Bastar Goncha Festival: बेहद खास है बस्तर का गोंचा पर्व.. जगन्नाथ-सुभद्रा-बलभद्र के 22 विग्रह की होती है पूजा, तुपकी से दी जाएगी सलामी

Bastar Goncha Festival: बेहद खास है बस्तर का गोंचा पर्व.. जगन्नाथ-सुभद्रा-बलभद्र के 22 विग्रह की होती है पूजा, तुपकी से दी जाएगी सलामी

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  • Publish Date - June 27, 2025 / 11:41 AM IST,
    Updated On - June 27, 2025 / 11:41 AM IST

Bastar Goncha Festival/Image Credit: facebook

HIGHLIGHTS
  • बस्तर का गोंचा पर्व देशभर में बेहद प्रसिद्ध
  • भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के 22 देव विग्रहों की पूजा
  • बस्तर में गोंचा पर्व पर 7 रथों से होती थी परिक्रमा

Bastar Goncha Festival: छत्तीसगढ़ के बस्तर का गोंचा पर्व देशभर में बेहद प्रसिद्ध है। इसके पीछे का कारण भी बेहद दिलचस्प है। जगदलपुर स्थित भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के 22 देव विग्रहों की पूजा की जाती है। वहीं, तुपकी (बांस की बंदूक) से सलामी देनी की परंपरा है। करीब 150 से 200 साल पहले जगन्नाथ मंदिर जला था। एक समय था जब बस्तर में गोंचा पर्व पर 7 रथों से परिक्रमा होती थी।

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चालुक्य वंश के शासकों ने की थी शुरुआत

बस्तर की रथ यात्रा की शुरुआत चालुक्य वंश के शासकों ने की थी और बस्तर के महाराजा पुरुषोत्तम देव ओडिशा के जगन्नाथपुरी आए थे। करीब 618 साल पहले बस्तर के तत्कालीन राजा पुरुषोत्तम देव दंडवत करते हुए पुरी के जगन्नाथ मंदिर गए थे। वहां उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी। उन्हें 16 चक्कों का एक बड़ा रथ भी भेंट किया गया था। 16 पहियों वाले रथ को खींचकर बस्तर लाना मुश्किल था। इसलिए जब राजा इस रथ को लेकर बस्तर आए तो उन्होंने इस रथ के 3 हिस्से कर दिए थे, जिसमें एक 8 का और 2 रथ 4-4 चक्के में बांट दिया था।

एसे हुई गोंचा पर्व की शुरुआत

8 चक्के का एक और 4 चक्के का एक रथ बस्तर दशहरा और एक अन्य 4 चक्के का रथ बस्तर गोंचा के लिए दिया गया, जिसके बाद से ही बस्तर में गोंचा पर्व की शुरुआत हुई थी। उस समय के रियासत के लोगों ने आरण्यक ब्राह्मण समाज के लोगों को भी यहां लाया था। साथ ही भगवान जगन्नाथ के देव विग्रह भी लाए गए थे। कभी दशहरा के दौरान 7 रथ चलते थे, जिनमें से एक भगवान जगन्नाथ का रथ था। अब 3 रथ जुलूस निकालते हैं। ये अनुष्ठान बस्तर दशहरा को विशिष्टता प्रदान करते हैं।

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नौ दिनों तक चलता है उत्सव

बस्तर में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रादेवी के साथ रथयात्रा शुरू होती है और आषाढ़ शुक्ल दशमी को समाप्त होती है। यह नौ दिनों का उत्सव है। इस उत्सव की शुरुआत राजपरिवार और चालुक्य वंश के शासकों ने की थी। जगदलपुर में ‘गोंचा महोत्सव’ में नकली तुपकी की एक अलग परंपरा है।

तुपकी क्या है?

रथ यात्रा के दिन इसी तुपकी से हर वर्ग के लोग भगवान भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र को सलामी देते हैं। इस रथ यात्रा को विश्वभर में और प्रसिद्ध बना देते हैं। नकली तुपकी की परंपरा बस्तर के अलावा कहीं भी प्रचलित नहीं है। गोंचा के फल का उपयोग गोली के रूप में किया जाता है, जबकि बांस से बंदूक बनाई जाती है। इस्तेमाल की जाने वाली सभी चीजें नकली और हानिरहित होती हैं, जो केवल मनोरंजन के लिए बनाई जाती हैं।

मंदिर में लग गई थी आग

बता दें कि, जगदलपुर में तिवारी बिल्डिंग के पास में मंदिर की स्थापना की गई थी, वो मंदिर पक्का नहीं था, कच्चा था। मंदिर स्थापना के कुछ साल बाद किसी वजह से मंदिर में आग लग गई थी, जिसके बाद 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज ने राजा से नया मंदिर स्थापित करने के लिए कहा था। फिर राजा ने सिरहासार भवन के पास पक्का मंदिर बनवाया गया।