रायपुर। नशे के खिलाफ जारी IBC24 की मुहिम के तहत हम आपको…राजधानी में नशे के एक-एक अड्डे के साथ-साथ…लॉकडाउन के दौरान नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते नशे की पार्टी कराने वाले क्वींस क्लब और उससे जुड़े रसूखदारों की भी हर खबर दिखाते रहे हैं…रायपुर के क्वींस क्लब के बनने से लेकर उसे चलाने तक में रसूख और सांठगांठ का जबरदस्त खेल खेला गया है..। हम लगातार इस खेल को एक्सपोज करते आ रहे हैं..। कल हमने आपको दिखाया था कि कैसे रसूखदारों को फायदा पहुंचाने के लिए हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों ने सरकारी जमीन की अदला बदली निजी जमीन से की.. आज हम आपके सामने एक और खुलासा करने जा रहे हैं.. ।
ये भी पढ़ें:डॉ रेणु जोगी ने देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा के दावों को किया खारिज, कहा- कांग्रेस में वापसी का प…
हम आपको बताएंगे कि जिस मामले में रायपुर कलेक्टर ने 2007 में ही निजी जमीन से सरकारी जमीन की अदला बदली को राजस्व नियम के विरुद्ध बताते हुए फाइल नस्तीबद्ध कर दिया था, उसी मामले में उच्च अधिकारियों ने फिर से फाइल चलवाईं.. और 9 सालों की जोड़ तोड़ के बाद इस नस्तीबद्ध काम को मंजूर करवाने में सफल हो गए। रायपुर के पॉश इलाके में माननीय लोगों के लिए बनाए गए क्वींस क्लब में जब लॉकडाउन के दौरान पार्टी कराई गई, शराब परोसी गई, वहां गोली चली.. तभी साफ हो गया था कि इस क्लब के संचालन में रसूख और सांठगांठ का बड़ा और तगड़ा खेल चल रहा है..। इस घटना के एक महीने बाद भी क्लब के प्रमुख संचालक रहे नमित जैन की गिरफ्तारी नहीं होना और एमिनेंट इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के 6 डायरेक्टर पर एफआईआर तक ना होना, इस खेल को बहुत हद तक साफ कर देता है..। खुद हाउसिंग बोर्ड की तरफ से अब तक आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। लेकिन रसूख का ये खेल केवल आज का नहीं है, बल्कि क्लब और कॉलोनी के बनने के समय से ही खेला जा रहा है..।
ये भी पढ़ें: JCCJ MLA धरमजीत सिंह बोले- देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा हैं सत्ता ल…
इससे जुड़ी एक रिपोर्ट हमने कल दिखाई थी, आज हम कुछ और खुलासे करने जा रहे हैं। दरअसल, साल 2006 में जब विधायकों के लिए पुरैना में आवासीय गृह बनाने का काम शुरू हुआ तब इस प्रोजेक्ट में जगदीश अरोरा और हरबक्श सिंह बत्रा की निजी जमीन भी शामिल कर ली गई। लेकिन, ऐसा करने से पहले हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन अधिकारियों ने ना तो नियम- निर्देश पढ़ने की कोशिश की और ना ही सरकार से इसकी अनुमति ले लेने की आवश्यकता समझी। दरअसल, असल कहानी किसी रसूखदार को फायदा पहुंचाने का था। और इसी खेल में हाउसिंग बोर्ड ने खुद से मान लिया कि हाउसिंग बोर्ड और निजी भू स्वामी आपसी रजामंदी से जमीन की अदला बदली कर लेंगे। ये अलग बात थी कि निजी जमीन वीआईपी रोड से काफी अंदर थी और जिस सरकारी नजूल की जमीन से उसकी अदला बदली होनी थी, वह वीआईपी रोड के बेहद पास और क्वींस क्लब से ठीक सटी हुई थी।
ये भी पढ़ें: थमा उपचुनाव के लिए प्रचार अभियान, मध्यप्रदेश की 28 और छत्तीसगढ़ की …
इसमें सिर्फ और सिर्फ निजी भू स्वामियों को ही फायदा होना था.. जो बाद में हुआ भी। क्योंकि इनमें से एक भू स्वामी हरबक्श सिंह बत्रा को ही बाद में क्लब के निर्माण और 30 सालों तक उसके संचालन का कांट्रैक्ट मिल गया। लेकिन रसूख और सांठगांठ के इस खेल में नियम कायदों को जैसे ताक पर रख दिया गया। बिना किसी शासकीय स्वीकृति के ही बोर्ड ने जमीन की अदला बदली कर ली। उसका सबूत है 2006 में रायपुर कलेक्टर का यह पत्र। 26 मई 2006 के इस पत्र में रायपुर कलेक्टर ने हाउसिंग बोर्ड के कार्यपालन अभियंता और दोनों भू स्वामियों को कहा है- चुंकि हाउसिंग बोर्ड को शासन की ओर से अब तक भूमि का आवंटन नहीं किया गया है। प्रकरण शासन स्तर पर विचाराधीन है.. लिहाजा आपको अदला बदली की औपचारिक अनुमति प्रदान की जाती है।
ये भी पढ़ें: सीएम भूपेश बघेल ने 10वीं और 12वीं बोर्ड के टॉपरों को दी सौगात, राज्…
शासन से अनुमति प्राप्त होने पर जो भी शर्तें होंगी, उसे पालन करना अनिवार्य होगा। अब 20 फरवरी 2007 को जारी रायपुर कलेक्टर का यह पत्र भी देख लीजिए..। इसमें 27 दिसंबर 2006 के राजस्व विभाग के आदेश का जिक्र करते हुए कहा गया है कि राजस्व पुस्तक परिपत्र में नजूल भूमि की अदला बदली का कोई प्रावधान नहीं है। लिहाजा इस प्रकरण को नस्तीबद्ध किया जाता है। कलेक्टर के इस आदेश से साफ हो गया कि सरकारी जमीन की निजी जमीन से अदला बदली हो ही नहीं सकती। लेकिन हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी यह कर चुके थे।
ये भी पढ़ें: मरवाही उपचुनाव में भाजपा को झटका, अमर अग्रवाल ने जिस सरपंच को दिला…
रसूख और सांठगांठ का खेल शासन प्रशासन के समान्य नियम कायदों से कहां रुकता है। कलेक्टर के इनकार के बाद शुरू हुई उच्च अधिकारियों की सक्रियता..। जो काम असंभव था, उसे संभव बनाने के लिए नोटशीट चलाई गईं। हाउसिंग बोर्ड से प्रस्ताव राजस्व विभाग के सचिव को भेजा गया..। नियम कायदों के हिसाब से ये असंभव था और मामला लगभग खारिज हो चुका था । लेकिन बताते हैं कि ऐन वक्त पर तत्कालीन सरकार में एक बेहद कद्दावर अधिकारी के हस्तक्षेप के बाद मामला नाटकीय ढंग से मुड़ा और फिर फाइल स्वीकृत होती हुईं प्रस्ताव के रूप में शासन तक पहुंच गई। मामले को मंत्रिपरिषद के सामने रख दिया गया। 28 दिसंबर 2016 को जमीन अदला बदली का आदेश राजस्व विभाग से जारी हो गया।