#Nindakniyre: पूर्व विधायक दीपक जोशी का जाना मतलब ‘अंश’ चलेगा ‘वंश’ नहीं

former mla deepak joshi join congress: कांग्रेस ने सिर्फ दरबाजे खोल रखे थे, किसी तरह के बन्दनवार नहीं बांधे गए। यानि जोशी आ जाएं स्वागत है, किन्तु थाल सजाकर कोई द्वार पर नहीं खड़ा हुआ।

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  • Publish Date - May 7, 2023 / 04:51 PM IST,
    Updated On - May 7, 2023 / 08:36 PM IST
former mla deepak joshi join congress

former mla deepak joshi join congress

बरुण सखाजी

(राजनीतिक विश्लेषक)

मध्यप्रदेश में दीपक जोशी लगातार काउंट-डाउन चलाते रहे, कोई उन्हें गंभीरता से रोकने नहीं गया। अंततः कांग्रेस ने उन्हें 6 मई को ज्वाइन करवा लिया। इस बीच कांग्रेस ने सिर्फ दरबाजे खोल रखे थे, किसी तरह के बन्दनवार नहीं बांधे गए। यानि जोशी आ जाएं स्वागत है, किन्तु थाल सजाकर कोई द्वार पर नहीं खड़ा हुआ। संकट ये था कि जोशी जाएं तो कोई वार्म वेलकम न हो और न जाएं तो कोई मानमनव्वल भी न हो। तब ज़्यादा क्या ठीक? यह सोचते-सोचते जोशी अंततः चले गए।
असल में जोशी 2020 से ही खफा, उपेक्षित और असंतुष्ट थे। 2018 में हाटपिपल्या हाथ में रही नहीं और रही कसर तो सिंधिया के साथ जोशी को हराने वाले मनोज चौधरी और भाजपा में आ धमके। इतना ही नहीं वे 2020 के उपचुनाव में फिर से जीत गए, वह भी दीपक जोशी की नाराज़गी भरी मौजूदगी के बावजूद। तब जोशी करते भी तो क्या?
उन्हें उम्मीद थी पार्टी सहानुभूति बतौर कहीं निगम, मंडल, पार्टी संगठन या कहीं तो एडजस्ट करेगी ही। उम्मीद के साथ-साथ यह आत्म-अहम भी था कि पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, भाजपा के मध्यप्रदेश में पितृपुरुषों में शुमार पिता कैलाश जोशी का लिहाज तो करेगी ही। मगर यह भाजपा वैसी नहीं या ऐसी नहीं कि परवाह किए बिना चुनाव जीत पर फोकस पार्टी है। चुनावी लोकतंत्र की परफेक्ट, पेशेवर पार्टी बन गई है। उसे परवाह अब नहीं कि राजनीति सिर्फ चुनाव नहीं होती। सिर्फ मतदाता की पुकार नहीं होती। यह विचार भी होती है और सेवा-समग्र और सम्मान भी। जोशी की पीड़ा यह नहीं कि पार्टी ने उन्हें रोका नहीं, पीड़ा यह है कि पार्टी ने उन्हें कमतर आंका। वे पीड़ा में ही कांग्रेस चले गए और अब वहां से शिवराज सिंह चौहान को चुनौती देने का दम भर रहे हैं। जोशी यहां सिर्फ भाजपा को चुनौती नहीं दे रहे बल्कि कांग्रेस को भी जता और बता रहे हैं कि उनके अंदर आग है और वे हर सूरत में राष्ट्रीय कांग्रेस में भी भाग्य आजमाना चाहते हैं। अब तक कमलनाथ की मध्यप्रदेश कांग्रेस में एक बात सबने महसूस की है, उन्हें अधिक महत्वकांक्षी लोग नहीं चाहिए। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमलनाथ से शुरू हो और प्रयास यह है कि उत्तराधिकार नकुल नाथ तक जाए। तभी बीते कुछ वर्षों से दिग्विजय प्रयासों पर नाथ नाखुश रहे हैं। दिग्विजय पुत्र हर्षवर्धन बतौर मंत्री तो चर्चा में रहे लेकिन विपक्ष में उनकी आवाज को अधिक साथ नहीं मिला। ऐसी स्थिति में जोशी आज बुधनी विधानसभा से चौहान को चुनौती दे रहे हैं, कल देवास लोकसभा से खम्भा गाड़ेंगे तब देवास के अरसे से तैयारी कर रहे कांग्रेसियों का क्या होगा?

