शरारती कहानी। आईये जानते हैं जैक-ओ-लैंटर्न की रहस्यमयी कहानी:
कहानी है Stingy Jack की, जैक एक कंजूस और चालबाज़ शराबी था, जिसने शैतान को बार-बार ठगा। मरने के बाद स्वर्ग ने उसे जगह नहीं दी, नरक ने भी दरवाज़ा बंद कर दिया। शैतान ने उसे कोयले की एक जलती लौ दी, जिसे जैक ने शलजम में डालकर भटकना शुरू किया। आयरिश लोग इस कहानी से प्रेरित होकर शलजम में कोयला डालकर लालटेन बनाते थे। 19वीं सदी में जब आयरिश अप्रवासी अमेरिका पहुँचे, तो शलजम की जगह बड़ा, नरम और तराशने में आसान कद्दू ले लिया। आज जैक-ओ-लैंटर्न न सिर्फ़ बुरी आत्माओं को दूर भगाता है, बल्कि फसल के मौसम का प्रतीक भी है क्योंकि अक्टूबर में कद्दू की कटाई होती है।
हेलोवीन अब सिर्फ डर का नहीं, मज़े का त्योहार है। घरों में मकड़ी का जाला, कंकाल की सजावट, हॉरर मूवी मैराथन! इस रात सब कुछ रहस्य और हंसी से भरा होता है। भारत में भी मॉल्स और स्कूल्स में थीम पार्टीज़ शुरू हो गई हैं।
पहले हेलोवीन पश्चिमी त्योहार लगता था, लेकिन अब मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे के मॉल्स, कैफ़े और स्कूलों में थीम पार्टीज़ धूम मचा रही हैं। बच्चे ड्रैकुला, छोटी भूतनी या यहाँ तक कि बाहुबली भूत बनकर ट्रिक-ऑर-ट्रीट करते हैं।
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