चौथी बार युद्ध ग्रस्त देश सीरिया के राष्ट्रपति बने बशर असद

चौथी बार युद्ध ग्रस्त देश सीरिया के राष्ट्रपति बने बशर असद

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  • Publish Date - July 17, 2021 / 03:26 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:52 PM IST

दमिश्क, 17 जुलाई (एपी) सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद चौथी बार देश के राष्ट्रपति बने हैं। उन्होंने शनिवार को पद की शपथ ली और इसके बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के प्रभाव से निपटने का संकल्प जताया।

इस युद्धग्रस्त देश में मई में आयोजित चुनाव को पश्चिमी देशों और असद के विपक्षियों ने ”अवैध” और महज दिखावा करार दिया था।

शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन राष्ट्रपति महल में हुआ और इसमें धार्मिक नेता, संसद सदस्य, राजनीतिक हस्तियां और सेना के अधिकारी शामिल हुए। असद 2000 से ही इस देश की सत्ता में हैं और उनका एक बार फिर राष्ट्रपति बनना लगभग तय माना जा रहा था।

असद का नया कार्यकाल एक बार फिर शुरू हो रहा है लेकिन यह मुल्क पिछले 10 साल के युद्ध से तबाह है और आर्थिक संकट दिन ब दिन और गहरे होते जा रहे हैं।

शपथ ग्रहण के बाद पहले संबोधन में असद ने कहा कि उनकी चिंता ” भूमि को मुक्त कराने और युद्ध के आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों से निपटने” पर केंद्रित है।

उन्होंने कहा, ” चीजों को बेहतर बनाना निश्चित रूप से संभव है। युद्ध एवं प्रतिबंधों से दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं, हम इससे पार पा सकते हैं। बस हमें यह पता लगाना होगा कि ऐसा किस तरह किया जा सकता है?”

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सीरिया की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। सीरियाई मुद्रा के मूल्य में लगातार गिरावट हुई और संसाधन दुर्लभ हो गए हैं और लोगों से वस्तुओं की ऊंची क़ीमतें वसूली जाती हैं।

देश में संघर्ष व्यापक स्तर पर कम हुआ है लेकिन सीरिया के कई हिस्से अब भी सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं। अब भी देश के विभिन्न हिस्सों में विदेशी बलों और मिलिशिया की तैनाती है।

सीरिया में युद्ध से पहले रहने वाली करीब आधी आबादी को या तो विस्थापन का दंश झेलना पड़ा है या वे पड़ोसी देशों और यूरोप में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। वहीं इस युद्ध में अब तक पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग अब भी लापता हैं और देश का बुनियादी ढांचा तबाह है।

इस संघर्ष की शुरुआत 2011 में हुई। सरकार ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की और फिर यह विरोध असद परिवार के खिलाफ एक सशस्त्र विद्रोह के रूप में तब्दील हो गया।

इस युद्ध में असद को ईरान और रूस का समर्थन प्राप्त हुआ जिसने सहायता पहुंचाने के साथ अपने सैनिक भी यहां भेजे और ऐसे में पश्चिमी देशों से लगाए गए प्रतिबंध के बाद भी असद सरकार में बने रहे।

यूरोपीय देशों और अमेरिका की सरकार असद और उसके सहयोगियों को हिंसा का ज़िम्मेदार बताती है जबकि असद इसके लिए सशस्त्र विद्रोहियों को दोषी ठहराते हैं। वहीं इस युद्ध को ख़त्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र नीत वार्ता में अब तक कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है।

असद अपने पिता हाफिज के निधन के बाद 2000 में सत्ता में आए। उनके पिता रक्तहीन सैन्य तख्तापलट के जरिए 1970 में सत्ता में आए थे।

अमेरिका और यूरोप के अधिकारी इस चुनाव की वैधता पर सवाल उठाते हैं। असद को इस चुनाव में 95.1 फ़ीसदी मत मिले। यहां चुनाव में किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा केवल सांकेतिक ही थी। मतदान पर निगरानी के लिए कोई स्वतंत्र संस्था नहीं थी।

एपी शफीक रंजन

रंजन