होम करते हाथ जले. ये कहावत प्याज खरीदी के मामले में मध्यप्रदेश सरकार पर सटीक बैठ रही है. समर्थन मूल्य पर प्याज खरीदी में मध्यप्रदेश सरकार का छह सौ करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च होने की संभावना है. लेकिन आलम ये है कि किसानों से 8 रुपए किलो पर खरीदा गया प्याज सड़ रहा है. और उसे 2 रुपए किलो पर भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में सरकार ने अब दूसरे राज्यों में अपने खरीदार तलाश रही है. लेकिन व्यापारी तवज्जो नहीं दे रहे.
मध्यप्रदेश में सरकार ने किसानों से प्याज की बंपर खरीद तो कर ली लेकिन उसे खपाने का कोई सटीक तरीका सरकार के पास नहीं है. लिहाजा प्याज के बर्बादी की ये तस्वीरें आम हो चली है. सरकार की मुश्किल ये है कि राशन की दुकानों से प्याज बेचने में उसे तीन गुना घाटा है. तो वहीं मध्यप्रदेश के व्यापारी अब सरकार से प्याज खरीद नहीं रहे.
ऐसे में सरकार ने खाद्य विभाग के अफसरों को प्याज बेचने के लिए दूसरे राज्यों में भेजा है. लेकिन दूसरे राज्यों में भी सरकार और व्यापारी भी प्याज के खराब होने की वजह से खरीदने से कतरा रहे हैं. जबलपुर की ही बात करें तो बिहार और उत्तरप्रदेश के जिन बड़े व्यापारियों ने यहां के नागरिक आपूर्ति निगम से प्याज़ खरीदा था. उन्होंने अब प्याज के स्टॉक को घटिया बताकर आगे और प्याज खरीदी से साफ इंकार कर दिया है.
मध्यप्रदेश सरकार अब तक 8 रूपए प्रति किलो समर्थन मूल्य के हिसाब से किसानों से 60 लाख क्विंटल प्याज खरीद चुकी है. इसमें भंडारण और ट्रांसपोर्टेशन जोड दिया जाए तो खर्चा 6 सौ करोड़ से ऊपर चला जाएगा. ऐसे में कांग्रेस भी प्याज खरीदी प्रक्रिया पर ही सवाल उठा रही है. कांग्रेस के आरोपों को गलत भी नहीं ठहराया जा सकता. क्योंकि अगर समय रहते सरकार प्याज को लेकर सही रणनीति बना लेती तो यह हालात ही पैदा नहीं होते।