जैव चिकित्सा अनुसंधान में मायने रखता है लिंग, महिलाओं पर भी परीक्षण करने की जरूरत

जैव चिकित्सा अनुसंधान में मायने रखता है लिंग, महिलाओं पर भी परीक्षण करने की जरूरत

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  • Publish Date - May 1, 2022 / 04:36 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:37 PM IST

(मॉनिका डि पावली, पोस्ट डॉक्ट्रल फेलो, मेडिकल साइंस, मैकमास्टर यूनिवर्सिटी)

हैमिल्टन (कनाडा), एक मई (द कन्वरसेशन) जैव चिकित्सा अनुसंधान यह पता लगाने की दिशा में पहला पड़ाव होता है कि कोई रोग किस तरह पैदा हुआ और इससे कैसे बचा जा सकता है या किस तरह इसका इलाज हो सकता है।

इसके तहत पहले जानवरों पर अलग-अलग तरह के प्रयोग किये जाते हैं और अनुसंधान सफल होने पर मनुष्यों पर इस तरह के परीक्षण होते हैं। ये क्लीनिकल परीक्षण किसी जैव चिकित्सा अनुसंधान के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।

जैव चिकित्सा अनुसंधान पारंपरिक रूप से नर जानवरों और पुरुषों पर किया जाता है और इस अनुसंधान से हम जो ज्ञान प्राप्त करते हैं, उसे इस धारणा के आधार पर पुरुषों और महिलाओं पर लागू किया जाता है कि यह दोनों लिंग के बारे में समान होगा।

कुछ समय पहले तक भी इन अनुसंधान में लैंगिकता पर शायद ही कभी विचार किया गया हो। यह एक समस्या है, क्योंकि लोगों को जो बीमारियां प्रभावित करती हैं, उनमें लैंगिकता के आधार पर अंतर होता है।

माना जाता है कि जो महिलाएं रजोनिवृति को प्राप्त कर चुकी हैं, उनके मधुमेह का शिकार होने की संभावना पुरुषों और उन महिलाओं की तुलना में कम होती है, जो अभी रजस्वला हो रही हैं। ये भिन्नता इस लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जाती है कि मधुमेह को परिभाषित करने वाले रक्त शर्करा के ऊंचे स्तर से जानलेवा दौरे और दिल का दौरा पड़ सकता है।

एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि महिलाओं को दिल के दौरे के लक्षणों का अनुभव नहीं होता है जो पुरुषों में सामान्य होते हैं जैसे सीने में दर्द। इसके बजाय महिलाओं में जी मिचलाने, असामान्य रूप से थकान जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। महिलाओं और पुरुषों का अलग-अलग अध्ययन किए बिना, हम इन अंतरों के बारे में नहीं जान पाएंगे और यह भी नहीं समझ पाएंगे कि रोगियों का इलाज करते समय किन किन बातों पर गौर करना चाहिये।

शोधकर्ताओं ने अभी भी ठीक से पता नहीं लगाया है कि वे महिलाएं मधुमेह से कैसे बच सकती हैं जिनका मासिक धर्म बंद हो गया है। साथ ही यह भी पता नहीं चल पाया है कि मधुमेह कैसे स्ट्रोक और दिल के दौरे के खतरे को बढ़ाता है। हमारी प्रयोगशाला में किए गए शोध में मुख्य रूप से इस पर ध्यान दिया गया है, जहां हम सक्रिय रूप से नर व मादा पशु मॉडलों का उपयोग करके इस बचाव तंत्र और रोग के पैदा होने तथा प्रगति करने का अध्ययन करते हैं।

औसतन, महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि महिलाएं इस संबंध में फायदेमंद स्थिति में रहती हैं। हालांकि जरूरी नहीं कि यह बात बिल्कुल सही हो। यह सच है कि महिलाओं को मधुमेह, दिल का दौरा, स्ट्रोक और संक्रमण होने का खतरा कम होता है, लेकिन उन्हें अन्य प्रकार की बीमारियां होने की आशंका होती है। उदाहरण के लिए, गठिया और मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी बीमारियां आमतौर पर महिलाओं को होती हैं।

ऐसे में यह स्पष्ट है कि पुरुषों पर किये गए अनुसंधान पूरी कहानी नहीं बता पा रहे हैं। अध्ययन कैसे और किसके द्वारा किया जा रहा है, इसके आधार पर अनुसंधान का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि 50 प्रतिशत आबादी यानी महिलाओं को छोड़कर क्या हम किसी अनुसंधान के सही निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। इसका जवाब आने वाले समय में अनुसंधान कर्ताओं को खोजना होगा।

(द कन्वरसेशन)

जोहेब नरेश

नरेश