Visnu Ka Sushasan: ‘पूना मारगेम’ नीति से बस्तर में सुधरे हालात, पुनर्वास की रोशनी से मिट रहा भय का अंधकार, कई बड़े माओवादी मुख्यधारा में हुए शामिल

‘पूना मारगेम' नीति से बस्तर में सुधरे हालात, Poona Margem Policy: Light of Rehabilitation Dispelling the Darkness of Fear

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  • Publish Date - December 22, 2025 / 11:52 PM IST,
    Updated On - December 26, 2025 / 12:06 AM IST

रायपुरः Visnu Ka Sushasan: छत्तीसगढ़ में जब भी बीते दो वर्षों का जिक्र होगा, तो यह दौर स्थिरता, फैसलों की तेजी और शासन के बदले हुए तेवर के रूप में याद किया जाएगा। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में बनी सरकार ने दो साल का सफर पूरा कर लिया है। इन दो वर्षों में सरकार ने न सिर्फ प्रशासनिक ढांचे को चुस्त-दुरुस्त किया, बल्कि जनविश्वास बहाल करने और विकास को गति देने की दिशा में कई निर्णायक कदम उठाए। यहीं वजह है कि साय सरकार के दो साल निर्णय, दिशा और विश्वास के प्रतीक बनकर सामने आए हैं।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में बनी सरकार ने इन दो सालों में केंद्र सरकार के समन्वय के साथ नक्सलवाद के खात्म के लिए विशेष रणनीति बनाई है। इसका सकारात्मक परिणाम अब दिखाई दे रहा है।  “पूना मारगेम : पुनर्वास से पुनर्जीवन” नीति बनाकर इसका जीवंत उदाहरण है। इस नीति के तहत अब सैकड़ों नक्सलियों ने आत्मसर्मपण कर चुके हैं। लंबे समय से नक्सली गतिविधियों से प्रभावित अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर क्षेत्र में यह ऐतिहासिक घटनाक्रम नक्सल उन्मूलन अभियान के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में दर्ज होगा।निः संदेह मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में अपनाई गई व्यापक नक्सल उन्मूलन नीति ने क्षेत्र में स्थायी शांति की मजबूत नींव रखी है।पुलिस, सुरक्षा बलों, स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठनों और सजग नागरिकों के समन्वित प्रयासों से हिंसा की संस्कृति को संवाद और विकास की संस्कृति में परिवर्तित किया जा सका है।बस्तर में नक्सलवाद की रात अब ढल रही है और विकास की नई सुबह का उदय हो चुका है।

आशा और विश्वास का प्रतीक बना यह अभियान

Visnu Ka Sushasan: ‘पूना मारगेमपुनर्वास से पुनर्जीवन’ केवल एक सरकारी योजना नहीं, बल्कि आशा और विश्वास का प्रतीक है। यह माओवादियों को यह संदेश देता है कि बदलाव संभव है, और अब वह समय आ चुका है। यह पहल आत्मसमर्पित माओवादियों को आत्मनिर्भर, सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अभियान बस्तर रेंज के सातों जिलों- सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, कोंडागांव, बस्तर और कांकेर– में चरणबद्ध रूप से संचालित किया जा रहा है। इस नीति के तहत माओवादियों से अपील की गई है कि वे हिंसा का मार्ग त्यागें और समाज की मुख्यधारा से जुड़ें। अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें और शांति, सौहार्द एवं पुनर्वास के मार्ग को अपनाएं। यह निर्णय न केवल आत्मसमर्पण करने वालों के भविष्य को सुरक्षित करेगा, बल्कि एक शांतिपूर्ण, समरस और प्रगतिशील बस्तर के निर्माण में उनकी भागीदारी भी सुनिश्चित करेगा।

पुनर्वास और रोजगार से जोड़ा गया भविष्य

पूना मारगेम‘ के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को केवल कानूनी संरक्षण ही नहीं दिया गया, बल्कि आर्थिक सहायता, कौशल प्रशिक्षण, आवास सुविधा और रोजगार से जोड़ने की व्यवस्था की गई। कई पूर्व नक्सली अब सड़क निर्माण, जल परियोजनाओं और स्थानीय विकास कार्यों में श्रमिक या प्रशिक्षु के रूप में कार्य कर रहे हैं। इससे उन्हें सम्मानजनक जीवन मिला और विकास कार्यों को भी गति मिली। अभियान का प्रत्यक्ष प्रभाव यह रहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। जिन इलाकों में पहले प्रशासन नहीं पहुँच पाता था, वहाँ अब स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी और सड़क जैसी सुविधाएँ पहुँचने लगी हैं, यह साबित करता है कि शांति और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं।

कई बड़े माओवादियों ने किया आत्मसमर्पण

वर्ष 2025 में इस नीति को प्रभावी रूप से लागू किया गया, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए। बस्तर और दण्डकारण्य क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। अक्टूबर 2025 में 210 से अधिक नक्सलियों का एक साथ आत्मसमर्पण इस अभियान की ऐतिहासिक सफलता माना गया। यह दर्शाता है कि कठोरता के साथ यदि मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाए, तो हिंसा के रास्ते पर चल रहे लोग भी लौटने को तैयार होते हैं।