(मुनीश शेखावत)
नयी दिल्ली, 22 दिसंबर (भाषा) भारत के दवा उद्योग के लिए वर्ष 2026 आवश्यक परिवेश तैयार करने के लिए एक महत्वपूर्ण पांच वर्षीय अवधि की शुरुआत का संकेत है, ताकि वह स्वयं को नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करते हुए वर्ष 2047 तक 500 अरब डॉलर का क्षेत्र बनने के अपने लक्ष्य को हासिल कर सके। यह प्रयास शुल्क उतार-चढ़ाव और वैश्विक व्यापार पुनर्संरचना जैसी निकट अवधि की चुनौतियों के बीच किया जा रहा है।
देश का मुख्य रूप से जेनेरिक दवाओं पर आधारित दवा उद्योग पिछले 25 वर्ष में तीन अरब डॉलर से बढ़कर 60 अरब डॉलर के आकार तक पहुंचा है। अब अगली पीढ़ी की दवाओं में नवाचार की दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है।
उद्योग साथ ही अगले सात वर्ष में विशिष्ट अधिकार समाप्त होने जा रही 300 अरब डॉलर से अधिक मूल्य की दवाओं को हासिल करने के अवसर का लाभ उठाने की भी कोशिश करेगा।
भारतीय दवा संघ के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा, ‘‘ आज भारतीय दवा उद्योग एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है और अगले 25 वर्ष नवाचार, गुणवत्ता और पहुंच के आधार पर तय होंगे।’’
उन्होंने कहा कि देशी दवा कंपनियों में नवाचार का ‘एजेंडा’ उल्लेखनीय गति पकड़ रहा है।
जैन ने कहा, ‘‘ वर्ष 2026 से आगे आने वाले पांच वर्ष क्रियान्वयन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होंगे, नीतिगत रफ्तार को ठोस उपलब्धियों में बदलने के लिए ताकि भारत वर्ष 2047 तक 450–500 अरब डॉलर का उद्योग बनने एवं वैश्विक जीवन विज्ञान नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित होने के अपने लक्ष्य को हासिल कर सके।’’
समर्थक नीतियों का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि दवा–चिकित्सकीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहन देने वाली योजना (पीआरआईपी) को उद्योग से मजबूत प्रतिक्रिया मिली है, जो एक महत्वपूर्ण शुरुआत का संकेत है।
जैन ने कहा, ‘‘ नव घोषित अनुसंधान विकास प्रोत्साहन योजना जिसमें जैव-उत्पादन को प्रमुख क्षेत्र बनाया गया है…विशेष रूप से समयानुकूल है, खासकर तब जबकि अगले सात वर्ष में 300 अरब डॉलर से अधिक मूल्य की दवाएं विशिष्ट अधिकार खोने जा रही हैं।’’
उन्होंने कहा कि भारत के नवाचार की ओर बढ़ने के उत्साहजनक संकेत देखे जा सकते हैं, क्योंकि प्रमुख भारतीय दवा कंपनियां उच्च मूल्य वाले उत्पाद खरीद रही हैं, लाइसेंस समझौते कर रही हैं और अगली पीढ़ी की दवाओं के लिये विनियामक स्वीकृतियां प्राप्त कर रही हैं।
भारतीय दवा संघ (आईपीए) में 23 प्रमुख दवा कंपनियां शामिल हैं जिनमें सन फार्मा, सिप्ला, ऑरोबिंडो फार्मा और डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज शामिल हैं।
दूसरे उद्योग संगठन, भारतीय दवा उत्पादक संगठन (ओपीपीआई) ने भी माना कि वर्तमान में भारतीय दवा उद्योग एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है।
ओपीपीआई के महासचिव अनिल मताई ने कहा, ‘‘ शुल्क उतार-चढ़ाव और वैश्विक व्यापार पुनर्संरचना जैसी बाहरी चुनौतियां निकट अवधि में मुश्किलें पेश करने के साथ ही मजबूत एवं उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादन परिवेश बनाने के रणनीतिक महत्व को भी और मजबूती देती हैं।’’
उन्होंने कहा कि सरकार का उत्पादन मानकों को उन्नत करने, अनुसंधान एवं नवाचार में निरंतर निवेश के लिए बौद्धिक संपदा की सुरक्षा को सुदृढ़ करने तथा वैश्विक गुणवत्ता मानकों के साथ तालमेल स्थापित करने पर पुनः ध्यान केंद्रित करना केवल समयानुकूल ही नहीं है, बल्कि यह परिवर्तनकारी भी है।
भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा मंच ‘नेट हेल्थ’ की अध्यक्ष अमीरा शाह ने कहा कि स्वास्थ्य उद्योग भी 2026 से शुरू होने वाले अपने सबसे निर्णायक दशक में प्रवेश कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘ मुख्य उपचारों के पेटेंट समाप्त होने, नए देखभाल मॉडल के उभरने एवं सरकार द्वारा कई मुक्त व्यापार समझौतों पर चर्चा को आगे बढ़ाए जाने के साथ, भारत के पास पहुंच एवं वैश्विक नेतृत्व दोनों का विस्तार करने का अवसर है।’’
फिलिप्स के भारतीय उपमहाद्वीप के प्रबंध निदेशक भरत शेषा ने कहा कि चिकित्सकीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे नीति सुधारों ने इस क्षेत्र को उत्साहित किया है और भारत की वैश्विक चिकित्सकीय प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र बनने की महत्वाकांक्षा का संकेत दिया है।
भाषा निहारिका मनीषा
मनीषा