Politics On Caste Census
नई दिल्ली : Politics On Caste Census : भारत की सियासत में कई ऐसे पहलू हैं जो उसके स्थायी अंग हैं। कोई भी राजनीतिक दल इनकी अनदेखी नहीं कर सकता। चाहे वो राष्ट्रीय दल हो या फिर क्षेत्रीय दल हम दरअसल बात कर रहे हैं। जाति की सियासत की जो राहुल गांधी के छेड़े गए जाति जनगणना के राग के चलते एक बार फिर केंद्र में आ गई है। इस पर बयानबाजी और आरोप प्रत्यारोप ने बहस को एक नई दिशा में मोड दिया है।
Politics On Caste Census : संसद के मानसून सत्र में दिग्गज नेताओं के बीच जाति को लेकर छिड़ी इस तीखी बयानबाजी ने साबित कर दिया कि भारत की सियासत में जाति से बड़ा दूसरा कोई सच नहीं है। राहुल गांधी के लोकसभा में जाति जनगणना पर दिए बयान से शुरू ये बहस अब बहुत आगे बढ़ चुकी है। बीजेपी राहुल गांधी की जाति बार-बार पूछकर जाति जनगणना की मांग को दूसरी ओर शिफ्ट करने में जुट गई है। असम के सीएम हिमंता बिस्व सरमा और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने राहुल गांधी से अपनी जाति का खुलासा करने की मांग की है।
जाति की राजनीति से कोई राजनीतिक दल, कोई राज्य अछूता नहीं है। कहीं इसका असर कम तो कहीं बहुत ज्यादा है। इस सूची में बिहार भी है। जहां की नीतीश सरकार जाति जनगणना भी करा चुकी है। तब नीतीश के सहयोगी रहे RJD नेता तेजस्वी यादव आज विपक्ष में हैं और नीतीश कुमार के साथ बीजेपी को भी जाति जनगणना विरोधी ठहरा रहे हैं।
Politics On Caste Census : जाति की सियासत आज की हकीकत है। संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर ने संविधान में जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था जरूर की थी, लेकिन वो कभी नहीं चाहते थे कि भारतीय समाज में जातिवाद को बढ़ावा मिले। वो समाज के सभी वर्गों में बराबरी के पक्षधर थे, लेकिन आज देश के नेता ही जाति की राजनीति का मोह नहीं छोड़ पा रहे। ये मुद्दा इतना संवेदनशील है कि समाज के हर तबके पर अपना असर छोड़े बिना नहीं रहता। नेता भी इसके सियासी फायदे को अपने पक्ष में भुनाते रहना चाहते हैं।