देवताओं के वाहनों का अनसुना रहस्य: क्यों चुनी देवताओं ने जानवरों की सवारी? जान लें पौराणिक कथाओं में पालतू पशु पात्रों की दिव्य भूमिका!

हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में जानवरों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कई बार ये जानवर, देवताओं के जीवन में मुख्य भूमिका निभाते नज़र आये हैं लेकिन, कई लोगों के मन में ये सवाल ज़रूर आता है कि देवताओं के जानवरों को ही अपनी सवारी क्यों चुना? आइये आपको बताते हैं, देव वाहनों के रहस्य..

देवताओं के वाहनों का अनसुना रहस्य: क्यों चुनी देवताओं ने जानवरों की सवारी? जान लें पौराणिक कथाओं में पालतू पशु पात्रों की दिव्य भूमिका!

Pet Animals in Mythology/Image Source: IBC24

Modified Date: December 25, 2025 / 03:11 pm IST
Published Date: December 25, 2025 3:09 pm IST
HIGHLIGHTS
  • पालतू जानवरों और देव वाहनों की मुख्य भूमिका!
  • देवता जानवरों को वाहन क्यों चुनते थे?

Pet Animals in Mythology: जब भी पालतू जानवरों की बात होती है तो हमारे मस्तिष्क में सबसे पहले वफादार कुत्ते, छत पर दाना चुग रहे पक्षी, प्यारी सी म्याऊं-म्याऊं कर रही बिल्लियों की छवि सामने आती है। जिन्हें इस युग में कई लोग अपने घर की रखवाली के लिए रखते हैं, जो परिवार का एक हिस्सा बन जाते हैं।

किन्तु क्या आप जानते हैं कि देवताओं ने क्यों चुनी, जानवरों की सवारी? तो आपको बता दें कि हिन्दू पौराणिक कथाओं और ग्रंथों में जानवरों को अत्यंत महत्व दिया जाता था, आदर-सम्मान के साथ उन्हें पूजा जाता था। देवी-देवताओं के ये वाहन केवल “सवारी” ही नहीं, बल्कि इनके अंदर छुपे गहरे अर्थ रखते थे। पौराणिक कथाओं में कई बार ये जानवर देवी-देवताओं के जीवन में मुख्य भूमिका निभाते हुए दर्शाए जाते हैं। तो आइये आपको बताएं हिन्दू पौराणिक कथाओं में छुपे देवी-देवताओं के वाहनों का अनोखा रहस्य एवं उनकी दिव्य भूमिका..

पौराणिक कथाओं में पालतू जानवरों का रहस्य: ये पशु (जानवर) क्यों थे इतने खास?

भगवान गणेश का वाहन “मूषक” (चूहा)!

हिन्दू प्राचीन ग्रंथों में गणेश जी के वाहन चूहे ने गहरी भूमिका निभायी। यह सुनकर थोड़ा सा अजीब लगता हैं कि गणेश जी ने चूहे को ही अपने वाहन के रूप में क्यों चुना? गणेश जी के विशाल, बलवान शरीर का भार, भला छोटा सा चूहा कैसे सहता होगा। चलो आपको बता दें कि “चूहा” व्यर्थ विचारों, अँधेरे में फ़ैल रही बुरी आदतें और इच्छाओं का प्रतीक है। इस छोटे से चूहे पर महान देवता (श्री गणेश) का विराजमान होना यह सन्देश देता है कि बुद्धि, भक्ति और संयम से बड़ी से बड़ी नकारात्मक ऊर्जा को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

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भगवान कार्तिकेय (स्कंद/मुरुगन) का वाहन “मोर”!

प्राचीन ग्रंथों में भगवान कार्तिकेय के वाहन मोर ने खासकर स्कन्दपुराण में विशेष भूमिका निभाई। मोर शक्ति, सुंदरता, ज्ञान और चंचलता का प्रतीक हैं। किन्तु मोर की रंग-बिरंगी आँखें अहंकार, कामुकता और घमंड का प्रतीक हैं। मोर का सर्प (साँप) को नियंत्रण में रखना दर्शाता हैं कि कैसे भगवान कार्तिकेय ने घमंड, अहंकार और सांसारिक इच्छाओं (सर्प) को अपनी दिव्य शक्ति और ज्ञान से नियंत्रित किया है।

श्री राम भक्त हनुमान का वानर रूप!

