रायपुर। छत्तीसगढ़ में आरक्षण और आदिवासियों की लड़ाई अब असली और फर्जी आदिवासी की ओर मुड़ गई है। इस मोड़ के क्या मायने हैं और सियासत पर इसका क्या असर होगा। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए हमारे साथ खास मेहमानों का पैनल जुड़ेगा।
छत्तीसगढ़ की सियासी फिजा में आरक्षण का मुद्दा हॉट केक बना हुआ है और इसे अब असली-नकली आदिवासी की टॉपिंग से सजाया जा रहा है। दरअसल, बस्तर में आयोजित एक सम्मेलन में 100 से ज्यादा ग्रामीणों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया। इस पर बीजेपी प्रदेश महामंत्री केदार कश्यप ने कहा कि कांग्रेस की वादाखिलाफी और सरकार के तानाशाही रवैए से नाराज होकर कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार में बस्तर के विकास के लिए कुछ भी नहीं किया गया।
केदार कश्यप के इस बयान पर कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा की त्यौरियां चढ़ गई। लखमा ने कहा कि केदार कश्यप नकली आदिवासी हैं और बस्तर के लोग उनका साथ छोड़ चुके हैं। लखमा ने ये भी कह डाला कि अगर उनमें थोड़ी भी शर्म हो तो वे राजनीति छोड़े दें।
कवासी लखमा ने हमला बोला तो बीजेपी नेता कवर फायर देने उतर गए। धरमलाल कौशिक ने असली-नकली आदिवासी के बयान पर कहा कि कांग्रेस अंग्रेजों की तरह समाज तोड़ने का काम कर रही है।
बहरहाल, सवाल ये है कि आरक्षण और आदिवासियों की जंग में असली-नकली का रंग क्यों? क्या इस बयान से बस्तर में चुनावी जमीन तैयार की जा रही है और क्या अब यहां चेहरे की लड़ाई शुरू हो गई है?