CG High Court: || Image source- IBC24 Archive
Bilaspur Highcourt Latest Order: बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में दुष्कर्म के आरोपी पिता को सबूतों के अभाव में बाइज्जत बरी करने का आदेश दिया है। अदालत ने माना कि यह मामला झूठे आरोप का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें चिकित्सा और फोरेंसिक साक्ष्य अभियोजन पक्ष के दावों का समर्थन करने में विफल रहे। इसके अलावा, अदालत ने पाया कि पीड़िता के बयान में विश्वसनीयता की कमी है, जिससे यह अपराध अविश्वसनीय हो जाता है। इसलिए, यह “स्टर्लिंग गवाह” (जो साफ और अडिग रहता है) की श्रेणी में नहीं आता।
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याचिका के अनुसार, यह मामला वर्ष 2019 में जांजगीर-चांपा जिले का है। उस समय पीड़िता अपने घर के पास रहने वाले युवक रितेश यादव के साथ भाग गई थी। इसके बाद, पीड़िता के पिता ने युवक के खिलाफ थाने में दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराई, जिसके आधार पर पुलिस ने रितेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
रितेश की गिरफ्तारी से उसके परिवार के सदस्य, विशेष रूप से उसकी दादी, बेहद नाराज थे। इधर, रितेश के जेल जाने के बाद पीड़िता अपने घर लौट आई और वहीं रहने लगी।
साल 2022 में एक दिन, जब पीड़िता ने घर पर खाना बनाया, तो उसके पिता, जो शराब के नशे में थे, ने भोजन पसंद नहीं आने पर उसकी पिटाई कर दी। इस घटना के बाद पीड़िता घर से बाहर निकली, जहां उसे रितेश की दादी मिलीं। उन्होंने पीड़िता को धमकी दी कि यदि उसने अपने पिता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई, तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
दबाव में आकर, पीड़िता ने थाने में रितेश की दादी द्वारा लिखवाई गई रिपोर्ट पर अंगूठा लगा दिया, क्योंकि वह अनपढ़ थी। इस रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने पीड़िता के पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2)(डी) (बार-बार दुष्कर्म) के तहत मामला दर्ज कर लिया।
मामले की सुनवाई निचली अदालत में हुई, जहां बिना चिकित्सा प्रमाणों को ध्यान में रखे, पिता को 10 साल की सजा सुना दी गई। गौरतलब है कि मेडिकल जांच में दुष्कर्म की किसी भी तरह से पुष्टि नहीं हुई थी।
निचली अदालत में पीड़िता ने स्वीकार किया था कि उसने दबाव में आकर बयान दिया था, लेकिन अदालत ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद, पिता ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की।
इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस संजय के. अग्रवाल की सिंगल बेंच ने पाया कि अभियोजन पक्ष के पास पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे। मेडिकल और फोरेंसिक रिपोर्टें भी इस अपराध की पुष्टि नहीं कर पाईं। साथ ही, पीड़िता के बयान में विश्वसनीयता की कमी के कारण अदालत ने इसे झूठा आरोप माना। इसके आधार पर, हाईकोर्ट ने पिता को बाइज्जत बरी करने का आदेश दिया और उनकी तत्काल रिहाई सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि निचली अदालत के गलत फैसले के कारण आरोपी पिता को दो साल से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा। हाईकोर्ट ने इस त्रुटि को सुधारते हुए उन्हें न्याय प्रदान किया और उनकी रिहाई के आदेश जारी किए।