पटना/मोकामा: Bihar Elections 2025, बिहार विधानसभा चुनाव का सबसे बड़ा राजनीतिक रणक्षेत्र इस बार मोकामा बन गया है। पटना जिले की यह सीट हमेशा से सुर्खियों में रही है, लेकिन इस बार मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है। वजह है—दो बाहुबलियों का आमना–सामना। जेडीयू ने बाहुबली अनंत सिंह को मैदान में उतारा है, तो आरजेडी ने उनके पुराने प्रतिद्वंदी सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी पर भरोसा जताया है। दोनों उम्मीदवार भूमिहार जाति से आते हैं, जिससे यह सीट और भी रोमांचक बन गई है।
वोटिंग से कुछ दिन पहले ही जन सुराज समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या ने मोकामा की सियासत में भूचाल ला दिया। इस हत्याकांड का आरोप अनंत सिंह और उनके समर्थकों पर लगा, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद मोकामा से लेकर बाढ़ तक इलाके में तनाव फैल गया था, जिसे प्रशासन ने बड़ी मुश्किल से शांत किया। अब यह मामला केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि जातीय समीकरण और सियासी साख का बन गया है।
मोकामा को भूमिहार बहुल विधानसभा क्षेत्र माना जाता है। लगभग 30% यानी करीब 82,000 वोटर इसी समुदाय से हैं। दूसरे नंबर पर यादव समुदाय है, जिनकी हिस्सेदारी लगभग 20% (करीब 61,000 वोटर) है। इसके अलावा कुर्मी–धानुक (47,000), राजपूत–ब्राह्मण (28,000), दलित–महादलित (25–28 हजार) और मुस्लिम (11 हजार) मतदाता भी अहम भूमिका निभाते हैं। पिछले 20 वर्षों से इस सीट पर बाहुबली अनंत सिंह का दबदबा रहा है। उनकी पत्नी नीलम देवी ने भी उपचुनाव में आरजेडी टिकट पर जीत दर्ज की थी।
जेडीयू से टिकट पाकर अनंत सिंह फिर से मैदान में हैं, जबकि आरजेडी की तरफ से सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी उतर चुकी हैं। दोनों एक ही जाति के होने के कारण भूमिहार वोटों में बंटवारा तय माना जा रहा है।
ऐसे में तीसरे उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी (जन सुराज पार्टी) की एंट्री ने समीकरण बदल दिए हैं। वे धानुक समुदाय से हैं, जो मोकामा की निर्णायक जाति मानी जाती है।
दुलारचंद यादव, पीयूष प्रियदर्शी के समर्थक थे। उनकी हत्या के बाद यह संदेश फैलाने की कोशिश हुई कि यादवों ने धानुक उम्मीदवार की रक्षा के लिए बलिदान दिया। इस नैरेटिव से यादव–धानुक समीकरण बन सकता है, जो अब तक बिहार में शायद ही कभी एकजुट होकर मतदान करता रहा हो। अगर यह गठजोड़ बनता है तो नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग के लिए यह एक बड़ा झटका हो सकता है।
नीतीश कुमार ने बीते दो दशकों में “लव-कुश समीकरण” (कुर्मी–कोइरी) और गैर-यादव पिछड़ों को एकजुट कर अपनी सत्ता मजबूत की। तेजस्वी यादव ने पिछले लोकसभा चुनाव में इसी समीकरण को तोड़ने के लिए कुशवाहा और धानुक उम्मीदवारों पर दांव लगाया था, लेकिन वह प्रयोग सफल नहीं हुआ। अब प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी उसी सोशल इंजीनियरिंग में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, ताकि नीतीश के पारंपरिक वोट बैंक में बिखराव लाया जा सके।
दुलारचंद यादव हत्याकांड के बाद अनंत सिंह की गिरफ्तारी को लेकर जहां प्रशासन “कानून का राज” बताने की कोशिश कर रहा है, वहीं उनके समर्थक इसे राजनीतिक साजिश कह रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे अनंत सिंह को सवर्ण वोटरों की सहानुभूति मिल सकती है। हालांकि आरजेडी उम्मीदवार वीणा देवी ने दुलारचंद की शव यात्रा में शामिल होकर यादव और पिछड़ा मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की।
अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने खुद मोकामा की कमान संभाल ली है।
वे नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकारों में गिने जाते हैं और सोशल इंजीनियरिंग के माहिर माने जाते हैं। अब चुनौती यह है कि क्या ललन सिंह अनंत सिंह के लिए वही कमाल दिखा पाएंगे, जैसा उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में किया था।
मोकामा का चुनाव केवल एक विधानसभा सीट की जंग नहीं है—यह नीतीश कुमार की राजनीतिक रणनीति और सोशल इंजीनियरिंग का लिटमस टेस्ट है। अगर अनंत सिंह धानुक और अति पिछड़ा वोट अपने पाले में रख पाने में सफल रहे, तो जेडीयू का “सुशासन मॉडल” फिर से मजबूत होगा। वरना इस चुनाव में आरजेडी और जन सुराज के लिए यह सीट “नीतीश फैक्टर” को कमजोर करने का प्रतीक बन सकती है।