वजन ज़्यादा, उपयोग कम

अब सवाल है कि जोशी को भाजपा ने रोका क्यों नहीं? दरअसल भाजपा उनकी क्षमता की परख कर चुकी थी। वह जानती थी जोशी हाटपिपल्या नहीं निकाल सकते और अगर निकाल भी लें तो ये चौधरी को सहन नहीं करेंगे। इनका वजन अधिक है उपयोग कम। ऐसे में इन्हें जाने देना चाहिए। करीब एक वर्ष पहले ही पार्टी ने जोशी को लेकर संवाद क्लोज कर दिया था। जब वे जाने भी लगे तो रघुनन्दन शर्मा को आगे किया, जो स्वयं 2006 की उमा बगावत के सूत्रधार थे, जिन्हें लेकर सुषमा स्वराज तक आशान्वित थी।

संदर्भ किस्सा

संदर्भ किस्सा यह है कि 2006 के विदिशा उपचुनाव में रघुनन्दन, उमा की भारतीय जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी थे। भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के खासमखास तबके मंत्री रामपाल सिंह को उतरा था। यह सीट चौहान का लोकसभा क्षेत्र थी। इसे जिताकर वापस देना, खुद भी बुधनी से उपचुनाव जीतना, उमा की बगावत के बावजूद पार्टी संभाले रखना, दरकते विधायक, मंत्रियों को एक सूत्र में बांधे रखना और सबसे खास तबकी केंद्र की मनमोहन सरकार और कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति के बीच तालमेल बिठाना, यह सब चौहान की ज़िम्मेदारी थी। चौहान अपनी ज़िम्मेदारी पर खरे उतरे। इस उपचुनाव में देवगांव में सुषमा स्वराज से जब मैंने पूछा था कि रघुनन्दन शर्मा जैसे कद्दावर का जाना कैसे देखती हैं आप, स्वराज ने तीखी प्रतिक्रिया देने की बजाए साफ कहा था, वे हमारे बहुत वरिष्ठ और समर्पित संघी हैं। कोई गलतफहमी में चले गए, आ जाएंगे। इसी दौर में सांची विधानसभा के विधायक व पूर्वमंत्री शेजवार भी नाखुश थे। वे खंडेरा के माता मंदिर में उमा से कथित तौर पर मिलने भी गए थे जब वे बगावत करके राम रोटी यात्रा पर निकली थी। सांची विदिशा लोकसभा क्षेत्र की एक विधानसभा थी। मतलब 2005 में चौहान ने जो कांटों भरा ताज पहना था वह 2006 के उपचुनाव तक शूल पाणेश्वर की झाड़ियां बन चुका था। लेकिन संगठन, ज़मीन की सियासत के चतुर सुजान शिवराज सिंह चौहान इन सबसे पार पा गए।

वंश नहीं अंश पर माइक्रोस्कोप

जोशी रघुनंदन शर्मा से मिले अवश्य किन्तु असर कुछ न हुआ। अब भाजपा चाहती है जोशी को अपने कार्यकर्ताओं में सन्देश के रूप में इस्तेमाल करेगी। वह बताएगी वंशवाद यहां न चलेगा। कार्यकर्ता स्फूर्त रहें, नेता कोई भी बनेगा लेकिन नेता का बेटा सिर्फ होने से नेता कोई न बनेगा। ऐसा ही साउंड बीते दिनों आईबीसी-24 के ग्वालियर में हुए जनसंवाद कार्यक्रम में सिंधिया ने दिया था। उन्होंने पत्रकार परिवेश वत्सयायन के एक सवाल पर कहा था मैं जब तक सियासत में हूं मेरा बेटा आर्यमान राजनीति में नहीं आएगा। इन सबका निचोड़ यह है कि कांग्रेस को वंशवादी सिद्ध करने के लिए भाजपा को अपने भीतर के ऐसे मध्यम लेयर के वंशवाद को खत्म करना होगा। यूपी में भी राजनाथ सिंह के पुत्र उपेक्षित चल रहे हैं। चौहान के बेटे कार्तिकेय सक्रिय हुए थे, लेकिन बीते सालभर से मौन हैं। विजयवर्गीय के बेटे आकाश बैटकांड के बाद से ही नेपथ्य में हैं। छत्तीसगढ़ में डॉक्टर रमन के बेटे अभिषेक सियासत से नदारत हैं। मौजूदा भाजपा नेता कोई भी अपने वंशजों को आगे बढ़ाता नहीं दिख रहा। यहां तक कि राजस्थान में लगातार मोदी-शाह की अनदेखी कर रही वसुंधरा से भी दुष्यन्त को आगे न करने का बांड भरवा लिया गया। यानि पार्टी कह रही है, अंश तो चलेगा लेकिन वंश नहीं। मतलब संघी, भाजपाई, हिंदुत्व के संस्कारों का अंश चलेगा, फिर वह किसी भी दल में क्यों न हो, परन्तु वंश नहीं चलेगा चाहे वह किसी का भी क्यों न हो।

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