(तस्वीर के साथ)
भोपाल, 13 अप्रैल (भाषा) केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस नीत पूर्ववर्ती सरकारों पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए रविवार को कहा कि कानूनों में वर्षों तक बदलाव नहीं किए जाने के कारण सहकारी आंदोलन शिथिल पड़ गया था और जबतक मोदी सरकार ने इसमें निर्णायक कार्रवाई नहीं की तब तक यह लगभग मृतप्राय हो गया था।
भोपाल में एक राज्य-स्तरीय सहकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों ने सहकारी क्षेत्र को बढ़ावा देने पर कभी विचार नहीं किया।
इस मौके पर प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) और मध्यप्रदेश राज्य सहकारी डेयरी फेडरेशन (एमपीएससीडीएफ) के बीच एक समझौता भी हुआ।
शाह ने कहा, “वर्षों तक सहकारी आंदोलन धीरे-धीरे आगे बढ़ा और फिर लगभग मृतप्राय हो गया था। अतीत में देशभर में चल रहे सहकारी आंदोलन एकसमान नहीं थे।”
चुनौतियों पर शाह ने कहा कि सहकारी आंदोलन जर्जर हो गया था क्योंकि कानूनों को तदनुसार संशोधित नहीं किया गया था।
उन्होंने कहा कि आजादी के 75 वर्षों के बाद ही आंदोलन ने जोर पकड़ा जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस क्षेत्र को मजबूत करने के लिए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया।
शाह ने सहकारी क्षेत्र को बढ़ावा नहीं देने के लिए पिछली केंद्र सरकारों को दोषी ठहराया, जिसके परिणामस्वरूप ‘एकतरफा विकास’ हुआ।
उन्होंने कहा, “कुछ राज्यों में आंदोलन ने गति पकड़ी जबकि कुछ स्थानों पर इसे नष्ट कर दिया गया।”
शाह ने सहकारी आंदोलन में ‘सकारात्मक बदलाव’ लाने का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को देते हुए कहा कि मुख्य कारण यह था कि कानून, जिन्हें समय के साथ बदला जाना चाहिए था, उन्हें बदला नहीं गया।
शाह ने कहा कि मध्यप्रदेश में कृषि, पशुपालन और सहकारी क्षेत्रों में बहुत संभावनाएं हैं। उन्होंने इन संभावनाओं का पूरा दोहन करने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा, “मध्यप्रदेश में अब सुशासन है। कांग्रेस शासन के दौरान सहकारी समितियां लगभग मर चुकी थीं। यह उनके पुनरुद्धार का एक स्वर्णिम अवसर है और मध्यप्रदेश को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि चूंकि संवैधानिक व्यवस्था के तहत सहकारिता, राज्य का विषय है, इसलिए देश भर में तेजी से बदलती परिस्थितियों के अनुकूल सहकारी कानूनों को तैयार करने के लिए पहल नहीं की गई।
सहकारिता मंत्री ने कहा, “इस परिदृश्य पर राष्ट्रीय स्तर पर समग्र दृष्टिकोण से विचार नहीं किया गया, क्योंकि सहकारी समितियों के लिए कोई अलग मंत्रालय नहीं था।”
शाह ने कहा कि केंद्र संवैधानिक ढांचे के भीतर काम करता है और केंद्र सरकार ने सहकारी समितियों के लिए आदर्श उपनियम बनाए हैं, जो सभी राज्यों द्वारा स्वीकार्य हैं।
उन्होंने राज्यों को धन्यवाद देते हुए कहा, “प्राथमिक समाजों को सशक्त बनाने वाले इन मॉडल उपनियमों को स्वीकार करके, राज्यों ने भारत में सहकारी क्षेत्र को एक नया जीवन दिया है।”
शाह ने याद किया कि कैसे प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (पैक्स) अल्पकालिक कृषि वित्त में काम करती थीं और केवल आधा प्रतिशत लाभ कमाती थीं।
उन्होंने कहा, “अब पैक्स अधिक काम कर रहे हैं जिससे उनकी आय बढ़ी है। वे आयुष्मान भारत से जुड़कर सस्ती दवाएं बेच रहे हैं और नल से जल वितरण में भी शामिल हैं। पैक्स सीएससी (आम सेवा केंद्र) से जुड़कर 300 से अधिक सरकारी योजनाएं जनता के लिए उपलब्ध करा रहे हैं।”
शाह ने पैक्स को कंप्यूटरीकृत करने के मामले में मध्यप्रदेश सरकार की भूमिका की सराहना की।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “पहले, केवल बड़े किसान ही बीज की खेती में संलग्न हो सकते थे। हालांकि, सरकार ने अब ढाई एकड़ जितनी छोटी जोत वाले किसानों के लिए बीज उत्पादन का अवसर बढ़ा दिया है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि बीजों के संरक्षण और संवर्धन का प्रबंधन ‘बीज सहकारी’ द्वारा किया जाएगा ताकी यह सुनिश्चित हो कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले।
दूध उत्पादन के बारे में शाह ने कहा, “मध्यप्रदेश 5.5 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन करता है, जो देश के कुल दूध उत्पादन का नौ प्रतिशत है।”
उन्होंने खुले बाजार में दूध बेचते समय किसानों के शोषण पर कहा, “इस समस्या का समाधान करने के लिए, सरकार का लक्ष्य किसानों को सहकारी डेयरियों के माध्यम से दूध बेचने के लिए प्रोत्साहित करना है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मुनाफे से उन्हें सीधे लाभ हो।”
शाह ने विश्वास जताया कि एनडीडीबी और एमपीएससीडीएफ के बीच हुए समझौते से मध्यप्रदेश के लगभग 50 प्रतिशत गांवों में सहकारी समितियां गठित होंगी, जिससे किसानों और पशुपालकों को शीघ्र लाभ होगा।
शाह ने कहा, “मध्यप्रदेश के दूध उत्पादन का एक प्रतिशत से भी कम सहकारी डेयरियों से आता है। राज्य में अधिशेष दूध 3.5 करोड़ लीटर है, जिसमें से केवल 2.5 प्रतिशत सहकारी क्षेत्र द्वारा संभाला जाता है।”
उन्होंने कहा कि गांवों में केवल 17 प्रतिशत दूध संग्रह होता है। हालांकि, रविवार को हस्ताक्षरित समझौते ने एनडीडीबी के लिए राज्य के 83 प्रतिशत गांवों तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त किया है। अगले पांच वर्षों में, लक्ष्य कम से कम 50 प्रतिशत गांवों में प्राथमिक दूध उत्पादन समितियों की स्थापना करना है।”
उन्होंने दूध, दही और छाछ का उत्पादन करने के लिए प्रत्येक किसान को सहकारी डेयरियों से तेजी से जोड़ने का आह्वान किया।
भाषा ब्रजेन्द्र नोमान अनुराग
अनुराग