Reported By: vishnu partap singh
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सुकमा: Sukma News, नक्सली कमांडर हिड़मा के मारे जाने के बाद पूरे मामले पर सियासत तेज हो गई है। बीते दिनों नक्सली कमांडर हिड़मा के मारे जाने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। सुरक्षाबलों के साथ नक्सली मुठभेड़ में हिड़मा ढेर हो गया था। इसे लेकर अब पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने आरोप लगाया है कि हिड़मा एनकाउंटर में नहीं ढेर हुआ बल्कि हिड़मा को पकड़ कर मारा गया है।
पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने पूरे मामले पर मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए नक्सली महासचिव देवजी पर गंभीर आरोप लगाया है। पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने कहा है की हिड़मा को फर्जी मुठभेड़ कर मारा गया है। साथ आंध्र प्रदेश में गिरफ़्तार 50 नक्सलियों की गिरफ़्तारी पर भी मनीष कुंजाम ने सवाल उठाया है और कहा है कि क्या 50 लोग एक साथ गिरफ़्तार होने आंध्र प्रदेश जाएँगे।
Sukma News पूरे मामले को मनीष कुंजाम ने नाटकीय बताते हुए नक्सल संगठन के महासचिव देवजी पर सरकार व पुलिस के साथ मिलकर हिड़मा को मरवाने का आरोप लगाया है। पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने आरोप लगाते हुए कहा की आंध्र के नक्सली बस्तर में घटित सभी घटनाओं का आरोपी हिड़मा को बनवा दिया और उसे मरवा दिया है। मनीष कुंजाम के इस बयान के बाद पूरे मामले में सियासी घमासान मचने की स्थिति बन गई है।
छत्तीसगढ़ के खूंखार नक्सली हिड़मा की मौत को सुरक्षाबलों की बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। दूसरी ओर हिड़मा की मौत के बाद एक तरफ नक्सल समर्थकों की ओर से सोशल मीडिया में हिड़मा के समर्थन में पोस्ट किया जा रहा है। वहीं कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी इसे लेकर पोस्ट किया है। युवा कांग्रेस की पदाधिकारी प्रीती मांझी ने लाल सलाम कामरेड हिडमा लिखकर समर्थन जताया है। इन सभी पर भाजपा नेताओं ने तीखा पलटवार किया है।
हिड़मा छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का पोस्टर बॉय था। सुरक्षाबल के सैकड़ों जवानों और निर्दोष आदिवासियों की हत्या का जिम्मेदार था। हिड़मा की मौत को नक्सलवाद के खात्मे की दिशा में बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन नक्सल समर्थकों का एक तबका ऐसा भी है, जो हिड़मा की मौत पर सोशल मीडिया में आंसू बहा रहा है। हिड़मा की मौत का महिमामंडन कर जल जंगल जमीन का संरक्षक बताया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई अब निर्णायक अंजाम पर पहुंच गई है। ऐसे समय में नक्सलियों के मारे जाने पर उनके समर्थन में प्रतिक्रियाएं ऐसे लोगों के दोहरे चरित्र को उजागर तो करती ही हैं। इस बात का संकेत भी देती हैं कि सशस्त्र नक्सलवाद भले मार्च 2026 तक खत्म हो जाए, वैचारिक नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई अभी और लंबी चल सकती है।