Parivartini Ekadashi 2023 : कब है परिवर्तिनी एकादशी 2023? यहां देखें शुभ मुहूर्त से लेकर व्रत का महत्व और पूजाविधि

Parivartini Ekadashi 2023: एकादशी तिथि का समय 25 सितंबर को सुबह 07 बजकर 55 मिनट से शुरू होगा और 26 सितंबर को सुबह 05 बजे खत्म हो जाएगा।

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  • Publish Date - September 23, 2023 / 09:57 PM IST,
    Updated On - September 23, 2023 / 09:57 PM IST

Parivartini Ekadashi 2023 : नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि एवं अन्य व्रतों का बहुत महत्व है। साल भर में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। भाद्रमाह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी, पद्मा या जलझूलनी एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से योग निद्रा में चले जाते हैं और भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन वे अपनी शेषशैय्या पर करवट बदलते हैं। पदम् पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलने के समय प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं, इस अवधि में भक्तिभाव एवं विनयपूर्वक उनसे जो कुछ भी मांगा जाता है वे अवश्य प्रदान करते हैं। इस एकादशी की पूजा और व्रत को विशेष फलदाई माना गया है।

 

कब है परिवर्तिनी एकादशी 2023 का व्रत

Parivartini Ekadashi 2023 : हिंदू पंचांग के अनुसार, भादो के महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को यह व्रत मनाया जाएगा। इस साल एकादशी तिथि का समय 25 सितंबर को सुबह 07 बजकर 55 मिनट से शुरू होगा और 26 सितंबर को सुबह 05 बजे खत्म हो जाएगा। इस व्रत में उदया तिथि की मान्यता है इसलिए परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 25 सितंबर 2023 को रखा जाएगा और उसके अगले दिन यानी 26 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा।

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परिवर्तिनी एकादशी व्रत का महत्व

परिवर्तिनी एकादशी व्रत हर साल गणेश उत्सव की अवधि में रखा जाता है और इस दौरान व्यक्ति को भगवान विष्णु और भगवान गणेश की विशेष कृपा पाने का सौभाग्य प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी के दिन उपवास रखने से बहुत ही शुभ फल प्राप्त होता है। यह दिन जलझूलनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन कई जगहों पर वामन देव की पूजा भी की जाती है। इस व्रत को पूरे विधि विधान से करने से व्यक्ति को भय, रोग, दोष इत्यादि से मुक्ति मिलती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी व्रत रखने से कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति में सुधार आता है और चंद्र देव आपसे प्रसन्न होते हैं।

 

परिवर्तिनी एकादशी व्रत की पूजाविधि

इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु के वामन अवतार को ध्यान करते हुए उन्हें पचांमृत (दही, दूध, घी, शक्कर, शहद) से स्नान करवाएं। इसके पश्चात गंगा जल से स्नान करवा कर भगवान विष्णु को कुमकुम-अक्षत लगायें। वामन भगवान की कथा का श्रवण या वाचन करें और दीपक से आरती उतारें एवं प्रसाद सभी में वितरित करें। भगवान विष्णु के पंचाक्षर मंत्र ‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’’ का यथा संभव तुलसी की माला से जाप करें। इसके बाद शाम के समय भगवान विष्णु के मंदिर अथवा उनकी मूर्ति के समक्ष भजन-कीर्तन का कार्यक्रम करें।इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी की पूजा करने से इस जीवन में धन और सुख की प्राप्ति तो होती ही है। परलोक में भी इस एकादशी के पुण्य से उत्तम स्थान मिलता है।

 

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