बांग्लादेश को निर्यात प्रभावित होने से नागपुर के संतरा उत्पादक परेशान

बांग्लादेश को निर्यात प्रभावित होने से नागपुर के संतरा उत्पादक परेशान

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  • Publish Date - May 2, 2024 / 08:04 PM IST,
    Updated On - May 2, 2024 / 08:04 PM IST

काटोल (महाराष्ट्र), दो मई (भाषा) मध्य भारत के नागपुर के आसपास के तपते खेतों में प्याज ने ‘व्यापार युद्ध’ में संतरे को कड़ी टक्कर दी है।

संतरे के लिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के हजारों किसानों के पास इस फल ​​का अधिशेष भंडार है और परस्पर विरोधी विदेशी व्यापार नीतियों, बाजार शक्तियों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार निर्भरता के जटिल ताने-बाने के कारण इसे अपने मुख्य निर्यात बाजार बांग्लादेश में बेचने में असमर्थ हैं।

संतरा उत्पादक पिछले साल तक रोजाना 6,000 टन फल बांग्लादेश भेजते थे, लेकिन ढाका द्वारा संतरे पर आयात शुल्क वर्ष 2019 में 20 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़ाकर नवंबर, 2023 में 88 रुपये प्रति किलोग्राम करने के बाद यह व्यापार कम हो गया। बांग्लादेश में संतरे की कीमत इतनी अधिक है कि स्थानीय व्यापारियों के लिए भारत से संतरे खरीदना लाभ का सौदा नहीं रह गया है।

नागपुर संतरा फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी के अध्यक्ष मनोज जावंजाल ने नागपुर से लगभग 60 किलोमीटर पश्चिम में अपने बगीचे में संतरे के पेड़ों की कतारों के बीच से गुजरते हुए पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘अब हम प्रतिदिन मुश्किल से 100 टन या पांच ट्रक संतरे भेज पाते हैं।’’

विदर्भ के किसानों का मानना ​​है कि घरेलू बाजार की सुरक्षा के लिए भारत द्वारा स्थानीय व्यंजनों के प्रमुख उत्पाद, प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद बांग्लादेश ने प्रतिशोध में आयात शुल्क बढ़ा दिया है।

पिछले महीने के अंत में, सरकार ने प्याज पर निर्यात प्रतिबंध में ढील दी, जो पिछले साल दिसंबर में लगाया गया था, जिससे बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, भूटान, बहरीन, मॉरीशस और श्रीलंका को इसके निर्यात की अनुमति मिल गई। यह स्पष्ट नहीं है कि विशेष रूप से बांग्लादेश को प्याज का निर्यात शुरू होने से क्या वहां की सरकार संतरे पर आयात कर को कम कर देगी।

यदि ऐसा होता है, तो देश में संतरे के सबसे बड़े उत्पादक महाराष्ट्र के किसानों को दिसंबर में अगली फसल के लिए कुछ राहत मिलेगी।

किसानों का कहना है कि बांग्लादेशियों को हर भोजन के बाद नागपुर का संतरा चाहिए क्योंकि इसके रसदार फाइबर में सही पीएच मान होता है जो मांस से भरपूर आहार लेने के बाद पेट को आराम देने के लिए उस देश में आम तौर पर उपयोग होता है।

जैसे को तैसा की व्यापार लड़ाई में, केवल संतरे को ही नुकसान नहीं हुआ है।

कपास की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने विदर्भ के किसानों को भी प्रभावित किया है, जो फसल में इतना समृद्ध है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने 19 वीं शताब्दी के अंत में इस क्षेत्र में एक रेलवे नेटवर्क स्थापित किया था, जिसका उद्देश्य केवल कपास की गांठों को बंबई तक पहुंचाना था, ताकि मैनचेस्टर की मिलों को कपड़ा निर्यात किया जा सके।

प्रगतिशील किसान मनोज खुटाटे ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘मेरे पास अब भी पिछले साल की फसल का 130 क्विंटल कपास है। मैं इसे तब 8,500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेच सकता था। मुझे उम्मीद थी कि कीमत बढ़ेगी, लेकिन इसके विपरीत हुआ।’’

खुटाटे की चिंता यह है कि कपास को लंबे समय तक संग्रहीत नहीं किया जा सकता क्योंकि यह समय के साथ पीली पड़ने लगती है और गुणवत्ता खराब हो जाती है। वर्तमान में, कपास की कीमतें 7,100-7,300 रुपये प्रति क्विंटल के दायरे में हैं, जो किसानों के अनुसार खेती की लागत को पूरा नहीं करती है।

अपने भाई के साथ खेत के सह-मालिक जावंजाल कहा, ‘‘अगर निर्यात निर्यात नीतियां अच्छी होंगी, तो युवा खेती की ओर आकर्षित होंगे।’’

जवांजल के भतीजे, अपूर्व, जो एक प्रशिक्षित मैकेनिकल इंजीनियर थे, बेंगलुरु में नौकरी छोड़कर पारिवारिक व्यवसाय में काम करने के लिए काटोल लौट आये, ने कहा कि परिवार अब बगीचे में संतरे के पेड़ों से उपज बेचने के लिए पूरी तरह से वरुड और अमरावती के नजदीकी बाजारों पर निर्भर है।

उन्होंने कहा कि किसान उत्पादन लागत की तुलना में 10-20 रुपये प्रति किलोग्राम के घाटे पर संतरे बेच रहे हैं।

अपूर्वा ने कहा, ‘‘जब हम बांग्लादेश को संतरे भेजते थे और अब कीमतों में, बहुत अंतर है। पहले चीजें बेहतर थीं।’’

जवंजाल ने कहा, ‘‘इनकी आयात-निर्यात नीतियों की वजह से किसान गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है।’’

किसान एक खाद्य प्रसंस्करण संयंत्र पर भी अपनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं, जिसे बहु-उत्पाद विशेष आर्थिक क्षेत्र, नागपुर (एमआईएचएएन) में मल्टीमॉडल इंटरनेशनल कार्गो हब और हवाई अड्डे के पास स्थापित करने की योजना है।

वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने दिसंबर में लोकसभा में स्वीकार किया था कि बांग्लादेश द्वारा आयात शुल्क दरों में वृद्धि से भारत के संतरा निर्यात पर असर पड़ा है।

गोयल ने कहा कि भारत ने बांग्लादेश से भारत में संतरा किसानों के हित में नीति पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था, लेकिन उन्हें बताया गया कि यह बिना किसी भेदभाव के सभी देशों से आयात के लिए लागू है।

क्षेत्र में पीटीआई-भाषा से बात करने वाले कई किसानों ने कहा कि उन्होंने इन मुद्दों को राजनीतिक नेतृत्व के सामने उठाया है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

उन्होंने संकेत दिया कि इस संकट का असर मौजूदा लोकसभा चुनाव में उनके वोट पर पड़ सकता है।

खुटाटे ने कहा, ‘‘हमने पिछली बार कांग्रेस का पक्ष नहीं लिया था। अगर उनकी नीतियां अच्छी होतीं तो यहां किसान आत्महत्या नहीं करते। लेकिन अब किसानों की हालत कहीं ज्यादा खराब है।’’

उन्होंने कहा कि कई किसान अब सोच रहे हैं कि क्या भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के महायुति गठबंधन को वोट देना उचित है। नागपुर शहर की शहरी सीट को छोड़कर, जहां केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की पकड़ है, विदर्भ क्षेत्र में नौ लोकसभा सीटें हैं।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय