स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री से बीटी बैंगन के परीक्षण पर रोक लगाने का आग्रह किया

स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री से बीटी बैंगन के परीक्षण पर रोक लगाने का आग्रह किया

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  • Publish Date - September 14, 2020 / 02:31 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:36 PM IST

नयी दिल्ली, 14 सितंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बीटी बैंगन के खेतों में परीक्षण पर तत्काल रोक लगाने का आग्रह किया है। संगठन का कहना है कि इसे अगर नहीं रोका गया तो इसका केंद्र के आत्मनिर्भर अभियान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने पत्र में लिखा है कि पर्यावरण मंत्रालय के अधीन आने वाले जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने अंतिम परीक्षण से पहले के चरण के खेतों में परीक्षण की अनुमति दे दी। इसे बीटी बैंगन के लिये बीआरएल दो परीक्षण कहा गया है। समिति ने छह राज्यों से इस विवादास्पद प्रौद्योगिकी के परीक्षण का रास्ता साफ करने को कहा है।

उन्होंने लिखा है, ‘‘हम आपसे इन परीक्षणों पर यथाशीघ्र रोक लगाने के लिये व्यक्तिगत तौर पर हस्तक्षेप का आग्रह करते हैं।’’

महाजन ने कहा, ‘‘यह मंजूरी आपके द्वारा विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम करने के साथ घरेलू खपत और निर्यात के लिये बेहतर उत्पाद विकसित करने को लेकर एक वैश्विक परिवेश बनाने के लिये शुरू आत्मनिर्भर अभियान को असफल करने के लिये गलत इरादे से दी गयी।’’

मंच ने दावा किया कि बीटी बैंगन प्रौद्योगिकी की कोई जरूरत नहीं है। कीट प्रबंधन बिना बीटी या सिंथेटिक कीटनाशकों के उपयोग के संभव है और इस संदर्भ में वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद हैं।

महाजन ने कहा कि बीटी बैंगन पर रोक के बाद देश में इस सब्जी का उत्पादन और उसकी उत्पादकता बढ़ी है। यह साफ बताता है कि प्रौद्योगिकी की जरूरत नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘..हमारे पास न तो बैंगन की कोई कमी है। न तो गुणवत्ता का मामला है और न ही मात्रा का कोई मसला है। चूंकि यह इस उप-महाद्वीप का स्वदेशी फसल है, इसकी ज्यादातर किस्में यहां उपलब्ध हैं।’’

जीन संवर्धित (जीएम) प्रौद्योगिकी का कृषि निर्यात पर प्रभाव के बारे में महाजन ने कहा कि जब दुनिया के कई देश इस तरह की फसलों को नकार रहे हैं, तो भारत जीएम तकनीक अपनाकर अपनी व्यापार सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल सकता है।

उन्होंने पत्र में लिखा है, ‘‘वास्तविकता यह है कि कई देशों ने शुरू में जीएम फसलों को अपनाया था लेकिन बाद में उन्होंने उसे त्याग दिया। अगर भारत गैर-जीएम खेती के क्षेत्र में अपनी मजबूत स्थिति का लाभ नहीं उठाता है और गैर-जीएम खेती की जो एक पहचान है, उसे खोता है तो निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।’’

भाषा

रमण मनोहर

मनोहर