राम भक्त हनुमान का वानर रूप उनकी भक्ति, शक्ति, विनम्रता और सेवाभाव का प्रतीक है जिन्होंने खासकर रामायणकाल में मुख्य भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी बुद्धि, शक्ति और निःस्वार्थ सेवा से सीता जी की खोज करने में भी प्रभु श्री राम के सहायक बने, लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने और प्रभु श्री राम की विजय में एक महान दूत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हनुमान ने वानर रूप में (चंचल स्वभाव) पर पूर्ण नियंत्रण पाया और उसे एकाग्र भक्ति में बदलकर प्रभु श्री राम की सेवा में लगाया।

भगवान शिव का बैल (नंदी)!

नंदी (बैल) भगवान शिव के वाहन हैं जो कैलाश के द्वारपाल होने के साथ भगवान शिव के सबसे वफादार सेवक माने जाते हैं। नंदी को शिव मंदिरों के प्रवेश द्वार पर उनकी ओर मुख किए हुए स्थापित किया जाता है जो कि धैर्य और प्रतीक्षा का प्रतीक है। नंदी भगवान शिव के भक्त हैं जिन्होंने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
नंदी का भगवान शिव की मूर्ति के समक्ष बैठना, भक्तों को दर्शन का मार्ग दिखाना है। भक्त नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं उन्हें विश्वास होता है कि उनकी मनोकामना भगवान शिव तक ज़रूर पहुंचेगी।

माँ दुर्गा की सवारी (वाहन) शेर!

हिन्दू पौराणिक कथाओं में शेर को देवी दुर्गा की सवारी बताया गया है। शेर जंगलों का राजा, शक्ति, साहस और पराक्रम का प्रतीक हैं। देवी दुर्गा का शेर पर सवार होना दर्शाता है कि देवी ने क्रोध, अहंकार और क्रूरता जैसी बुराइयों को अपने वश में (नियंत्रित) कर लिया है। जो कि हमें निडरता के साथ जीवन में आ रही चुनौतियों से लड़ने की प्रेरणा देता है।

युधिष्ठिर का वफादार कुत्ता!

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल की एक सुन्दर कहानी है जिसमें युधिष्ठिर के वफादार कुत्ते ने उनकी अंतिम परीक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ यह कुत्ता स्वयं धर्मराज यम का रूप था। हिमालय की कठिन यात्रा में अंत तक कुत्ता उनके साथ था, एक तरफ युधिष्ठिर के सभी परिजनों ने उनका साथ छोड़ दिया, किन्तु उस वफादार कुत्ते ने अंत तक उनका साथ नहीं छोड़ा।
जब युधिष्ठिर स्वर्ग के द्वार पर पहुंचे, तो युधिष्ठिर को, कुत्ते को पीछे छोड़ने को कहा गया किन्तु युधिष्ठिर ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह अपने वफादार साथी को नहीं छोड़ सकते। यह वाक्य सुनकर इंद्र देव प्रसन्न होते हैं और कुत्ता धर्मदेव के रूप में प्रकट होता है कुत्ते ही यह भूमिका युधिष्ठिर के धैर्य और निष्ठा को दर्शाती है जिससे उन्हें स्वर्ग जाने का अवसर प्राप्त हुआ।

Disclaimer:- उपरोक्त लेख में उल्लेखित सभी जानकारियाँ प्रचलित मान्यताओं और धर्म ग्रंथों पर आधारित है। IBC24.in लेख में उल्लेखित किसी भी जानकारी की प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है। हमारा उद्देश्य केवल सूचना पँहुचाना है।

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लेखक के बारे में

Swati Shah, Since 2023, I have been working as an Executive Assistant at IBC24, No.1 News Channel in Madhya Pradesh & Chhattisgarh. I completed my B.Com in 2008 from Pandit Ravishankar Shukla University, Raipur (C.G). While working as an Executive Assistant, I enjoy posting videos in the digital department.