Bilaspur High Court News: “गवाह के पलटने पर उसकी पूरी गवाही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता”.. जानें किस मामले में बिलासपुर HC ने की ये टिप्पणी

डीएनए रिपोर्ट से अपराध सिद्ध हाईकोर्ट ने पाया कि मामले में डीएनए रिपोर्ट यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करती है कि मृत शिशु के जैविक माता-पिता पीड़िता और आरोपी ही हैं। यह वैज्ञानिक साक्ष्य घटना से आरोपी के सीधे संबंध को प्रमाणित करता है।

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  • Publish Date - July 30, 2025 / 10:45 PM IST,
    Updated On - July 30, 2025 / 10:45 PM IST

Chhattisgarh News || Image- BILASPUR high court file

HIGHLIGHTS
  • गवाही से पलटे गवाह की बात पूरी अस्वीकार्य नहीं।
  • डीएनए रिपोर्ट से आरोपी की संलिप्तता प्रमाणित हुई।
  • हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि और सजा को सही ठहराया।

Bilaspur High Court News: बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में निर्णय दिया कि किसी गवाह के अपनी गवाही से पलटने पर उसकी पूरी गवाही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस आधार पर एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मामले में आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी।

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बिलासपुर उच्च न्यायालय समाचार

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा के कोर्ट ने सुनवाई के बाद दिए आदेश में कहा कि अगर मामले की पुष्टि चिकित्सा और वैज्ञानिक साक्ष्य से होती है, और गवाही के कुछ हिस्से विश्वसनीय लगते हैं तो कोर्ट प्रतिकूल गवाह के साक्ष्य पर भी भरोसा कर सकता है। ऐसी गवाही को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने सुनाई दी सजा

Bilaspur High Court News: यह प्रकरण वर्ष 2018 में जिला बालोद के ग्राम तालगांव का है, जहां आरोपी रमेश कुमार पर एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म कर उसे गर्भवती करने का आरोप था। पीड़िता ने 15 अगस्त 2018 को उपाध्याय नर्सिंग होम, धमतरी में सात माह के मृत शिशु को जन्म दिया। डॉक्टर रश्मि द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी और आईपीसी की विभिन्न धाराओं तथा पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(ठ)/6 के तहत मामला दर्ज हुआ। विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो), बालोद ने आरोपी को पॉक्सो अधिनियम की धारा 3/4 के अंतर्गत दोषी ठहराया और सात वर्ष के कठोर कारावास तथा 5000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई।

आयु का कोई ठोस प्रमाण नहीं

इस फैसले को आरोपी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि पीड़िता और उसके पिता ने अदालत में अभियोजन का समर्थन नहीं किया, इसलिए दोषसिद्धि अवैध है। यह भी कहा गया कि पीड़िता की आयु का कोई ठोस प्रमाण नहीं है और स्वतंत्र गवाहों से आरोपों की पुष्टि नहीं होती। राज्य शासन की ओर से तर्क प्रस्तुत किए गए कि अभियोजन ने वैज्ञानिक और चिकित्सकीय साक्ष्य के माध्यम से आरोप प्रमाणित किए हैं। उन्होंने विशेष रूप से डीएनए रिपोर्ट पर बल दिया। कोर्ट ने स्कूल रजिस्टर में दर्ज जन्मतिथि के आधार पर यह स्पष्ट किया कि घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी। पीड़िता और उसके पिता दोनों ने न्यायालय में अभियोजन का साथ नहीं दिया। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि सिर्फ इस आधार पर कि कोई गवाह विरोधी घोषित कर दिया गया है, उसकी पूरी गवाही को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

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दोषसिद्धि और दंड को हाईकोर्ट ने सही ठहराया

Bilaspur High Court News: डीएनए रिपोर्ट से अपराध सिद्ध हाईकोर्ट ने पाया कि मामले में डीएनए रिपोर्ट यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करती है कि मृत शिशु के जैविक माता-पिता पीड़िता और आरोपी ही हैं। यह वैज्ञानिक साक्ष्य घटना से आरोपी के सीधे संबंध को प्रमाणित करता है। साक्ष्यों का अवलोकन कर कोर्ट ने कहा कि भले ही मुख्य गवाहों ने अदालत में अभियोजन का साथ नहीं दिया, अभियोजन ने चिकित्सकीय और वैज्ञानिक साक्ष्य के माध्यम से अपराध को संदेह से परे सिद्ध कर दिया है। विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) द्वारा पारित दोषसिद्धि और दंड को हाईकोर्ट ने सही ठहराया और आपराधिक अपील खारिज कर दी।

1. सवाल: अगर कोई गवाह अदालत में बयान से पलट जाए तो क्या उसकी गवाही पूरी तरह अमान्य मानी जाती है?

1. सवाल: अगर कोई गवाह अदालत में बयान से पलट जाए तो क्या उसकी गवाही पूरी तरह अमान्य मानी जाती है?

2. सवाल: इस मामले में आरोपी को किस आधार पर दोषी ठहराया गया?

जवाब: आरोपी को डीएनए रिपोर्ट, मेडिकल सबूत और स्कूल रिकॉर्ड में पीड़िता की उम्र के आधार पर दोषी ठहराया गया। भले ही गवाहों ने अदालत में अभियोजन का साथ नहीं दिया, पर वैज्ञानिक साक्ष्य पर्याप्त थे।

3. सवाल: आरोपी को क्या सजा सुनाई गई है?

जवाब: विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) द्वारा आरोपी को 7 वर्ष का कठोर कारावास और ₹5000 का जुर्माना लगाया गया, जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।

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