Contract Employees Regularisation: छत्तीसगढ़: सुप्रीम कोर्ट ने संविदा कर्मचारियों के हक में सुनाया फैसला, अब होकर ही रहेगा नियमितीकरण, जानिए क्या कहा SC ने

Contract Employees Regularisation: छत्तीसगढ़: सुप्रीम कोर्ट ने संविदा कर्मचारियों के हक में सुनाया फैसला, अब होकर ही रहेगा नियमितीकरण

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  • Publish Date - May 18, 2024 / 03:44 PM IST,
    Updated On - May 21, 2024 / 06:14 PM IST

बिलासपुर: contract employees regularisation छत्तीसगढ़ में पिछले करीब 10 साल से संविदा और अनियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण का मुद्दा सियासी गलियारों में गूंज रहा है। नियमितीकरण की मांग को लेकर कई बार कर्मचारी आंदोलन भी कर चुके हैं। अगर पिछली भूपेश सरकार की बात करें तो उन्होंने कर्मचारियों से वादा किया था कि सत्ता में आते ही संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जाएगा, लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस ने अपना वादा पूरा नहीं किया। लेकिन इस बीच कल सुप्रीम कोर्ट ने संविदा कर्मचारियों के हित में बड़ा फैसला दिया है।

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contract employees regularisation दरअसल गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में विजय कुमार गुप्ता सहित 98 कर्मचारी दैनिक वेतनभोगी के तोर पर कार्यरत थे। ये सभी कर्मचा​री विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से करीब 10 साल या उससे अधिक समय से कार्यरत थे। साल 2008 में सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से इन सभी कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश जारी किया था। जारी आदेश के अनुसार 10 साल या उससे ज्यादा समय तक सेवा चुके कर्मचारियों को नियमित किया जाना था। इस आदेश के परिपालन में उच्च शिक्षा संचालक ने भी 26 अगस्त 2008 को विभाग में कार्यरत ऐसे कर्मियों को स्ववित्तीय योजना के तहत नियमितीकरण और नियमित वेतनमान देने का आदेश दिया। मार्च 2009 तक इन्हें नियमित वेतन भी दिया गया। इसके बाद बिना किसी जानकारी या सूचना दिए यूनिवर्सिटी ने नियमित वेतन देना बंद कर दिया था।

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कर्मचारियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उन्हें कलेक्टर दर पर वेतनमान देने का आदेश जारी कर दिया। इसके साथ ही 10 फरवरी 2010 को तत्कालीन रजिस्ट्रार ने 22 सितंबर 2008 को जारी शासन के नियमितीकरण को भी निरस्त कर दिया। रजिस्ट्रार के इस आदेश को चुनौती देते हुए कर्मचारियों ने अधिवक्ता दीपाली पाण्डेय के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि गुरु घासीदास विवि को राज्य सरकार से केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्वीकार किया गया है। लिहाजा, राज्य शासन के अधीन कार्यरत सभी कर्मचारियों को उसी स्थिति में केंद्रीय विश्वविद्यालय में शामिल करना चाहिए, जिस स्थिति में कर्मचारी राज्य विश्वविद्यालय में कार्यरत थे। लेकिन, यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया।

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इस मामले की लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने बीते 22 नवंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिस पर 6 मार्च को कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया। साथ ही याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने उन्हें पूर्व की तरह नियमितीकरण की तिथि से नियमित कर्मचारी के रूप में सभी लाभ का हकदार घोषित किया। दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी अपने हक की लड़ाई को लेकर पिछले 11 साल से संघर्षरत हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यूनिवर्सिटी ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दिया। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत मिश्रा की बेंच हुई। सभी पक्षों को सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने कहा कि दो दशकों से अधिक समय से काम कर रहे दैनिक वेतनभोगियों को नियमित करने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई मजबूत आधार नहीं है। इसलिए याचिका खारिज की जाती है।

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